पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/३६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३२८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मकानमालिकोंसे, जो फेरेरास बस्तीमें भरे हैं, उसी वर्गके भारतीय मकान मालिकोंमें कोई खास गुण ज्यादा हैं । यह तो सिर्फ इस बातका सबूत है कि मानवका स्वभाव लगभग एक-सा ही होता है, चाहे उसकी चमड़ी गोरी हो या भूरी । [ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २६-११-१९०४

२५८. बॉक्सबर्गके ब्रिटिश भारतीय

बॉक्सबर्गकी भारतीय बस्तीमें रहनेवाले ब्रिटिश भारतीयोंको नीचे लिखी सूचना मिली है :

सूचना

बॉक्सबर्गको एशियाई बस्तीमें रहनेवाले एशियाइयोंको याद दिलाया जाता है कि उनकी किरायेदारी केवल अस्थायी और १९०३ की सरकारी आज्ञा सं० १३७९ के अनुसार एक महीने की पूर्व सूचनापर समाप्य है। इसलिए जो व्यक्ति स्थायी इमारतें बनायेंगे वे अपनी ही जोखिमपर बनायेंगे और यदि किसी समय बस्तीका स्थान बदला गया तो उन्हें उससे जो भी हानि होगी उसका मुआवजा पानेका हक नहीं होगा ।

निवासियों को यह याद दिलाना आवश्यक नहीं था कि उनकी किरायेदारी अस्थायी है, परन्तु सूचनासे कुछ ऐसा अर्थ निकलता है जो अशुभ सूचक है। यह समझना कठिन है कि ये गरीब लोग इधर से उधर क्यों खदेड़े जायें। बस्तीकी स्थितिपर कोई ऐतराज नहीं किया जा सकता, उसमें आवश्यकतासे अधिक भीड़ नहीं है और वह शहरसे पृथक् है । लोगोंको लड़ाईके पहलेसे वहाँ रहने दिया जा रहा है और जो बात गणराज्य सरकारने कभी नहीं की या जिसे वह कभी नहीं कर सकी, वही अब ब्रिटिश सरकारके शासनमें की जा रही है या करने की धमकी दी जा रही है । यद्यपि स्वर्गीय श्री क्रूगरके शासनमें ऐसी सब किरायेदारियाँ अस्थायी थीं, तथापि किसीने कभी किरायेदारोंके कब्जे में हस्तक्षेपका विचारतक नहीं किया था । सूचनामें यह नहीं कहा गया है कि लोगोंको किसी निश्चित समयपर हट जाना होगा; परन्तु स्थायी इमारतें बनानेके विरुद्ध चेतावनी दी गई है। बहुतसे भारतीय अच्छे ढंग से रहनेकी इच्छासे उपयुक्त मकान बनाने लगे हैं और यह सूचना इसीका परिणाम है। इस प्रकार कृत्रिम रूपसे अधिक अच्छे ढंगके जीवनके प्रतिकूल परिस्थितियाँ पैदा की जाती हैं और फिर उनसे जो परिणाम होते हैं उनके लिए दोष दिया जाता है उन लोगोंको, जिन्हें ऐसी निर्योग्यताओंका भार उठाना पड़ता है। बॉक्सबर्गके 'पहरेदार' लोग फिर भी तिरस्कारपूर्वक अँगुली उठाकर कह सकेंगे कि भारतीय भवन-निर्माणपर खर्च नहीं करते और सभ्योचित ढंगसे नहीं रहते । वे लोग यह भूल जायेंगे कि भारतीयोंकी यह दशा परिस्थितियोंकी मजबूरीके कारण है । इस अशुभ अवस्थाका अन्त कब होगा ? यदि सरकार इन लोगोंको हटाना ही चाहती है तो उन्हें स्पष्ट दीर्घकालीन और निश्चित सूचना देना असम्भव क्यों होना चाहिए? और जिन लोगोंने सूचनासे पहले ही कीमती इमारतें बना ली हैं उनके सम्बन्ध में वह क्या करना चाहती है ? हम सरकारसे न्याय और उचित व्यवहारकी अपील करते हैं।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २६-११-१९०४