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२६१. पत्र :"स्टार " को[१]

२५ व २६ कोर्ट चेम्बर्स
रिसिक स्ट्रीट
[ जोहानिसबर्ग ]
दिसम्बर ९, १९०४

महोदय,

आपके ८ तारीखके अंकमें श्री टी० क्लाइनेनबर्गके नामसे जो पत्र प्रकाशित हुआ है, उसके सिलसिले में मैं उनके वक्तव्यपर[२] विचार प्रकट करनेकी स्वतन्त्रता लेता हूँ। मैं श्री क्लाइनेनबर्गके दिये हुए आंकड़ोंको स्वीकार नहीं करता। मैं नहीं मानता कि इस समय पीटर्स- बर्गमें ४९ भारतीय व्यापारी हैं। भारतीय बस्तीसे अलग पीटर्सबर्ग नगरमें भारतीयोंके केवल २८ वस्तु-भंडार हैं और इनमें कुछके मालिक एक ही भारतीय हैं। मैंने अपने पहले बयानमें संशोधन करनेका प्रयत्न किसी तरह भी नहीं किया। मैंने उसमें इस आरोपका खण्डन किया था कि युद्धके पहले और उसके बाद नगरमें कारोबार करनेवाले भारतीय व्यापारियोंकी संख्याके अनुपात में बहुत विषमता है । युद्धके पहले जो लोग परवानोंके बिना व्यापार करते थे, वे कानून भंग करनेवाले नहीं कहे जा सकते। और खास तौरसे श्री क्लाइनेनबर्ग तो ऐसा कह ही नहीं सकते, क्योंकि वे ठीक-ठीक हालत जानते हैं और उन्हें श्रेय देनेके लिए कहा जाये तो शायद उन्होंने यह परिस्थिति पैदा करनेमें मदद भी की थी। यह सच है कि भारतीय परवानोंके बिना व्यापार करते थे; परन्तु वे वकीलोंकी सलाहसे, गणराज्य सरकारकी जानकारीमें, परवानोंका शुल्क देनेका लिखित वादा करके और ब्रिटिश सरकारके संरक्षणमें ऐसा करते थे। अगर यह कानूनको भंग करना था तो मुझे स्वीकार करना होगा कि मैं इन शब्दोंका अर्थ नहीं जानता । युद्धके पहले नगरके अन्दर कमसे कम २३ भारतीय वस्तु भण्डार थे। उनके नाम नीचे दिये जा रहे हैं।[३] सम्भवतः उनकी संख्या इससे ज्यादा थी, परन्तु मैं अभी जो संख्या और नाम दे रहा हूँ उनके बारेमें मेरे पास अकाट्य प्रमाण मौजूद हैं। जिस मूल सूचीसे ये नाम लिये गये हैं वह सरकारके सामने पेश करनेके लिए मार्च, १९०३ में बनाई गई थी । मैं समझता हूँ कि मैंने श्री क्लाइनेनबर्गको जाँच-पड़ताल करनेके लिए काफी सामग्री दे दी है । अगर मेरे आँकड़े गलत हों तो मुझे उनमें सुधार स्वीकार कर लेने में खुशी होगी। इसके विपरीत, अगर

  1. यह " श्री क्लाइनेनवर्ग और ब्रिटिश भारतीय संघ" शीर्षकसे छपे एक लेखके भागके रूपमें इस प्रारम्भिक टिप्पणीके साथ प्रकाशित किया गया था :स्टारके साथ निम्न पत्र-व्यवहार हमारे इससे पहले के अंकोंमेंसे सामग्रीकी अधिकतासे बच गया था । विलम्बसे ही सही, हम इसे श्री अब्दुलगनीके ब्रिटिश भारतीयोंकी सार्वजनिक सभामें, जो अभी जोहानिसबर्ग में हुई थी, दिये गये वक्तव्यकी सत्यता प्रमाणित करनेके लिए प्रकाशित करते हैं । श्री क्लाइनेनवर्गके पत्रकी संलिपि, जिसका उत्तर इस पत्र में दिया गया है, यहाँ छोड़ दी गई है ।
  2. उसमें ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्षको चुनौती दी गई है कि वे श्री क्लाइनेनबर्ग द्वारा राष्ट्रीय सम्मेलन में पेश किये गये अंकोंको गलत साबित करनेके लिए प्रमाण दें ।
  3. देखिए अगला अनुच्छेद ।