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२१२. पॉचेफस्ट्रमके भारतीय

अन्यत्र हम एक प्रशंसनीय पत्र छाप रहे हैं जो पाँचेफस्ट्रूमके भारतीय संघके मन्त्री श्री अब्दुल रहमानने ट्रान्सवाल लीडरको भेजा है। इस पत्रसे स्पष्ट मालूम होता है कि पहरेदार- संघका जोश कितना गलत है और भारतीय लोग गोरोंकी इच्छाओंकी पूर्ति करने के लिए किस सीमातक तैयार हैं । परन्तु उस पत्रका सबसे महत्त्वपूर्ण अंश उसमें दी गई यह जानकारी है कि पॉचेफस्ट्रमके भारतीय व्यापारियोंने अपनी दूकानें उसी समय बन्द करनेका फैसला किया है जिस समय यूरोपीय करते हैं। यह कदम किसी दबावके बिना उठाया गया है और हमारा खयाल है कि वह ठीक दिशामें है और दूसरे नगरोंके ब्रिटिश भारतीय व्यापारियोंके लिए अनु- करणीय है। असल में उनका मामला तो वैसे ही बहुत मजबूत है; लेकिन पॉचेफस्ट्रूमके भारतीयोंकी इस ताजी कार्रवाईसे उनकी स्थिति और भी मजबूत हो गई है। हमें आशा है कि श्री अब्दुल रहमानने यूरोपीय ब्रिटिश प्रजाजनोंसे इस सद्भावके बदले में कुछ-न-कुछ सद्भाव दिखानेकी जो प्रार्थना की है उसका समुचित उत्तर मिलेगा, क्योंकि हर हालतमें उन्हें भी रक्षाके लिए उसी झंडेपर निर्भर रहना है जिसके संरक्षणमें ब्रिटिश भारतीय रहते हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, १७-९-१९०४

२१३. पत्र : दादाभाई नौरोजीको[१]

ब्रिटिश भारतीय संघ

२५ व २६ कोर्ट चेम्बर्स
रिसिक स्टीट
जोहानिसबर्ग
सितम्बर १९, १९०४

सेवामें

माननीय दादाभाई नौरोजी
२२, केनसिंगटन रोड
लन्दन द० पू०, इंग्लैंड

प्रिय महोदय,

भारतीय परिस्थितिके बारेमें इस हफ्ते जो सरकारी रिपोर्ट प्राप्त हुई है उसमें मैंने देखा है कि श्री लिटिलटनने भारतीय बाजारोंके लिए जगहोंके प्रश्नपर जोर दिया है।

आपने देख ही लिया होगा कि सर आर्थर लालीके खरीतेके उत्तरमें दिये गये ब्रिटिश भारतीयोंके निवेदनमें[२] यह बात दुहरायी गई है और मामला आँखोंसे ओझल न हो जायें

  1. दादाभाई नौरोजीने इस पत्रका पूरा पाठ एक पत्रमें उपनिवेश मन्त्री और भारत-मन्त्रीको भेजा था । (सी० ओ० २९१, खण्ड ७९, इंडीविज्युअल्स एन और सी० ओ० २९१, खण्ड ७५, इंडिया ऑफिस ) ।
  2. देखिए “प्रार्थनापत्र : उपनिवेश-सचिवको”, “( सितम्बर ३, १९०४ के पूर्व ) " ।