हैं। गोरोंका जोहानिसबर्ग आज भी गोरोंका ही है, और इतनेपर भी लोक-स्वास्थ्य समितिको अचानक पता लगा है कि भारतीय आबादीकी उपस्थितिसे “स्वावलम्बी यूरोपीय आबादी के विकासमें बहुत बाधा आयेगी," यद्यपि यूरोपीय आबादी सतत बढ़ रही है, जब कि शान्ति- रक्षा अध्यादेशके दुरुपयोगके कारण भारतीयोंकी आबादी घट रही है और अवश्य ही घटती जायेगी। समितिके पक्षमें जनगणनाके जो आंकड़े पेश किये गये हैं वे बिलकुल भ्रमोत्पादक हैं, और इंग्लैंडमें ही प्रचारित करनेके उद्देश्यसे दिये जा सकते थे, क्योंकि स्थानीय लोगोंको तो शायद उनसे गुमराह नहीं किया जा सकता। यह बयान गलत है कि ट्रान्सवालकी रंगदार आबादी गोरी आबादीसे पहले ही से ७७.८३ और २२.१७ के अनुपातमें अधिक है। हमें मानना होगा कि जोहानिसबर्गकी लोक-स्वास्थ्य समिति जैसी प्रतिनिधि संस्थाकी तरफसे ऐसी गलत-बयानीके लिए हम तैयार नहीं। ट्रान्सवालकी विशाल वतनी आबादी और रंगदार आबादीमें क्या सम्बन्ध हो सकता है, यह हमारी समझ में नहीं आता और अगर लोक-स्वास्थ्य समितिने केवल भारतीयोंका ही विचार करनेका कष्ट किया होता, जिनके लिए अलग बस्ती कायम की जायेगी, तो यह निर्णयात्मक रूपमें सिद्ध किया जा सकता था कि भारतीयों द्वारा यूरोपीयोंका स्थान ले लेनेका भय काल्पनिक है, क्योंकि जोहानिसबर्ग में ८४,००० गोरोंके मुकाबिलेमें भारतीय आबादी ७,००० से कुछ ही अधिक होगी। और ट्रान्सवालमें जहाँ भारतीयोंकी आबादी १०,००० से कुछ ही अधिक है, वहाँ यूरोपीय आबादी ३,००,००० है। एक ओर भारतीय स्पर्धासे यूरोपीयोंके विनाशकी बात करना और दूसरी ओर अंग्रेज जनताके सामने वतनी आबादीको शामिल करके आँकड़े पेश करना और अनुपातकी भयंकर विषमता दिखाना एक बड़ी सार्वजनिक संस्थाके योग्य नहीं है। और फिर समितिने एक ओर जोहानिसबर्गके और दूसरी तरफ नेटाल और पीटर्सबर्गके बीच तुलनाकी है। यह सर आर्थर लालीकी जैसी तुलनाका दूसरा उदाहरण है। हम विवादके[१] इस पहलूकी पहले ही चर्चा कर चुके हैं और हमने नम्रतापूर्वक यह सिद्ध करनेकी चेष्टा की है कि यह सारा विवाद भारतीयोंके पक्षमें जाता है। अब समिति निडर होकर कहती है कि यूरोपीय व्यापारमें ब्रिटिश भारतीयोंका बिलकुल कोई हिस्सा नहीं होना चाहिए और बाजार यूरोपीयोंसे आबाद वस्तीके पास-पड़ोससे बिलकुल अलग रखा जाये।" और इसी कारण समितिने भारतीयोंको ले जाकर डाल देनेके लिए क्लिपस्प्रूटका जंगल चुना है, जहाँ वे आपस में एक दूसरेसे और थोड़ेसे काफिरोंसे ही व्यापार कर सकते हैं। इसके सिवा और कहीं फेरी या व्यापार नहीं कर सकते। परन्तु काफिर लोग भारतीयोंके ग्राहक नहीं हो सकते, क्योंकि वे ज्यादातर मजदूर हैं। इस कारण उन्हें सुबह जल्दी ही शहर जाना और रातको शायद आठ बजेके करीब लौटना होगा। ऐसी सूरत में यह सम्भव नहीं होगा कि वे उस समय एशियाइयोंके पास जायें और उनसे खरीददारी करें। वे स्वभावतः अपनी जरूरी चीजें शहरसे खरीदेंगे। गन्दगीका आरोप भी फिर पेश किया गया है। समिति कहती है, "किसी भी प्रकारके देखरेखके तरीकेसे इन लोगों से सार्वजनिक स्वास्थ्यके उपनियमोंका पालन कराना असम्भव है।" हम समितिको चुनौती देते हैं कि वह इस कथनका समर्थन आँकड़े देकर करे। हम यह चाहते हैं कि भारतीयोंके विरुद्ध लोक-स्वास्थ्य उपनियमोंके मातहत कितने मुकदमे चलाये गये हैं और कितने मामलों में उन्होंने नियमोंका पालन करनेमें गफलत की है, यह आँकड़े देकर बताया जाये। जहाँतक हमें मालूम है, और हमें जोहानिसबर्ग के भारतीयोंकी कुछ जानकारी है, हमें बड़ा आश्चर्य होगा यदि पूरे सालमें ब्रिटिश भारतीयोंके विरुद्ध छः मुकदमे भी चलाये गये हों। और हम दावेसे कह
- ↑ देखिए “ट्रान्सवाल”, सितम्बर १०, १९०४ और “कुछ और बातें: सर आर्थर लालीके खरीतेके विषय में" सितम्बर २४, १९०४।