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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

निश्चय ही वे दक्षिण आफ्रिकामें कभी न आये होते । लेखकने पूर्वी अफ्रिकाका उदाहरण देकर यह बताना चाहा है कि किस प्रकार वहाँ भारतीय छा गये हैं। यह बयान भ्रमोत्पादक है; क्योंकि इसमें जो कुछ कहना अभीष्ट है, उसको देखते हुए यह सही नहीं है । अर्थात्, पूर्वी आफ्रिकामें भारतीयोंने गोरोंकी जगह नहीं ली है। वहाँ जिस तरहकी जलवायु और जमीन है उससे गोरे निवासी आकर्षित नहीं हो सके हैं और इसलिए देशका विकास करनेके लिए भार- तीयोंको प्रोत्साहन दिया गया है। लेखक द्वारा भारतीयोंकी यह प्रशंसा भारतीय मानसके लिए हर्षप्रद है, परन्तु वह सर्वथा भ्रामक है । वस्तुतः हम चाहते थे कि हम इस सारी स्तुतिके पात्र होते । जहाँ इसमें बहुत-कुछ सचाई है वहाँ हमें यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि जब- जब यूरोपीय और भारतीय पारस्परिक सम्पर्क में आये हैं तब-तब यूरोपीयोंने ऊँचे दर्जे की संगठन-शक्ति, कदाचित् ऊँचे दर्जेकी साम्प्रदायिक वृत्ति और उत्कृष्ट दूरदर्शिताका परिचय दिया है । परिणाम यह है कि एक वर्गके रूपमें भारतीयोंका दर्जा नीचा रहा है । लेखकने यूरोपका उदाहरण पहले क्यों नहीं दिया ? वहाँ भारतीयोंके प्रवासपर बिलकुल पाबन्दी नहीं है, तो भी वहाँ भारतीय एक भी गोरेको अपदस्थ करने में समर्थ नहीं हो सके हैं। इसका कारण स्पष्ट है। वहाँ न उनका कोई उपयोग है और न उनकी कोई माँग है । इसके विपरीत दक्षिण आफ्रिकामें ऐसे काम हैं जिन्हें गोरे करना नहीं चाहते और काफिर कर नहीं सकते । इसी कारण भारतीयोंके लिए दक्षिण आफ्रिकामें रहना सम्भव हो सका है। कुछ उदाहरणोंमें एक- दूसरेके क्षेत्रमें हस्तक्षेप हो सकता है । लेकिन आम तौरपर प्रत्येक जातिको अपना स्तर और अपना धंधा मिल गया है। हमारे खयालसे किसीका यह कहना दुस्साहस ही है कि गोरोंका स्थान भारतीयों द्वारा ले लेनेका कोई गम्भीर खतरा है। इस तर्ककी तरह ही, जिसपर हम विचार कर रहे हैं, चौंकानेवाले तर्कोंका उद्देश्य यह है कि असली मुद्दा गड़बड़में पड़ जाये और समस्याका उचित हल रुक जाये । दूरदर्शिताको काम यह है कि आगेकी बात सोचकर उसके पक्ष या विपक्ष में व्यवस्था की जाये । परन्तु जहाँ कोई खतरा न हो वहाँ खतरेकी कल्पना कर लेना पागलपन-भरी दूरदर्शिता है । किसीका यह कहना नहीं है कि दक्षिण आफ्रिकामें एशियासे या, यों कहिये कि, संसारके किसी भागसे आनेवाले प्रवासियोंपर बिलकुल पाबन्दी ही न लगाई जाये । उचित प्रतिबन्ध प्रस्तावित हुए हैं और यदि उनपर अमल नहीं हुआ तो इसमें केवल उन लोगोंका कसूर है जो "आंग्ल भारतीय " के विचारोंसे सहमत हैं । यह आंग्ल भारतीय " भारतमें रह चुका है इसलिए संसार में अन्य किसीकी भी अपेक्षा उसे ज्यादा मालूम होना चाहिए कि उसके लेखमें जिस खतरेकी भविष्यवाणी की गई है वह केवल भ्रम है ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियनइटैलिक टेक्स्ट, ३-१२-१९०४