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पत्र: दादाभाई नौरोजीको

जानता हूँ उसे देखते हुए परमश्रेष्ठ लॉर्ड मिलनरका उत्तर पढ़कर बड़ा दुःख होता है। इस विषयमें परमश्रेष्ठके नाम एक पत्र[१] लिखनेकी स्वतन्त्रता ले रहा हूँ, किन्तु तबतक यह कह दूं कि मुझे अपने ४ अप्रैलके पत्र से कुछ वापस नहीं लेना है। और यह लिखते हुए मुझे अपनी जिम्मेदारीका पूरा भान है और मैं यह सोच-समझकर लिख रहा हूँ। साथमें मैं इंडियन ओपिनियनकी वह प्रति[२] नत्थी कर रहा हूँ जिसमें डॉ० पोर्टर और मेरे बीचका सारा पत्रव्यवहार दिया हुआ है। मेरी नम्र सम्मतिमें उससे निर्णयात्मक रूपसे यह प्रकट हो जाता है। कि प्लेग कैसे फैला। नगर परिषदकी ओरसे बेदखली सितम्बर, १९०३ में की गई थी और प्लेगका फैलना सरकारी तौरपर २० मार्च, अर्थात् परिषदके कब्जा लेनेके छः महीनेके बाद घोषित हुआ था। जैसा कि पत्रव्यवहारसे मालूम होगा, पहली चेतावनी ११ फरवरी[३] को दी गई थी। १५ फरवरी[४] को निश्चित सुझाव दिये गये ताकि आपत्तिसे बचा जा सके। और मैं अधिक से अधिक आदरपूर्वक, फिर भी जितना जोर देकर कह सकता हूँ, यह कहनेका साहस करता हूँ कि उस तारीख के बाद परिस्थितिको सुधारनेके लिए कुछ भी नहीं किया गया। सचमुच पिछली १८ मार्चके बाद भी बस्तीमें प्लेग के बीमार ला-लाकर पटके जा रहे थे और मैंने उसकी सूचना नगर-परिषदको दी थी। १९ मार्चको टाउन क्लार्कंने खबर दी कि अस्थायी अस्पतालकी तरह काममें लाने के लिए वह सरकारी गोदाम और एक परिचारिका देनेके सिवा २१ मार्चके पहले न बीमारोंकी जिम्मेदारी ले सकता है और न कोई आर्थिक जिम्मेदारी उठा सकता है। यह स्थान पहले चुंगी नाका था। तीस स्वयंसेवक वहाँ लगा दिये गये। जगह भलीभाँति साफ की गई और भारतीय स्वयंसेवक परिचारकोंने, जो बीमार आ रहे थे, सबको भरती करके रात-दिन काम किया। जब डॉक्टर पेक्स और डॉक्टर मेकेंजी अस्पताल देखने आये तब उनकी समझमें परिस्थितिकी गम्भीरता आई और २० तारीखको उन्होंने ज्यादासे-ज्यादा कारगर कार्रवाई की। इस बीच क्या खाट, क्या दवा-दारू, क्या भोजन-हर चीजका सारा प्रबंध भारतीयोंने किया था। यहाँ यह कहना न्यायोचित ही होगा कि उसके बाद नगर-परिषदने खर्च चुका दिया है। वैसे यह सब अप्रस्तुत है; और यदि मैंने भारतीयों द्वारा किये गये कामपर जोर दिया है तो वह यह दिखानेके लिए है कि मैं कटु अनुभवसे कह रहा हूँ और उसमें आवेगका अभाव नहीं है। यदि साथके पत्रव्यवहारमें पेश आँकड़े सही हैं। भले ही मैंने जो नतीजे निकाले हैं उन्हें स्वीकार नहीं किया गया किन्तु आँकड़ोंको किसीने गलत नहीं बताया-तो मैंने अपने पिछले ४ अप्रैलके पत्रमें जो कहा है, उससे कुछ कम कहता तो वह सत्यके पक्षकी सेवा न होती। मैंने उसमें कहा है कि यदि जोहानिसबर्गकी नगरपालिका घोर उपेक्षा न करती तो प्लेग कभी न फैलता। मार्चकी भयंकर मृत्युसंख्याके लिए हर हालत में उसे ही जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए, और किसीको नहीं। परिस्थितिकी गम्भीरता समझने-पर उसने आपत्तिका मुकाबिला करनेमें पैसा पानीकी तरह खर्च किया, इसके लिए अशेष धन्य- वाद; किन्तु उस कामसे भूतकाल तो कदापि नहीं बदला जा सका। यह सत्य है कि बहुत पहले, सन् १९०१ में ही, बस्तीको गंदा घोषित करते हुए लम्बे सरकारी विवरण तैयार कर लिए गये थे, किन्तु फिर भी वह २६ सितम्बर, १९०३ तक उसी स्थितिमें बनी रहने दी गई और उस अवस्थामें प्लेग नहीं फैला। यह विचित्र लग सकता है कि प्लेग उस समय

  1. देखिए, अगला शीर्षक।
  2. ९-४-१९०४ का अंक; देखिए "पत्र: जोहानिसबर्ग के अखबारोंको”, अप्रैल ५, १९०४।
  3. देखिए "पत्र: डॉ० पोर्टरको," फरवरी ११, १९०४।
  4. देखिए "पत्र: डॉ० पोर्टरको," फरवरी १५, १९०४।