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२१६. भारत के पितामह

इंडियाका जो अंक पिछली डाकसे प्राप्त हुआ है उसमें हाल ही में ऐम्स्टर्डम अन्त-राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलनमें किये गये श्री नौरोजीके स्वागतका सुन्दर वर्णन है। इंडियाका विशेष संवाददाता कहता है:

अध्यक्ष हर वान कोलने सम्मेलनमें उपस्थित लोगोंसे अनुरोध किया कि वे अपने स्थानोंसे उठकर सम्मान व्यक्त करनेके लिए मौन खड़े हो जायें। उसके बाद एक अद्-भुत और अत्यन्त प्रभावोत्पादक दृश्य उपस्थित हुआ। जब श्री दादाभाई नौरोजी धीरे-धीरे चलकर मंचके बीचमें पहुँचे तब वह महान श्रोता-समुदाय, जो उस विशाल भवनमें भरा हुआ था, उनके सम्मुख मौन और नग्नशिर खड़ा हो गया। यद्यपि यह कार्य सीधा-सादा था तथापि जिस गम्भीरता और सर्वसम्मत रूपसे यह किया गया उससे यह अत्यन्त प्रभावशाली बन गया था, खास तौरसे यह स्मरण करते हुए कि यह सम्मान इतनी भिन्न जातियों और राष्ट्रोंके इतने अधिक प्रतिनिधियों द्वारा किया गया था। तब श्री नौरोजी जिन लोगोंके प्रतिनिधि थे उनके प्रति इस प्रकार शोकपूर्ण सम्मान प्रदर्शित करनेके बाद, स्वयं उस प्रतिनिधिके सम्मानमें एक जबरदस्त और उत्साहपूर्ण प्रदर्शन किया गया। उस विशाल श्रोता-समुदायका ध्यान भारतकी जनतासे हटकर श्री दादाभाई नौरोजीके गौरवपूर्ण व्यक्तित्वपर केन्द्रित हो गया। उनके जीवन-भरके प्रयत्नोंके सम्बन्ध में जो कुछ कहा गया था वह सब श्रोताओंने याद किया और अपने हृदयकी भावना अपनी हर्षध्वनियों, तालियों और स्वागत तथा प्रशंसासूचक नारोंके द्वारा प्रतिध्वनित की। यह अभिनन्दन देरतक और संजीदगीके साथ जारी रहा। जिन लोगोंने अन्तर्राष्ट्रीय एकताके इस महान प्रदर्शनको देखा उन सबपर उसकी अमिट छाप पड़ी। यह एकता एक राष्ट्रसे दूसरे राष्ट्रतक ही नहीं, बल्कि एक महाद्वीपसे दूसरे महाद्वीपतक फैल गई है।

प्रत्येक भारतीयको यह जानकर गर्व होना चाहिए कि श्रद्धेय श्री दादाभाईकी, जिन्हें भारतवासी प्रेमपूर्वक भारतका पितामह कहते हैं, यूरोपके लोग कितनी इज्जत करते हैं। श्री दादाभाईका जन्म ४ सितम्बर १८२५ को हुआ था। पिछले ४ सितम्बरको उनकी उन्यासीवीं वर्षगाँठ मनाई गई। भगवान् करे, वे अभी और बहुत वर्ष जीवित रहें और नौजवान पीढ़ीको देशके लिए त्याग और सेवाके कार्योंकी प्रेरणा देते रहें।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १-१०-१९०४