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२२९. जोहानिसबर्ग नगर परिषद

नगर परिषदने लोक-स्वास्थ्य समितिकी बहुत महत्त्वपूर्ण रिपोर्टपर विचार कर लिया है। और समितिके दिये हुए क्रियात्मक सुझाव सर्वसम्मतिसे मान लिये हैं। इस बारेमें उसकी यह सर्वसम्मति दुःखजनक है। इसके अन्तर्गत, अनिवार्य पृथक्करण अध्यादेश स्वीकृत होनेकी अवस्था में भारतीय और मलायी दोनों ही वतनी बस्तीके नजदीक क्लिपस्प्रूटकी खेतीपर, जो जोहानिसबर्ग से १३ मील दूर है, बसाये जायेंगे। श्री क्विनने प्रस्ताव नगर परिषदको सौंपते हुए इन आधारों-पर उनको उचित बताया कि भारतीय सफाईके नियमों का पालन नहीं करते; यदि काफिर क्लिपस्प्रूट भेजे जाते हैं तो भारतीयों को भेजनेका तो और भी जोरदार कारण है, क्योंकि उनका पड़ोस काफिरोंसे भी बुरा है; और भारतीय व्यापार भारतीयों और काफिरोंतक सीमित है, इसलिए इतने ज्यादा फासले पर बसा दिये जानेपर भी उन्हें कोई कठिनाई न होगी।

पहली आपत्ति किन्हीं तथ्योंपर आधारित नहीं है। श्री क्विनने समर्थन ने कहा है कि भारतीयोंके खिलाफ मुकदमे भी चलाये जाते हैं तो भी वे फिर अपने पुराने अभ्यासपर वापस आ जाते हैं। हम इन महाशयकी बातका खण्डन करते हैं और सार्वजनिक रूपमें कहते हैं कि किसी भारतीय के खिलाफ सफाईका कोई ऐसा मुकदमा नहीं चला जिसका स्थायी असर नहीं हुआ हो। हम यह भी कहेंगे कि जहाँ भी ठीक तरहसे देखरेख रखी गई है वहाँ भारतीय नियमोंके निहायत पाबन्द साबित हुए हैं। दूर न जाकर हम प्रिटोरियाकी बस्तीका उदाहरण देंगे और हाइडेलबर्ग के भारतीयोंकी अवस्था बतायेंगे। पहले मामले में निरीक्षण सहृदयतापूर्ण, किन्तु दृढ़ है। इस कारण बस्तीकी सफाई पूरी तरह वैसी है जैसी इन बस्तियोंमें आबाद भारतीयोंकी किस्म को देखते हुए वांछनीय कही जा सकती है। दूसरे मामले में भी शहर के बीचोंबीच रहनेवाले भारतीय दूकानदारोंकी सफाई इतनी ही अच्छी है। वक्ताकी उठाई दूसरी आपत्ति पहलीसे कम कमजोर नहीं। क्योंकि यदि भारतीय सफाई सम्बन्धी नियन्त्रण माननेवाले हैं तो उनको पड़ोसी बनाने में कोई ऐतराज नहीं हो सकता। उनमें न तो युद्धनृत्य ही होते हैं और न वे काफिर-बीयर ही पीते हैं। तीसरा आक्षेप तथ्योंकी निरी तोड़-मरोड़ है। यह कहना अन्यायपूर्ण है कि भारतीय व्यापार काफिरों और भारतीयोंतक सीमित है। ट्रान्सवालमें शुरू-शुरू में आकर बसनेवाले भारतीय व्यापारी भारतीयों में व्यापार करनेकी दृष्टिसे इस देशमें नहीं आ सकते थे क्योंकि तब भारतीय यहाँ थे ही नहीं और यह सबको मालूम है कि डच लोगों और गरीब श्वेत लोगों में भारतीयोंका बड़ा व्यापार है। इस ऐतराज की तहमें यह महत्त्वपूर्ण मान्यता है कि क्लिपस्प्रूटकी खेती श्वेत लोगोंके व्यापारके लिए बिलकुल उपयुक्त नहीं है। साथ ही यह भी याद रखना चाहिए कि काफिर बस्ती पास होने का मतलब भारतीयोंको काफिरोंका व्यापार मिलना नहीं है। इसका और कुछ नहीं तो एक सीधा-सादा कारण यह है कि काफिर लोग बस्ती में केवल रातके समय रहेंगे और शहरसे व्यवसाय के समय के बाद लौटेंगे। इसलिए यदि भारतीयोंको इतनी बड़ी दूरीपर बसाना सर्वथा अन्यायपूर्ण है तो मलायी बस्तीके निवासियोंको छेड़ना तो और भी बड़ी बेइन्साफी होगी। सफाईकी दृष्टिसे पुरानी भारतीय बस्तीको रद करनेका कुछ कारण हो सकता है; परन्तु मलायी बस्तीके रहनेवालोंके खिलाफ तो कानोंकान कुछ नहीं कहा गया है। उनमें से अधिकांश लोग, जैसा कि नामसे प्रकट है, मलायी हैं और वे साफ-सुथरे रहनेवाले, परिश्रमी और पूरी तरह वफादार लोग हैं। उस स्थानपर अब कई सालसे उनका कब्जा है। बोअर-राज्यके दिनोंमें उनसे वह जगह छीन लेनेका प्रयत्न ब्रिटिश सरकारकी कोशिशोंके कारण विफल हो गया था; क्या अब ये गरीब लोग उसी ब्रिटिश सरकारके नामपर बातकी बात में बेदखल कर दिये