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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/३३७

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पीटर्सबर्ग के भारतीय

तरहके सारे संरक्षण, जबतक काफी लचकदार न रखे जायें, अपने ही उद्देश्यको विफल करनेवाले होते हैं। हम भारतीयोंको इस विचारसे सहमत करनेमें परिषदके साथ सहर्ष सहयोग करेंगे कि वेस्ट स्ट्रीट बहुत कुछ यूरोपीय व्यापारियोंके हाथोंमें रहनी चाहिए। परन्तु एक महत्त्व-पूर्ण और आवश्यक शर्त यह है कि जो भारतीय वहाँ पहलेसे व्यापार कर रहे हैं उनकी, और भारतीय मकान मालिकोंकी भी पूरी तरह रक्षा की जानी चाहिए; और जो भारतीय वेस्ट स्ट्रीटकी बढ़िया दूकानोंकी प्रतिष्ठाके अनुरूप सफाई और सजावटकी आवश्यकताएँ पूरी करने को तैयार हैं और जिनका व्यापार मुख्यतः यूरोपीयोंके साथ है, उनका वहाँ व्यापार करना निषिद्ध न किया जाये। अगर यह सच है कि आपत्ति रंगके विरुद्ध नहीं है, और यदि भारतीय लोग युरोपीयों जैसा स्तर रखें तो वांछनीय नागरिकके रूपमें उनका स्वागत किया जायेगा, तब तो, सचमुच, उन्हें प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। अब हकीकत यह है कि...स्ट्रीट बहुत...हैं[] और विचाराधीन मामलेमें उपर्युक्त सारी कसौटियोंपर पूरे उतरते हैं। क्या हम नगर परिषदसे यह अपील नहीं कर सकते कि वह अपने हाथ रोक ले और भारतीयोंके इस सन्देहसे मुक्त हो जाये कि श्री ढुंडामलपर मुकदमा चलाकर वह उनको और उनके द्वारा भारतीय दूकानदारों और मकान मालिकोंको सता रही है। ये सब लोग उत्सुकतापूर्वक उन नाटकीय स्थितियोंको देख रहे हैं जिनमें से यह मामला गुजर रहा है।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २९-१०-१९०४

२३५. पीटर्सबर्ग के भारतीय

पीटर्सबर्गसे इस आशयका समाचार मिला है कि पुरानी भारतीय बस्तीमें, जो अभी हाल रहने ही में वतनी बस्ती बना दी गई है, रहने और व्यापार करनेवाले भारतीय सरसरी तौरपर बेदखल किये जा रहे हैं। उन गरीबों के संघर्षका इतिहास बहुत सीधा-सादा है, यद्यपि वह अत्यन्त वेदनापूर्ण है। पिछले साल ही उनके बरबाद कर दिये जानेकी नौबत आ गई थी। तब उन्होंने मामला उच्चाधिकारियोंतक पहुँचाया और पीटर्सबर्गके स्थानिक निकायने कार्रवाई रोक दी। निकायकी सत्ता सीमित थी और उन लोगोंके प्रति और कुछ नहीं किया जा सका। इस सालके शुरू में निकायने सरकारसे प्रार्थना की कि वह भारतीय बस्तीको उठा दे और उसकी जगह वतनी बस्ती बना दे भारतीयोंके अधिकारोंका कोई खयाल किये बिना ऐसा ही किया गया। वतनी बस्तीके नियमोंके अनुसार वहाँ वतनियोंके सिवा कोई अन्य व्यक्ति न तो बस सकता है और न व्यापार कर सकता। इस सत्ताके अधीन निकाय भारतीयोंको बेदखल करनेकी कोशिश कर रहा है। एशियाई संरक्षक श्री चैमनेके हस्तक्षेपसे निकायकी कार्रवाई अस्थायी रूपसे रोक दी गई थी। परन्तु मालूम होता है, अन्तमें निकायकी जीत हुई। और अब वह अप्रत्यक्ष कानून निर्माणकी प्रक्रिया द्वारा निर्दोष व्यापारियोंकी सम्पत्ति और अधि-कारोंको जब्त कर लेनेकी स्थितिमें है। इस कार्रवाईको अच्छी तरह स्पष्ट करनेके लिए हमारे पास "जब्ती" के सिवा और कोई शब्द नहीं है। इन व्यापारियोंने अच्छे भंडार बनानेमें हजारों पौंड खर्च किये हैं। हम जानते हैं कि दक्षिण आफ्रिकामें मजदूरी कितनी महंगी है। लोगोंको

  1. मूलमें खाली जगहों में कुछ शब्द छूट गये हैं। इससे अर्थ अस्पष्ट हो गया है।