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२५०. लॉर्ड रॉबर्ट्स और ब्रिटिश भारतीय

हम लॉर्ड रॉबर्ट्सको रजत मंजूषासह मानपत्र भेंट करनेपर ट्रान्सवालवासी स्वदेश भाइयोंको बधाई देते हैं। हम इस मानपत्रकी संलिपि और मंजूषाका विवरण एक दूसरे स्तम्भमें छाप रहे हैं।[१] उनका यह कार्य बहुत ही शोभाजनक था। जैसा कि मानपत्र पर हस्ताक्षर करनेवालोंने कहा है, भारतीयोंके लिए यह कुछ कम गर्व की बात नहीं कि साम्राज्यको इस जमानेका सबसे बड़ा सिपाही भारतने दिया है। अपनी कठोर सैनिकताके बावजूद लॉर्ड रॉबर्ट्समें दयालुता बहुत अधिक है। उन्होंने बोअर युद्धके दिनोंमें कैदियोंके प्रति बरतावमें बहुत ज्यादा लिहाज से काम लिया। भारतीय सिपाहियों और भारतसे सम्बन्धित सभी बातोंमें उन्होंने सदा सहानुभूतिपूर्ण रस लिया है; और ट्रान्सवालके भारतीयोंने इस देशमें आनेपर लॉर्ड महोदयका सम्मान किया यह बिलकुल उचित ही था।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १२-११-१९०४

२५१. तार: दादाभाई नौरोजीको

सेवामें
इनकाज[२]
लंदन

[ जोहानिसबर्ग
नवम्बर १८, १९०४ ]

सारे ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंकी वृहद् सभा। एशियाई सम्मेलनकी कार्यवाहीके विरोध में प्रस्ताव क्योंकि ब्रिटिश प्रजाजनों और अन्यों वतनियों और भारतीयों — में अन्तर नहीं किया गया [ और ] सम्मेलनके प्रस्तावों पर अमलका अर्थ जन्ती और बरबादी, सम्मेलनके आरोपकी खुली जाँचकी माँग, सामान्य आधार पर — जातीयपर नहीं — प्रवास प्रतिबन्ध सिद्धान्त स्वीकृत, कानून सुझाया गया कि स्थानीय निकाय नये व्यापारिक परवाने दें जिनपर सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सके। ब्रिटिश भारतीय

[ अंग्रेजीसे ]

कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स, सी०ओ० २९१, खण्ड ७९, इंडीविज्युअल्स-एन।


जोहानिसबर्ग
नवम्बर १८, १९०४

ट्रान्सवालके व भागोंसे आये हुए ब्रिटिश भारतीयोंकी जोहानिसबर्गमें एक विशाल सभा

  1. यह वस्तुतः नवम्बर १९, १९०४ के अंकमें इस टिप्पणीके साथ छापा गया था: "हमें खेद है कि निम्न रिपोर्ट हमारे पिछले अंकमें शामिल करनेसे छूट गई थी। "देखिए" अभिनन्दनपत्र: लॉर्ड रॉबर्ट्सको", नवम्बर १९, १९०४।
  2. दादाभाई नौरोजीका तारका पता। दादाभाईने तारकी प्रति उपनिवेश सचिवके पास भेजी। (सी० ओ० २९१, खण्ड ७९, इंडीविज्युअल्स-एन) इंडियाने अपने नवम्बर २५, १९०४ के अंकमें तारको निम्नलिखित सम्पादित रूपमें प्रकाशित किया था: