फिर, बस्तियोंके लोग इसलिए तैयार थे कि वहाँ जो खाद्यपदार्थ पाये गये थे, वे उनको ही बाँट दिये जायें। इस सबके बावजूद सारेके-सारे सामानका जो विनाश किया गया उससे सार्व- जनिक सुरक्षा जरा भी बढ़ी हो, इसमें हमें बहुत सन्देह है। कुछ भी हो, अगर रैंड प्लेग- समितिने गरीब लोगोंका माल जला डालनेका आनन्द लेना पसन्द किया था तो अब वह उसका मूल्य चुकानेकी जिम्मेदारीसे बच नहीं सकती । उपर्युक्त परिस्थितियोंमें कानूनी संरक्षणका सहारा लेकर भुगतानको टालनेकी कोशिश करना, हमारे नम्र विचारमें, नितान्त अपयशजनक है। हम यह बात दस बार दुहरायेंगे कि प्लेग जोहानिसबर्ग नगरपालिकाकी पूर्ण उपेक्षासे फैला था । यह स्वीकार किया जा चुका है कि उस संकटके समयमें भारतीयोंने अपना व्यवहार अत्यन्त आदर्श रखा । नगरपालिकाके उत्तरदायी अधिकारीके वादेपर विश्वास करके वे अधिकारियोंको जरा भी कष्ट दिये बिना जल्दीसे-जल्दी क्लिपस्प्रूट चले गये थे। ऐसे लोगोंके न्यायपूर्ण दावे माननेसे मुकरनेका अर्थ बिना किसी औचित्यके उनकी सम्पत्तिको जब्त कर लेना है । जब घेरा डाला गया तब बस्तीमें थोड़े से अभागे लोग बचे थे । उनका सारा माल असबाब जला देना एक हृदयहीन और, रैंड प्लेग-समिति जैसी महान संस्थाके लिए अयोग्य कार्रवाई थी । जो लोग क्लिपस्प्रूट चले गये थे और जिन्हें लगभग प्रतिबन्धमें रखा गया था और अपना रोजमर्राका धंधा करनेसे रोक दिया गया था, वे सहानुभूति और ज्यादा अच्छे सलूकके पात्र हैं । हमें आशा है कि स्थानापन्न लेफ्टिनेंट गवर्नर महोदय श्री अब्दुल गनीके आवेदनपत्रपर ध्यानपूर्वक विचार करेंगे और मुआवजा चुकानेका आदेश देकर ब्रिटिश भारतीयोंके प्रति न्याय करेंगे ।
[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १०-१२-१९०४
२६३. पीटर्सबर्ग के भारतीय
श्री अब्दुल गनीने हाल ही में जोहानिसबर्गकी एक सार्वजनिक सभामें भाषण करते हुए पीटर्सबर्ग में युद्धके पहले और बाद व्यापार करनेवाले भारतीय व्यापारियोंकी जो संख्या बताई थी उसे पीटर्सबर्ग के श्री क्लाइनेनबर्गने स्टारमें प्रकाशित एक पत्रमें चुनौती दी है। अपने कथनके समर्थनमें श्री क्लाइनेनबर्गने कुछ आँकड़े दिये हैं और गर्वपूर्वक घोषणा की है कि यदि उनके आंकड़ोंको गलत सिद्ध कर दिया जाये तो वे ५० पौंड दण्ड देंगे जो नासरत- हाउसको भेज दिया जायेगा । शर्त यह है कि अगर वे आँकड़े ठीक सिद्ध हो जायें तो दूसरा पक्ष भी उतनी ही रकम दण्डमें देनेके लिए तैयार हो । श्री अब्दुल गनीने तत्परताके साथ स्टारको पत्र लिखा है जिसमें यह चुनौती स्वीकार की गई है। हमें आश्चर्य है कि इतना अनुभव रखते हुए भी श्री क्लाइनेनबर्ग दूसरोंके दिये हुए आँकड़ोंसे भ्रान्त हो गये । वास्तवमें, अगर युद्धके पहले ब्रिटिश भारतीय व्यापारियोंको दिये गये परवानोंकी संख्या प्रत्यक्ष व्यापार करने- वालोंकी असली संख्या जानने की कोई कसौटी होती तो हमें मालूम होता कि सारे ट्रान्सवालमें मुश्किलसे १०० भारतीय व्यापारी थे। मगर असल बात दूसरी ही थी । इस देशके बारेमें जानकारी रखनेवाले प्रत्येक व्यक्तिको मालूम है कि बस्तियोंके बाहर ट्रान्सवालमें १०० से बहुत अधिक ब्रिटिश भारतीय व्यापारी अपना कारोबार चला रहे थे । यह स्थिति इसलिए सम्भव हुई थी कि ब्रिटिश एजेंटने परवानोंसे रहित भारतीय व्यापारियोंको दृढ़तापूर्वक संरक्षण प्रदान किया था । इस तरह, भारतीयोंकी सभामें जो यह कहा गया था कि ट्रान्सवालकी इस