२५६. एशियाई - विरोधी सम्मेलन और ब्रिटिश भारतीयोंकी सभा
इसी मासकी १० तारीखको प्रिटोरियामें हुए एशियाई विरोधी सम्मेलनके कुछ उल्लेखनीय परिणाम हुए हैं, जिनकी कल्पना संयोजकोंने शायद कभी नहीं की थी। कुछको छोड़कर बाकी सब दक्षिण आफ्रिकी समाचारपत्रोंने भी उसकी कार्रवाई मनमानी और अन्यायपूर्ण बताई है और उसकी निन्दा की है । लन्दन टाइम्सने इस बारे में अगुआई की है और कहा है कि कार्र- वाईसे प्रतिनिधियोंमें राजनयिक चतुरताका अभाव प्रकट होता है। उसने यह भी कहा है कि इस प्रकारके आन्दोलनसे, चाहे वह कितना ही तीव्र हो, साम्राज्य - सम्बन्धी कर्त्तव्योंकी अवहेलना नहीं करने दी जा सकती और श्री लिटिलटनने अपने खरीतेमें इस प्रश्नपर जो प्रस्ताव रखे हैं उनका त्याग नहीं किया जा सकता एवं ब्रिटिश भारतीयों को हानि नहीं पहुँचाई जा सकती । हमने सम्मेलनके बारेमें सब समाचार पढ़े हैं। हमें जिस बातसे सबसे अधिक दुःख हुआ है, वह यह है कि अगर कार्रवाईका यह सार ठीक है तो, हमारे खयालसे, उससे वक्ताओंका निपट अज्ञानी होना प्रकट होता है । ब्रिटिश भारतीयोंके बारेमें और साम्राज्य सरकारके इरादोंके बारेमें भी अनर्गल बातें कही गई हैं। हमने सुना है कि जो भाषण दिये गये वे अत्यन्त उत्तेजक थे और संवाददाताओंने उनको बहुत नरम बना दिया है। हमें बताया गया है कुछ वक्ताओंने तो साम्राज्य सरकार को भी चुनौती दी। जैसे, जहाँतक यूरोपीयों और भारतीयोंका सम्बन्ध है, यह मान लिया गया है कि यूरोपीय प्रमुख हिस्सेदार रहेंगे; वैसे ही क्या यह तथ्य नहीं है कि जहाँतक साम्राज्य सरकार और उपनिवेशोंका सम्बन्ध है, साम्राज्य सरकारकी आवाज प्रमुख है ? एक बोअर प्रतिनिधिने कहा था, वे जो चाहें सो सब उन्हें मिलना ही चाहिए। यदि सम्मेलनके सदस्योंका यही दावा हो, तो एक अत्यन्त गम्भीर प्रश्न उपस्थित होता है कि उस सम्बन्धका क्या महत्त्व है जिसमें एक पक्षको सब-कुछ लेना जरूरी हो और दूसरे पक्षको सब- कुछ देना । साम्राज्यका वर्तमान रूप न्याय और औचित्यकी नींवपर बना है। उसने सबलसे निर्बलकी रक्षा करनेकी चिन्ता और क्षमताके सम्बन्धमें संसारव्यापी ख्याति प्राप्त की है । युद्धकी अपेक्षा शान्ति और दयाके कामोंसे ही उसने अपना वर्तमान रूप प्राप्त किया है। और, हम कहना चाहते हैं, यदि सम्मेलनके सदस्य यह समझते हों कि उनके स्वार्थीकी पूर्तिके लिए साम्राज्य सरकारकी निश्चित नीति अचानक बदल दी जायेगी और उनके कहनेसे ही, श्री क्विनके शब्दों में, साम्राज्य सरकार यह लूटपाट कर डालेगी, तो वे बड़ी भूल कर रहे हैं। इसलिए यद्यपि सम्मेलनकी हिंसापूर्ण कार्रवाईसे ब्रिटिश भारतीयोंमें डर पैदा होनेकी जरूरत नहीं है, फिर भी यह अच्छा ही हुआ कि ब्रिटिश भारतीय संघने सम्मेलनकी कार्रवाईपर विचारके लिए तुरन्त उपनिवेश-भरके भारतीयोंकी सार्वजनिक सभा[१] बुला ली। हमने पिछले सप्ताह जो पूरा विवरण प्रकाशित किया था उससे जाहिर होता है कि सभामें बहुत लोग उपस्थित थे । उसमें उपनिवेशके तमाम हिस्सोंसे प्रतिनिधि आये थे और उसकी कार्रवाई बिलकुल सौम्य, किन्तु साथ ही काफी जोरदार हुई थी। श्री अब्दुल गनीने अपने भाषण में स्पष्ट किया कि प्रिटो- रियाके सम्मेलनमें उन हालतोंकी कल्पना कर ली गई थी जो कभी थीं ही नहीं, और फिर उनका इलाज शुरू कर दिया गया था । यह भी अच्छा हुआ कि उन्होंने इस तथ्यपर जोर
( इंडियन ओपिनियन', नवम्बर १९, १९०४ )
- ↑ १७ नवम्बरको एशियाई-विरोधी सम्मेलनकी कार्रवाईपर आपत्ति प्रकट करनेके लिए बुलाई गई सभा ।