२४०. किसानोंका सम्मेलन
सम्मेलनमें अनेक प्रकारके मामलोंकी चर्चा की गई, जिनमें से दोका सम्बन्ध भारतीयोंसे था। कुछ समय हुआ, सम्मेलनने इस आशयका एक प्रस्ताव पास किया था कि सब भारतीयोंको पास रखने चाहिए। किस कारण, यह नहीं बताया गया। शायद गैर-गिरमिटिया भारतीय आवादीका अपमान करनेके सिवा अन्य कोई कारण नहीं था। सरकारने उत्तरमें कहा है कि सम्मेलन जैसा चाहता है वैसा कानून पास करनेके लिए सरकार तैयार नहीं है। इसलिए पादरी जे० स्कॉटने तजवीज पेश की कि वह प्रस्ताव सरकारके पास वापस भेजा जाये। अध्यक्षने बताया कि अगर भारतीयोंपर बहुत अधिक पाबन्दियाँ लगाई गई तो शायद भारत सरकार कोई आपत्ति करे। परन्तु श्री स्कॉटने कहा कि उस सूरतमें नेटाल मजदूर जुटाने के लिए दूसरे साधन काममें ला सकता है। हम चाहते हैं कि ऐसा हो। तभी यहाँ रहनेवाली भारतीय आबादीके बारेमें कोई ठीक समझौता हो सकेगा। इसके अलावा उपनिवेश भारतीय मजदूरोंका आर्थिक मूल्य अनुभवसे जानेगा। रस्किनने कहीं कहा है कि आर्थिक तत्त्वके रूपमें मनुष्यको केवल मशीन समझकर अध्ययन नहीं करना चाहिए, परन्तु उसके सम्बन्धमें विचार उसके सारे मानसिक गुणोंको ध्यान रखकर करना चाहिए। इस दृष्टिसे देखा जाये तो हम मानते हैं कि भारतीय मजदूर संसारमें सबसे अधिक दक्ष हैं। वे कदमें छोटे हो सकते हैं, सुस्त हो सकते हैं, कमजोर हो सकते हैं; परन्तु वे अत्यन्त संजीदा, शिकायत न करनेवाले, धैर्यवान, और दीर्घकालतक कष्ट सहनेवाले होते हैं। इसलिए, अपने मालिकोंको तकलीफ नहीं देते और भरोसेका काम करनेवाले होते हैं। अगर कोई दूसरे मजदूर लाये जायेंगे, चाहे अस्थायी तौरपर ही क्यों न हो, तो भी भारतीय मजदूरोंके सभी विशेष गुणोंकी, जिनको हमने गिनाया है, कद्र की जायेगी। और उनके गुणोंके कारण उनका मूल्य ऊँचा आँका जायेगा। परन्तु जब-तक उपनिवेशके लिए भारतीय मजदूरोंको रखना जरूरी है तबतक उपनिवेशियोंको उन्हीं पाबन्दियोंसे सन्तोष करना चाहिए जिन्हें पहलेसे लगाया जा चुका है; और उनमें प्रत्येक भारतीयको पास रखनेके लिए मजबूर करनेकी अपमानजनक पाबन्दी न बढ़ानी चाहिए। श्री मैक्क्रिस्टलने संयोगवश कहा था कि अधिकतर एशियाई ब्रिटिश प्रजाजन नहीं हैं, बल्कि अरब हैं। कुछ भारतीय बेशक अपनेको अरबी सौदागर कहते हैं, परन्तु इन महाशयके लिए इतना बड़ा अज्ञान प्रकट करनेका यह कोई कारण नहीं है। इस उपनिवेशमें “अरबी" शब्दका उपयोग मुसलमानके अर्थ में होने लगा है, क्योंकि मुस्लिम धर्मका उदय अरबमें हुआ था।
दूसरा मामला, जिसपर सम्मेलनमें विचार किया गया, मजदूरोंकी कमीका था। इस प्रकार सम्मेलनमें एक तरफ तो यह चाहा गया कि भारतीयोंपर और अधिक पाबन्दियाँ लगाई जायें और दूसरी तरफ मजदूरोंकी कमीकी शिकायत की गई। भारतकी भी अपनी सीमाएँ हैं और हमें यह नहीं मान लेना चाहिए कि वह मजदूरोंकी भरतीके लिए कोई अक्षय क्षेत्र है। स्वयं भारत में आन्तरिक प्रवासकी एक व्यापक प्रणाली है और वहाँसे बर्मा और सिंगापुरकी तरफ एक अजस्र धारा बह रही है। उसमें लंका, मॉरिशस और फीजी सहित दूसरे उपनिवेश भी मिला दीजिये। भारतीय मजदूरोंको आकृष्ट करनेवाले अनेक प्रतिस्पर्धियों में नेटाल सिर्फ एक है। इसलिए अगर मजदूरोंपर अत्यधिक प्रतिबन्ध लगानेके कारण उसके मार्गमें बाधा आ जाये तो उसे आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हमें कोई शंका नहीं कि नये प्रवासी-कानूनसे मजदूरोंकी