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भारतीय दुभाषिय

महोदय जब वाइसरायकी गद्दीपर स्थानान्तरित हो जायेंगे तब भी क्या उनमें यह प्रबल भारत- विरोधी द्वेष-भाव बना रहेगा जिससे वह दस्तावेज रंगा हुआ है?

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २२-१०-१९०४

२३२. लाइडनबर्ग के भारतीय

लाइडनबर्ग के अधिकारियोंने भारतीयोंको सूचना दी है कि वे सात दिनके भीतर सोनेके लिए बाजारमें चले जायें, अन्यथा उनपर आज्ञा-भंगका मुकदमा चलाया जायेगा। कुछ समय पूर्वं इसी प्रकारकी धमकी पाँचेफस्ट्रममें दी गई थी, परन्तु उसका कुछ परिणाम नहीं निकला। ट्रान्स-वालके मुख्य न्यायाधीशके जोरदार फैसलेको[१] देखते हुए हर किसीका खयाल यही होता कि भारतीयोंको छेड़ा नहीं जायेगा। मगर मालूम होता है कि बात ऐसी होने वाली नहीं है। ऐसी परिस्थितिमें हमारे देशवासियोंके सामने एक ही उपाय है कि वे चुपचाप बैठें और घटनाओं पर निगाह रखें।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २२-१०-१९०४

२३३. भारतीय दुभाषिये

भारतीय दुभाषियोंको उपनिवेशसे निकालने के बहाने खोजने में नेटाल कृषक परिषद एड़ी-चोटीका जोर लगा रही है। गिरमिटिया भारतीयोंकी तो उसे बुरी तरह जरूरत है, मगर सरकारी नौकरी में वह इने-गिने भारतीय दुभाषियोंका रहना भी बर्दाश्त नहीं कर सकती। परिषदके इससे पहलेके प्रस्तावका सरकारने यह उत्तर दिया है कि एकसे अधिक भारतीय भाषाएँ बोल सकनेवाले यूरोपीय इन नौकरियोंके लिए नहीं मिल पाते और यह जरूरतको देखते हुए अपर्याप्त है। इसपर उसने नीचे लिखा प्रस्ताव पास किया है।

यह परिषद जोर देकर अपनी यह सम्मति दुहराती है कि अगर उचित वेतन दिये जायें तो ऐसे यूरोपीय मिल सकते हैं जो एकाधिक भारतीय बोलियाँ बोल सकते हैं; और यह कि सरकार उपनिवेशके तरुण यूरोपीयोंको भारतीय बोलियोंकी जानकारी हासिल करनेके लिए वैसा ही प्रोत्साहन दे जैसा जुलू भाषाके विद्यार्थियोंको दिया जाता है।

सरकारने इसका भी उत्तर दिया है कि जहाँ-जहाँ मुमकिन है, यूरोपीयोंको रखनेका प्रयत्न हो रहा है; किन्तु बाधाएँ कम होती नहीं दिखतीं। इस तरह अपनी नौकरियोंकी सुरक्षितता के लिए भारतीय दुभाषियोंको सरकारका नहीं, भारतीय बोलियाँ जाननेवाले यूरोपीयोंकी कमीका अहसान मानना चाहिए।
[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २२-१०-१९०४
  1. देखिए “परीक्षात्मक मुकदमा,” २१-५-१९०४।