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२१५. पत्र : दादाभाई नौरोजीको
ब्रिटिश भारतीय संघ

२५ व २६ कोट चेम्बर्स
रिसिक स्ट्रीट
जोहानिसबर्ग
सितम्बर २६, १९०४

सेवामें माननीय श्री दादाभाई नौरोजी
२२, केनसिंगटन रोड
लन्दन द० पू०, इंग्लैंड
प्रिय महोदय,

मुझे आपके दो पत्र मिले। मैं उनके लिए आपको धन्यवाद देता हूँ। श्री उमरने भी, आपने जो सलाह अपने पत्रोंमें दी है, मुझे बताई। अबसे जब जरूरत जान पड़ेगी, मैं अपनी खत किताबत अलग-अलग करनेका प्रयत्न करूँगा। आपके सुझावके मुताबिक निशान लगाकर इंडियन ओपिनियन आपके पास सीधा भेजा जाये, ऐसा मैंने श्री नाजरको लिख दिया है। सरकारने लिख भेजा है कि वह ब्रिटिश भारतीय संघके सबसे ताजा निवेदनके मुताविक विधान बनानेका इरादा नहीं रखती। इससे मालूम होता है कि सरकार अब अपने उद्देश्यकी पूर्तिसे ही सन्तुष्ट नहीं होगी; अर्थात् भविष्य में होनेवाले भारतीय प्रवासपर प्रतिबंध लगाने और नये अर्जदारोंको परवाना देनेका नियमन करके ही नहीं मान जायेगी। साफ है कि उसका इरादा ब्रिटिश भारतीयोंपर लागू होनेवाले कानून बनानेका सिद्धान्त स्थापित करनेका है। यदि ऐसा हो तो यह बहुत ही भयानक बात है और इससे श्री चेम्बरलेनकी नीति उलट जायेगी। अगर ट्रान्सवालके लिए भेदभावपूर्ण कानून बनानेकी मंजूरी दे दी गई तो केप और नेटाल भी निस्सन्देह उसका अनुसरण करेंगे।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

मूल अंग्रेजी पत्रकी फोटो नकल (जी० एन० २२६२) से।