टाइम्स और लंदन के दूसरे समाचारपत्रोंका खयाल है कि ट्रान्सवालमें कठोर वरतावका असर भारतीयोंके मनपर बहुत खराब होगा और उससे भारतीयोंकी राजभक्तिपर बहुत दुष्प्रभाव पड़ेगा। इससे प्रकट है कि दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश भारतीयोंके प्रति न्यायके लिए भारतमें मुखर और लगातार आन्दोलन होना चाहिए। अतएव मैं सोचता हूँ कि अबतक इस विषयपर जितना ध्यान दिया गया है, कांग्रेसको उसपर उससे अधिक ध्यान देना चाहिए और दुर्व्यवहारको जारी रखनेका विरोध करते हुए सारे भारतमें आम सभाएँ भी होनी चाहिए।
आशा है,आपका स्वास्थ्य अच्छा होगा। आपका उत्तर पाकर बहुत प्रसन्नता होगी।
आपका सच्चा,
मो० क० गांधी
मूल अंग्रेजी पत्रकी फोटो नकल (सी० डब्ल्यू० ४१०३) से।
२२४. जोहानिसबर्ग की पृथक् बस्ती
हम अन्यत्र जोहानिसबर्गकी अलग बस्तीके अति विवादग्रस्त प्रश्नपर लोक-स्वास्थ्य समितिकी रिपोर्ट प्रकाशित कर रहे हैं। हमारे पाठकोंको याद होगा कि यह लोक-स्वास्थ्य समितिकी चौथी रिपोर्ट है और इसमें समितिकी सारी मक्कारी खुल गई है और वह अपने असली रूपमें प्रकट हो गई है। यह रिपोर्ट अप्रत्यक्ष रूपसे सर आर्थर लालीके इस दावेका पूरा जवाब है कि एशियाई बाजारोंके स्थानोंका चुनाव बहुत अच्छा किया गया है और उनमें वतनी और यूरोपीय दोनोंके व्यापारिक विकासकी गुंजाइश है। पहले तो लोक-स्वास्थ्य समितिने मलायी वस्तीके बहुत पास ही एक स्थान निश्चित किया था। फिर उसने उस स्थानकी सिफारिश की जिसको बोअर सरकारने चुना था और अब उसने वह जगह तय की है जो प्लेग फैलने के समय पृथक्-शिविरके रूपमें इस्तेमाल की गई थी और जो जोहानिसबर्गसे तेरह मील दूर स्थित है। यदि समितिकी सिफारिशोंपर अमल किया गया तो लगभग पाँच हजार भारतीय, जिनमें कुछ पुराने व्यवसायियों के अलावा सब फेरीवाले और व्यापारी शामिल हैं, उसी स्थानमें हटा दिये जायेंगे। और इसके कारण बताते हुए समितिका कहना है:
यदि वर्तमान स्थितिको जारी रहने दिया गया तो कुछ प्रकारके उद्योग—उदाहर-णार्थ छोटे व्यापारियों और दस्तकारोंके उद्योग——जिनसे अन्यथा काफी बड़ी संख्या में यूरोपीयोंको रोजगार मिलता, अनिवार्य रूपसे एशियाइयोंके हाथोंमें चले जायेंगे और उसके परिणामस्वरूप स्वावलम्बी यूरोपीय आबादी विकासमें बहुत बाधा आयेगी।"
यह आश्चर्य है कि जो दलीलें पहले कभी नहीं सोची गईं, वे अब ढूंढ-ढूंढ कर ऐसी नीतिके समर्थनमें पेश की जा रही हैं जो खुले शब्दोंमें क्रमशः जब्तीकी नीति है। हम खण्डनके जरासे भी भयके बिना कहते हैं कि जोहानिसबर्ग में कोई भारतीय दस्तकारवर्ग है ही नहीं। यह सच है कि थोड़ेसे उपेक्षित बढ़ई और उनसे भी कम ईंट-पथेरे हैं। परन्तु वे किसी भी तरह की प्रतिस्पर्धामें नहीं पड़ना चाहते। जोहानिसबर्ग के भारतीय वहाँ कमसे कम १८९६ से रह रहे हैं, क्योंकि
उसी समय जनगणना की गई थी और उनको आबादी अब भी लगभग उतनी ही है जितनी कि उस समय थी। फिर भी भारतीय किसी भी क्षेत्रसे यूरोपीयोंको निकालने में समर्थ नहीं हो सके