इसलिए मैं इस तथ्यपर फिर जोर देता हूँ कि चुनी गई अधिकतर जगहें, निश्चय ही, व्यापारके अयोग्य हैं। यह वक्तव्य प्रतिष्ठित यूरोपीयोंकी बिलकुल स्वतन्त्र साक्षीके बिना नहीं दिया गया और वे सारी रिपोर्ट परमश्रेष्ठकी सेवामें भेज दी गई हैं। अगर कहीं चुनी गई जगहें जरा भी अच्छी हैं तो केवल क्रूगर्संडार्पमें; इसलिए जिन्हें बाड़े चाहिए थे उन्होंने वहाँ बिना किसी जोर-जबरदस्तीके अर्जियां दे दी हैं। दूसरे स्थानोंमें, जहाँ नयी जगहें तय की गई हैं, अर्जियाँ लगभग दी ही नहीं गईं। तथापि, मुख्य बात तो अनिवार्य पृथक्करणको टालनेकी है। जहाँतक बाजारोंके सिद्धान्तका सवाल है, उपयुक्त स्थानोंमें बाजारोंके लिए जगह निश्चित करके लोगोंको जमीनें लेने पर राजी किया जा सकता है। और समस्या अपने आप हल हो जायेगी।
मुझे उम्मीद है कि आप केपके प्रशासक (ऐडमिनिस्ट्रेटर) की घोषणापर, जो बिना अनुमतिपत्रके ट्रान्सकीअन क्षेत्रमें भारतीयोंके प्रवेशका निषेध करती है, इंडियन ओपिनियनका अग्रलेख देखेंगे। यह एक नया प्रतिबन्ध है जिसका कारण समझमें आना कठिन है। सूचीमें जिन क्षेत्रोंका उल्लेख है वे केपके मातहत हैं।
आपका सच्चा,
मो० क० गांधी
टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (जी० एन० २२६१) से।
२५. पत्र : मूलचन्द अग्रवालको
लन्दनसे इस सप्ताह प्राप्त सरकारी रिपोर्टसे बहुत स्पष्ट मालूम होता है कि परमश्रेष्ठने ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थिति के बारेमें कैसा अन्यायपूर्ण रवैया इख्तियार किया है। सर मंचरजीने दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंको घटिया दर्जेके एशियाई बतानेपर रोष प्रकट किया है। इसलिए उत्तरमें परमश्रेष्ठने अपने खरीतेके साथ वह पत्रव्यवहार जोड़ दिया है। जो प्लेगके दिनोंमें रैंड डेली मेलमें छपा था और जिसपर कुछ भारतीयोंने हस्ताक्षर किये थे। जब भारतीय बस्तीके चारों तरफ घेरा डाल दिया गया तब इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि बस्तीके कुछ भारतीयोंने अपने रहन-सहनको बाकी लोगोंके रहन-सहनसे ज्यादा अच्छा समझकर यह सोचा कि बाकी लोगोंपर कीचड़ उछालकर वे अपने लिये कुछ फायदा हासिल कर लेंगे और इसलिए उक्त पत्र लिखा। परन्तु परमश्रेष्ठ जो सही स्थिति स्वयं जानते हैं, जानकारीका उपयोग करके भयभीत पत्रप्रेषकोंकी अतिशयोक्तियाँ ठीक कर सकते थे। परमश्रेष्ठको मालूम होना चाहिए था कि पत्रमें उन भारतीयोंका उल्लेख था जो पृथक बस्तीमें रह रहे थे और जो आम तौरपर बस्ती से बाहर रहनेवालोंसे बेशक नीचे दर्जे के हैं। उन्हें मालूम होना चाहिए था कि वे सारे भारतीय समाजके प्रतिनिधि नहीं थे और न हो ही सकते थे; और स्वयं पत्र-व्यवहारसे प्रकट होता है कि पत्र लिखनेवालोंको भी, जो पृथक् बस्तीमें रह रहे थे, निम्नतम वर्ग के कुछ भारतीयोंकी श्रेणी में रखे जाने और पृथक् बस्तीमें घेर दिये जानेके विचारपर रोष था। इस दृष्टिकोणसे उनका खयाल बिलकुल ठीक था क्योंकि हमने उस बस्ती में अच्छे ढंग से रहनेवाले कई लोगोंको देखा है और हम उन्हें जानते हैं। उनमें से कुछके पास खासे अच्छे बने हुए पक्के मकान हैं। इसलिए परमश्रेष्ठके प्रति उचित आदर रखते हुए भी यह कहा जा सकता है कि दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंको “घटिया दर्जेके एशियाई" बताना "दुर्भाग्यपूर्ण" है।