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श्री मदनजीतका सम्मान

प्रशंसनीय व्यापारिक जोखिम मानी जाती, वही उसके अर्जदारोंके लिए अयोग्यताका कारण मानी गई। यहाँ यह ध्यानमें रखना है कि भारतीय गृह-स्वामीके हितका कोई विचार नहीं किया गया। अक्सर उसे यह ताना मारा जाता है कि वह समयकी गतिके साथ कदम नहीं रखता और केवल झोपड़ियाँ बनाता है। अब प्रस्तुत उदाहरणमें, उसने भण्डार बनानेमें कई हजार पौंड खर्च किये और भण्डार आकृतिकी शोभनीयतामें भी वेस्ट स्ट्रीटके अच्छेसे-अच्छे भण्डारोंसे होड़ कर सकता है। और आश्चर्य है, उसके इस साहसका नतीजा निकला सर्वनाशकी संभावना, और जो श्रेष्ठ पश्चिमीय स्तरके मुताबिक रहनेका प्रयत्न कर रहा है उस अर्जदारके दिवालिया हो जानेकी सूरत। और यह उन मामलों में से एक है जिनके बारेमें स्वर्गीय श्री एस्कम्बका खयाल था कि इन्हें परवाना अधिनियम कभी हाथ भी नहीं लगा सकता। उन्होंने इसे पेश करनेके समय जो भाषण दिये थे, हम नीचे उनके अंश और तत्सम्बन्धी स्वर्गीय सर हेनरी बिन्सकी भविष्यवाणी उद्धृत कर रहे हैं। अन्यायकी इस कथाके अन्य पहलुओंपर हमें आगामी अंकमें विचार करना पड़ेगा क्योंकि हमें मालूम हुआ है कि अपीलकर्त्ता सर्वोच्च न्यायालय में परिषदके स्थानान्तरणको नियन्त्रित करनेके अधिकारका प्रश्न उठा रहा है।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १५-१०-१९०४

२२८. श्री मदनजीतका सम्मान

इंडियन ओपिनियन के मालिक श्री मदनजीतकी भारत यात्राके समय उनको विदाई देनेके लिए डर्बनमें एक समारोह किया गया था। उसमें गांधीजीने एक भाषण दिया था, जिसकी संक्षिप्त रिपोर्ट यह है:

[ अक्टूबर १५, १९०४ ]

श्री गांधीने १८९४ में, जब श्री मदनजीत इस देशमें आये तबसे आजतकके उनके जीवनके बारेमें संक्षिप्त जानकारी दी और उनके धीरज और लगनका बखान किया कि वे किस प्रकार छापेखाने की आर्थिक स्थितिके विषम होते हुए भी मुश्किलें सहकर तन, मन, धनसे मेहनत करके भारतीयोंके लाभके लिए निकलनेवाले पत्र इंडियन ओपिनियनको चलाते रहे हैं। इसके बाद उन्होंने सबको छापेखानेकी कुछ परिस्थितियोंसे वाकिफ किया।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २२-१०-१९०४