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२४२. ट्रान्सवालकी रेलोंमें रंगदार यात्री

जोहानिसबर्गके अखबारोंमें परमश्रेष्ठ उच्चायुक्त और रैंड अग्रगामी संघ (रैंड पायोनियर्स) का एक दिलचस्प पत्रव्यवहार प्रकाशित हुआ है। उसका विषय है, ट्रान्सवालके वतनी लोगोंका मध्य दक्षिण आफ्रिकी रेलोंपर पहले और दूसरे दर्जोंमें यात्रा करना। लॉर्ड मिलनरने रैंड अग्र- गामी संघको विश्वास दिलाया है कि आयन्दा छूटके प्रमाणपत्र प्राप्त लोगोंके सिवा और किसी वतनीको रेलोंमें पहले या दूसरे दर्जे में यात्रा नहीं करने दी जायेगी और निरीक्षकों और स्टेशनमास्टरोंको हिदायत कर दी गई है कि रंगदार मुसाफिरोंको गोरे मुसाफिरोंसे अलग रखा जाये। रैंड अग्रगामी संघने अपनी माँग वतनी लोगोंतक ही सीमित रखी है, परन्तु मुख्य व्यवस्थापक श्री प्राइसने जो हिदायतें जारी की हैं, उनके अन्तर्गत ब्रिटिश भारतीयों सहित सब रंगदार लोग आ जाते हैं। अलबत्ता, यह जानकर कुछ सन्तोष होता है कि प्रतिष्ठित ब्रिटिश भारतीयोंको कठिनाईके बिना पहले या दूसरे दर्जेके टिकट मिल जाया करेंगे। प्रयोगके तौरपर प्रिटोरिया-पीटर्सबर्ग मार्गपर रंगदार मुसाफिरोंके लिए विशेष डिब्बे जोड़े जायेंगे। तिलका ताड़ कैसे बनाया जा सकता है, इसका यह एक उदाहरण है। और अगर अलग-अलग जातियोंके लिए अलग-अलग डिब्बे रखने हैं तो तर्ककी दृष्टिसे वतनी लोगों, चीनियों, ब्रिटिश भारतीयों, केपके रंगदार लोगों, बोअरों, अंग्रेजों और जर्मनों वगैरा सबके लिए अलग डिब्बे होने चाहिए। उस सूरतमें बेशक यह सवाल होगा कि इस लाइनको कमाऊ कैसे बनाया जाये। परन्तु ट्रान्सवालकी भावनाका, चाहे वह उचित हो या अनुचित, सम्मान कैसे किया जाये, इसके मुकाबले में वह बहुत छोटी बात होगी। मगर, मजाककी बात छोड़िए। यदि भेद रखना है तो हमारे खयालसे तीन अलग तरह के डिब्बोंकी जरूरत होगी; अर्थात्, यूरोपीयों, वतनियों और एशियाइयोंके लिए। मुख्य व्यवस्थापकका जारी किया गया परिपत्र तो सचमुच भिड़का छत्ता है और हमें पूरा यकीन है कि हमने जो कुछ सुना है वह अन्तिम बात नहीं होगी। रैंड अग्रगामी संघने पहले ही अपना असन्तोष जाहिर कर दिया है और वह नहीं मानता कि ट्रान्सवालके वतनी लोगोंको पहले या दूसरे दर्जे में जरा भी सफर करने दिया जाये। वह मानने से इनकार करता है कि जिनके पास छूटके प्रमाणपत्र हैं और जिनके पास नहीं हैं, उनमें कोई भेद है।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ५-११-१९०४