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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

भी कमी है। जब श्री क्विनने उनसे कहा कि आपके पहले जो गवाहियाँ गुजरी हैं उनसे आपके ये कथन मेल नहीं खाते, तब श्री वायबर्गने कहा :

यहाँ जो कुछ हो रहा है उसे देखने-समझनेकी मुझे असाधारण सुविधाएँ प्राप्त हैं और मेरा तो खयाल है कि इन बाहरके जिलोंमें तत्काल बहुत अधिक मजदूरोंकी माँग होनेकी कोई सम्भावना नहीं है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ८-१०-१९०३

३. ऑरेंज रिवर कालोनीमें ईश्वरका मजाक

परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नर सर हैमिल्टन जॉन गूल्ड-ऐडम्सने अपने दस्तखतोंसे घोषणा प्रचारित की है कि इस मासका अन्तिम रविवार नम्रता और प्रार्थनाका या कृतज्ञता-प्रकाशनका—जैसी भी स्थिति हो—दिवस नियत किया गया है, "ताकि हम अपने आपको परमात्माके सामने नम्र बनायें और उससे विनती करें कि वह इस देशको अनावृष्टिके कोपसे बचाये और यहाँ विपुल और स्फूर्तिदायिनी वर्षा करे।" घोषणामें आगे कहा गया है कि "अगर सर्वशक्तिमान प्रभुकी इच्छासे इससे पहले ही वर्षा हो जाये तो मैं घोषित करता हूँ कि यह दिन कृतज्ञता-प्रकाशनका दिन मनाया जाये।" यह विधिका विधान है कि इस घोषणाके तुरन्त बाद ही एक नई घोषणा हुई है, जिसमें तमाम रंगदार लोगोंके लिए चेचकके टीके लगवाना अनिवार्य घोषित किया गया है और कहा गया है कि, अगर वे इसमें गफलत करेंगे तो उन्हें पांच पौंड जुर्माना देना होगा, अथवा उसके बदले १४ दिनकी कड़ी कैदकी सजा भुगतनी होगी। इन दो घोषणाओंका साथ-साथ प्रकट होना तो निःसन्देह विशुद्ध संयोगकी ही बात है। चेचकके खिलाफ इस सावधानीको हम तो आवश्यक ही मानते हैं, और जहाँतक रंगदार जातियोंके लिए यह टीका खास तौरपर अनिवार्य कर देनेका सवाल है, उसपर भी हमें कोई बहुत भारी शिकायत नहीं है। परन्तु चूंकि यह दूसरी घोषणा ऑरेंज रिवर उपनिवेशमें हो रही है, अत: यह रंगदार जातियोंके प्रति उस अत्यन्त विरोधी नीतिका नमूना है, जो उपनिवेशको पुरानी सरकारसे विरासतके रूपमें मिली है।

फिर पहली घोषणाका अर्थ क्या रहा? प्राचीन कालमें जब मनुष्य अपने आपको नम्र बनाते थे, तब कुछ त्याग करते, बहुत बड़ा आत्म-निरीक्षण करते, अपने पापोंका प्रायश्चित्त करते और इस तरह जीवनका नया अध्याय शरू करते थे। इस घोषणाका मसविदा श्री एच॰ एफ॰ विल्सनने बनाया है और लेफ्टिनेंट गवर्नरने उसपर दस्तखत किये हैं। क्या इन दोनों सज्जनोंको कभी, क्षण भरके लिए ही सही, यह भी खयाल हुआ है कि इसमें उनका प्रायश्चित्त करनेका कहीं कोई इरादा नहीं है, अथवा जिस सरकारका वे प्रतिनिधित्व कर रहे हैं उसकी नीतिको—चाहे वह पाप-भरी या कैसी भी रही हो—बदलनेका कोई विचारतक नहीं है? हम यह कहनेकी धृष्टता करते हैं कि उपनिवेशमें रंगदार जातियोंके प्रति अन्धा और बुद्धिहीन द्वेष भरा पड़ा है। जिन ब्रिटिश भारतीयोंकी सहायता आवश्यकताके समय उपनिवेशियोंने खुशीसे ली थी, उनके लिए उन्होंने उपनिवेशके द्वार जान-बूझकर बन्द कर दिये हैं। याद रहे, ईश्वरके समक्ष यह एक राष्ट्रीय पाप है। जबतक यह नीति जारी रखी जाती है तबतक उपनिवेशमें सर्वशक्ति