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२५२. मुख्य न्यायाधीश और ब्रिटिश भारतीय

उस दिन सर हेनरी बेलने कहा कि अदालत भवनमें आनेवाले भारतीयोंका व्यवहार जाहिरा तौरपर अनादरपूर्ण होता है, क्योंकि उससे अदालतके प्रति सम्मानका कोई बाहरी लक्षण प्रकट नहीं होता। वे अपनी पगड़ी या टोपी नहीं उतारते, क्योंकि उनका रिवाज इसके विपरीत है, और जूते उतारे नहीं जा सकते, क्योंकि ऐसा करना असुविधाजनक होता है। महानुभावने निर्णय दिया कि प्रत्येक भारतीयको अदालतमें घुसनेपर सलाम करना होगा। अगर यह नहीं किया जायेगा तो इसे अदालतका अपमान समझा जायेगा । हम महानुभावका ध्यान आदर- पूर्वक इस तथ्यकी ओर आकर्षित करते हैं कि पगड़ी बाँधना या भारतीय टोपी लगाना ही आदरका चिह्न है। क्योंकि जैसे यूरोपीय रिवाजके अनुसार किसी स्थानमें प्रवेश करने पर टोप उतारना आवश्यक होता है, वैसे ही भारतीय रिवाजके अनुसार पगड़ी बाँधे रखना या टोपी पहने रहना, जैसी भी स्थिति हो, आवश्यक होता है। आदरका अभाव भारतीयोंकी विशेषता नहीं है, और हम महानुभावको विश्वास दिलाते हैं कि सलाम न करनेमें उनका आशय अनादर करना नहीं हो सकता । सलाम तभी होता है जब सलाम करनेवाले और लेने- वाले दोनोंकी आँखें मिलें और यह अदालत भवनमें सम्भव नहीं, क्योंकि वहाँ तो न्यायाधीश अपने सामने पेश मामलेमें व्यस्त होता है । हमारी रायमें केवल यह एक बात सम्भव है कि गवाहके कठघरेमें जानेपर भारतीयसे बेशक सलाम कराया जाये । मगर हमारे खयालसे यह चेतावनी आवश्यक नहीं है, क्योंकि गवाहके कठघरेमें प्रवेश करनेपर प्रत्येक भारतीय स्वभावसे ही अदालतके प्रति समुचित सम्मान व्यक्त करता है। फिर भी भारतीय मुकदमेबाजोंके लिए यह अच्छा ही है कि जब अदालतोंमें जानेका मौका पड़े तब वे महानुभावकी हिदायतोंको ध्यानमें रखें। हमें किसी भी हालत में किसीको इस सन्देहका भी अवसर नहीं देना चाहिए कि हम न्यायाधीशों अथवा दूसरे अधिकारियोंका कोई अनादर करते हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १९-११-१९०४


उसमें ११ नवम्बरको प्रिटोरियामें हुए “सम्मेलन " की ट्रान्सवालमें एशियाई प्रवास सम्बन्धी कार्यवाहीके विरोध में प्रस्ताव पास किये गये हैं ।

विरोधका आधार यह है कि उक्त " सम्मेलन " ने दक्षिण आफ्रिकाके वतनियों और भारतीयोंमें, जो ब्रिटिश सम्राटकी प्रजा हैं, कोई अन्तर नहीं किया ।

समाने घोषित किया कि यदि “ सम्मेलन" के प्रस्तावोंपर अमल किया गया तो उसका अर्थ जन्ती और भारतीय व्यापारियोंका सर्वनाश होगा ।

इसके अतिरिक्त सभाने “सम्मेलन " के आरोपोंकी खुली जाँचकी माँग की और सामान्य आधारपर - जातीयपर नहीं - प्रवासपर प्रतिबन्ध लगानेका सिद्धान्त स्वीकार किया । यह सुझाया गया कि एक कानून बनाया जाये जिसके अनुसार स्थानीय निकाय नये व्यापारिक परवाने दे; किन्तु उनके बारेमें सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सके ।