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४. एशियाई मुहकमा

अन्यत्र हम बारबर्टन गोल्डफील्ड्स न्यूजके संवाददाताका एक पत्र छाप रहे हैं जिसे हमारे सहयोगी रैंड डेली मेलने उचित ही ज्ञानवर्धक बताया है। ट्रान्सवालकी वर्तमान सरकारने उपनिवेशके कार्योके प्रबन्धपर जो भारी खर्च किया है, उसकी चर्चा इस पत्रमें बहुत साफ-साफ भाषामें की गई है। अगर संवाददाताके बताये अंक अविश्वसनीय नहीं है, तो यह बिलकुल साफ है कि पिछली बोअर-सरकार हमारी वर्तमान सरकारके मुकाबलेमें कुछ भी नहीं जँचती। गोल्डफील्ड्स न्यूज़के लेखकने जो लम्बी सूची दी है उसमें हम एशियाई मुहकमेको भी जोड़ सकते है, जिसपर सालाना १०,००० पौंड खर्च किये जाते हैं, और इतनेपर भी एशियाइयोंको उसका तिलभर भी लाभ नहीं मिलता। पिछली सरकारके जमानेमें इस खर्च जैसा कोई खर्च नहीं था, क्योंकि वह भारतीय हितोंकी चाहे कितनी ही विरोधी रही हो, परन्तु उसने अलग एशियाई मुहकमा कभी नहीं खोला था। पाठकोंको याद होगा कि सर पर्सी फिट्ज़पैट्रिकने[१] इस फी-आदमी एक पौंडके भारी अपव्ययका सख्त विरोध किया था, क्योंकि ट्रान्सवालमें पूरे १०,००० भारतीय भी शायद ही हों। फिर जब हम यह खयाल करते हैं कि यह खर्च उन लोगोंके नियन्त्रणके लिए किया जा रहा है जो संसारमें सबसे अधिक निर्दोष है तथा जो कभी पुलिसको परेशान नहीं करते, तो आश्चर्य होता है कि ट्रान्सवाल सरकार इसके औचित्यको कैसे सिद्ध कर सकती है। खैर, सुन रहे हैं कि छंटनी आ ही रही है। उपनिवेशके सारे असैनिक प्रशासनकी सफाई की जानेको है। हमारा तो खयाल है कि एशियाई मुहकमा एक ऐसा मुहकमा है, जिसे सबसे पहले छाँट दिया जाना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ८-१०-१९०३

५. जोहानिसबर्गकी भारतीय बस्ती

जोहानिसबर्ग नगर-परिषदकी स्वास्थ्य-समितिने परिषदके सम्मुख एक प्रतिवेदन पेश किया है जिसे हम स्टारसे लेकर अन्यत्र छाप रहे हैं। इसे पढ़कर दुःख होता है। अगर इस समितिकी सिफारिशोंको नगर-परिषद मान्य कर लेती है और सरकार भी इनके आधारपर दिये गये सुझावोंपर अपनी मंजूरी दे देती है, तो ट्रान्सवालमें बसे अधिकांश भारतीयोंकी किस्मतका फैसला हमेशाके लिए हो जाता है। यह स्मरणीय है कि ट्रान्सवालमें जितनी भारतीय आबादी है उसमें से आधीसे भी अधिक जोहानिसबर्गमें है। नगर-परिषदने जिस बस्तीको हालमें ही जब्त कर लिया है उससे कोई एक मीलके फासलेपर काफिरोंकी वर्तमान बस्ती है, जिसे हमने देखा भी है। समितिकी अपेक्षा है कि जिन लोगोंको पुरानी बस्तीसे स्थान-वंचित किया गया है केवल उन्हींको नहीं, बल्कि जोहानिसबर्ग शहरमें बसे भारतीयोंको भी यहाँ रहनेके लिए मजबूर किया जाये। उनके लिए स्वास्थ्य-समितिने यही जगह चुनी है। साफ-साफ शब्दों में स्वास्थ्य-समितिका सुझाव यह है कि ब्रिटिश भारतीय दुकानदारोंके मुँहकी रोटी छीन ली जाये। वहाँ जानेपर

  1. ट्रान्सवाल विधान परिषद‍्के सदस्य।