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२१७. ट्रान्सवाल श्वेत-संघ

एक दूसरे स्तम्भमें हम पीटर्सबर्ग में स्थापित ट्रान्सवाल श्वेत-संघकी नियमावली छाप रहे हैं। उसके उद्देश्य हैं:

एशियाइयोंके विरुद्ध इस देशके समस्त श्वेत निवासियोंका संयुक्त मोर्चा बनाना, एशियाई व्यापारियोंको परवाने देने या नये करनेका काम नियमित और नियन्त्रित करने के लिए कानून बनवाना और उन्हें नगरों और देहाती क्षेत्रोंको खाली करने और खास तौरपर अलग किये गये बाजारोंमें रहने और व्यापार करनेके लिए मजबूर करना।

अन्य तीन उद्देश्योंका अभिप्राय उन दोनों उद्देश्योंकी पूर्ति करना है जो हमने अभी उद्धृत किये हैं। संघ नाराज होकर शोरगुल-भर मचायेगा। इसके सिवा, उसके सब प्रयत्न व्यर्थ होंगे, क्योंकि देशमें एशियाइयोंकी भरमार हो ही नहीं रही। यह बात दूसरी है कि संघ हजारों चीनी गिरमिटिया गुलामोंका, जिनकी देशमें बाढ़ आ रही है, प्रवेश रोकने के लिए कुछ उछल-कूद करे। क्योंकि एशियाइयोंका, चाहे वे ब्रिटिश प्रजाजन हों या और कोई, स्वतन्त्र प्रवास लॉर्ड मिलनरने कारगर रूपमें रोक दिया है। यहाँतक कि, जिन लोगोंने पुरानी हुकूमतको उपनिवेशमें रहने की इजाजतके मूल्यके रूपमें ३ पौंडकी रकम चुका दी है उनका प्रवेश भी बन्द कर दिया गया है। जहाँतक परवानोंके नियमन और नियन्त्रणका सम्बन्ध है, ब्रिटिश भारतीय संघने स्वयं इन दोनों बातोंके बारेमें प्रस्ताव किया है। अब रही एशियाइयोंको शहरों और देहाती क्षेत्रोंसे हटाने और बाजारों में रहनेके लिए मजबूर करनेकी बात, सो हम यह कल्पना नहीं कर सकते कि यदि इन महाशयोंके हाथोंमें परवानोंका पूरा नियन्त्रण आ जायेगा तो इसकी गम्भीरतापूर्वक जरूरत पड़ेगी। यह ध्यान देने लायक बात है कि श्वेत-संघ में पीटर्सबर्ग की नगर परिषद के प्रतिनिधियोंकी बहुत प्रमुखता है।

जोहानिसबर्गके पत्रोंका कहना है कि ट्रान्सवाल श्वेत-संघकी स्थापनाके साथ-साथ उस प्रार्थनापत्रपर हस्ताक्षर करानेकी तैयारियाँ भी की जा रही हैं जो पाँचेफस्ट्रम पहरेदार-संघकी ओरसे भेजा गया है और वह इस पत्र में पहले ही छप चुका है। मान लीजिए कि उसपर ट्रान्सवालके प्रत्येक बालिग यूरोपीय मर्दके हस्ताक्षर हो जाते हैं तो क्या इससे जब्तीका प्रस्ताव—और उसका अर्थ इसके सिवा दूसरा कुछ नहीं है-कानून सम्मत या न्याय संगत हो जायेगा? अथवा क्या सम्राटको सरकारका यह स्पष्ट कर्तव्य नहीं होगा कि वह इस प्रार्थनापत्रके बावजूद ब्रिटिश भारतीयोंके निहित स्वार्थो और अधिकारोंकी रक्षा करे?

ब्रिटिश अखबार और ब्रिटिश भारतीयों सम्बन्धी सरकारी रिपोर्ट

उपर्युक्त बातोंके बिलकुल खिलाफ सरकारी रिपोर्टपर इंग्लैंडके अखबारोंकी लगभग सर्वसम्मत राय पढ़कर हर किसीको बड़ी प्रसन्नता होती है।

उन्हें क्रूगर-शासनमें अलग बस्तियोंसे बाहर व्यापार करनेका जो अधिकार प्राप्त था, उसको उनसे छीन लेना दुनियाकी नजरोंमें अपने आपको गिरा देना और उन लोगों के प्रति एक अन्यायपूर्ण कृत्यकी मंजूरी देना होगा जिन्हें ट्रान्सवालके गोरे निवासियोंकी तरह ही साम्राज्य सरकारसे न्यायपूर्ण व्यवहार प्राप्त करनेका हक है।