तो अलग परिस्थितिको पहलेसे भांपकर सचमुच बीमारी होनेके एक वर्षसे भी पूर्व तैयारियाँ करके काफी दूरदर्शिताका परिचय दिया है।
बीमारीको भाँपकर रोटफॉंटीनमें अस्पताल वगैरा बनाकर परिषदने तैयारी की, इससे कभी इनकार नहीं किया गया, किन्तु मैं अत्यन्त नम्रताके साथ निवेदन करता हूँ कि एक प्रतिबन्धक उपाय, जो जरूरी था, बिलकुल छोड़ दिया गया, अर्थात् तथाकथित अस्वच्छ क्षेत्रकी सफाईपर ध्यान नहीं दिया गया।
परमश्रेष्ठने अपने खरीतेमें भी कहा है,
बहुत बड़ी हदतक बस्तीके निवासियों और मालिकोंके विरोधके कारण ही उसपर कब्जे और उसकी सफाईमें देर होती गई, यहाँतक कि प्लेग फैल गया।
मैं नम्रतापूर्वक परमश्रेष्ठका ध्यान इस तथ्यकी ओर खींचना चाहता हूँ कि सरकारी तौरपर प्लेगकी घोषणाके पाँच महीने पहले, अर्थात् पिछले वर्ष २६ सितम्बरको कब्जा हो चुका था। और इसलिए [बस्तीको] खाली कराना पूरी तरह नगर परिषदके हाथकी बात थी। सम्बन्धित भारतीयोंका उस दिनसे कब्जा लेने या खाली करानेके प्रति कोई विरोध नहीं था, इतना ही नहीं, वरन् स्वयं मैंने कई बार उनकी ओरसे नगर परिषद तथा उपनिवेश सचिव दोनोंसे नई जगह के लिए प्रार्थना की। परमश्रेष्ठको स्पष्टतया यह बताया गया है कि कब्जा प्लेग फैलनेके बाद लिया गया था। क्योंकि परमश्रेष्ठ अपने खरीतेमें आगे कहते हैं:
कब्जा लेनेकी तिथितक भारतीय खुदमुख्त्यार थे, इसलिए यह बात, कि बस्तीमें भीड़भाड़ रहनेकी हालतका सबब जोहानिसबर्गको नगर परिषदकी लापरवाही थी, सत्यकी स्पष्ट तोड़-मरोड़ ही कही जा सकती है।
अगर कब्जा प्लेगके फैलनेके बाद लिया जाता तो सत्यकी तोड़-मरोड़ करनेका निमित्त बननेका आरोप मैं स्वीकार कर लेता। किन्तु जैसा कहा जा चुका है, तथ्य यह है कि कानूनी और वास्तविक रूपमें भी परिषदने पिछले वर्ष पहली अक्टूबरको कब्जा लिया और अस्वच्छ क्षेत्र के निवासियोंके सुझावके विपरीत तथा आदमियोंकी कमीके कारण बस्तीकी समुचित स्वच्छता बनाये रखनेकी हालतमें न होनेके बावजूद परिषद एकदम हर किरायेदारकी मालिक बन गई। उसने किराया वसूल करनेके लिए दफ्तर खोल दिया और साराका सारा सूत्र संचालन अपने हाथमें ले लिया।
नई सत्ताके हाथमें परिस्थिति इतनी असहनीय हो गई कि वे निवासी, जिनके खिलाफ परमश्रेष्ठ द्वारा उल्लिखित सरकारी विवरणोंमें बार-बार गन्दगीका आरोप लगाया गया था, मेरे पास शिकायतें लेकर आये और इसलिए मैंने इस वर्षकी ११ फरवरीको—अर्थात् प्लेगकी बाकायदा घोषणाके एक महीनेसे भी पहले—उनकी ओरसे डॉ० पोर्टरको लिखा:
मैं आपको भारतीय बस्तीकी भयंकर हालत के बारेमें लिखनेकी धृष्टता कर रहा हूं। कमरोंमें वर्णनातीत भीड़-भाड़ दिखाई पड़ती है। सफाई करनेवाले बहुत अनियमित रूपसे भेजे जाते हैं और बस्तीके अनेक निवासी मेरे दफ्तर में आकर शिकायत कर गये हैं कि अब सफाईकी हालत पहलेसे भी बहुत बुरी है। बस्तीमें काफिरोंकी भी बहुत बड़ी आबादी है, जिसका वस्तुतः कोई औचित्य नहीं है।