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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बस्ती के सर्वोच्च व्यक्ति भी सही जानकारी नहीं रखते और अपना मतामत बनानेके पहले अपने तथ्योंका भलीभाँति अध्ययन नहीं करते, उसका, यह घटना, एक प्रमाण है । और श्री क्लाइनेनबर्ग यह भी भूलते हैं कि माल-दफ्तर (रेवन्यू ऑफिस) ने उन्हें भारतीय परवानोंकी जो संख्या दी है, उसमें पीटर्सबर्गकी भारतीय बस्तियोंमें रोजगार करनेवाले भारतीय व्यापारी भी शामिल हैं, जिनकी संख्या बड़ी है। इन भारतीय बस्तियोंमें व्यापार करनेवाले लोग इस विवादमें बिलकुल शामिल नहीं हैं । सम्मेलनकी कार्रवाईका लक्ष्य वे रोजगार थे, जो भारतीय बस्तियों या बाजारोंके बाहर स्थित हैं। इसलिए हम आशा करते हैं कि या तो श्री क्लाइनेनबर्ग औचित्य और न्यायके नाते अपनी गलती स्वीकार कर लेंगे या, अगर वे श्री अब्दुल गनीका स्पष्टीकरण स्वीकार न करते हों तो, अपने कथनको प्रमाणित करनेका प्रयत्न करेंगे ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १०-१२-१९०४

२६४. पत्र : दादाभाई नौरोजीको

२१-२४ फोर्ट चेम्बर्स
नुक्कड़, रिसिक और एंडर्सन स्ट्रीट्स
पो० ऑ० बॉक्स ६५२२
जोहानिसबर्ग
दिसम्बर १०, १९०४

सेवामें

श्री दादाभाई नौरोजी
२२ केनिंगटन रोड

लंदन द. पू. इंग्लैंड

प्रिय महोदय,

इंडियन ओपिनियनने अपने जीवन-कार्यकी तीसरी मंजिलमें प्रवेश किया है । जो महत्त्वपूर्ण कदम[१] इसके सम्बन्धमें उठाया गया है उसकी बातसे आपको थकाऊँगा नहीं। इस महीनेमें सारी तफसील उसमें प्रकाशित होगी, तब आप देख लेंगे।[२] ऐसा विचार किया गया है कि अब उसमें इंग्लैंडसे सार्वजनिक दिलचस्पीकी एक साप्ताहिक या पाक्षिक चिट्ठी हो; किन्तु उसमें दक्षिण आफ्रिकामें भारतीय प्रश्नकी लंदनमें समय-समयपर होनेवाली प्रतिक्रियाका खास तौरपर जिक्र हो । क्या आप किसी ऐसे सज्जनका नाम सुझा सकेंगे जो यह काम कर सकें और यदि कर सकें तो किस दरपर। इस सप्ताह प्रश्नसे सम्बन्धित मुझे कुछ विशेष नहीं कहना है ।

आपका सच्चा,
मो० क० गांधी

मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस० एन० २२६५ ) से ।

  1. यह संकेत पत्रका कार्यालय फीनिक्स में ले जानेकी ओर है ।
  2. देखिए “ अपनी बात ", दिसम्बर २४, १९०४ ।