पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/३७१

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२६७. राजनयिक श्री लवडे !

हमें अपने सम्पादकीय स्तम्भमें नीचेका विवरण देते हुए बड़ी प्रसन्नता होती है। इसके लेखक पाँचेफस्ट्रमकी सभाका विवरण[१] देनेके लिए हमारे द्वारा विशेष रूपसे वहाँ भेजे गये थे, और श्री लवडेने, उस अन्यथा गम्भीर रह सकनेवाली सभाको जिस वातावरण और कटुतासे व्यंजित करना ठीक समझा उसपर एक अंग्रेज होते हुए भी लेखकने बड़ी तीव्रतासे क्षोभ प्रकट किया है; और यद्यपि सिद्धान्त रूपसे हम अपने सम्पादकीय स्तम्भों में तीखी, चुटीली शैलीके विरुद्ध हैं। फिर भी इसे अपवाद मानकर देनेमें हमें हिचक नहीं है, क्योंकि यह एक ऐसे व्यक्तिकी सच्ची भावनाओंको प्रतिध्वनित करता है जो उन कार्यवाहियोंका साक्षी था और जिसे उसकी सत्य- न्याय बुद्धिने अंधेको अंधा कहनेसे विरत नहीं किया।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १७-१२-१९०४

२६८. क्वीन स्ट्रीटकी काफिर-मंडी!

जिन लोगों का क्वीन स्ट्रीटकी शर्मनाक काफिर-मंडीकी व्यवस्थासे सम्बन्ध है उनके विरुद्ध चारों ओरसे निन्दाकी आवाज उठी है । हम उनका पूरी तरह साथ देते हैं । यह जितनी जल्दी हमारे बीचसे मिटा दी जाये, सब सम्बन्धित जनोंके लिए उतना ही अच्छा होगा । हम इस चर्चा में भारतीय प्रश्नको बीचमें लानेकी प्रवृत्ति देख रहे हैं । परन्तु थोड़ा विचार करनेसे ही मालूम हो जायेगा कि उससे भारतीय प्रश्नका कोई सम्बन्ध नहीं है। यह सही है कि ऊपरी क्षेत्रका मकान मालिक एक भारतीय है । पाठकोंको याद होगा कि ऐसी मंडियाँ दो थीं। उनमें से एक मालिक श्री उमर हाजी आमदने अपनी मंडी, ज्यों ही उनका ध्यान इस आपत्तिजनक वस्तुकी ओर दिलाया गया त्यों ही, तुरन्त बन्द कर दी। इससे भारतीयोंके स्वभावका उज्ज्वल पक्ष प्रकट होता है । दूसरी मंडीका मालिक हठी है और नगर परिषदको कठिनाईका सामना करनेका कोई रास्ता खोजना पड़ेगा। परन्तु सम्भवतः यह याद रखना अच्छा होगा कि यह जगह यूरो- पीयोंको किरायेपर दी गई है और वे ही मंडीका प्रबन्ध कर रहे हैं। यह सवाल हरएक समाजके लिए मामूली सामाजिक दबाव डालनेका है और आवश्यकता हो तो इसमें कुछ कानूनी मदद ली जा सकती है। इस बुराईके साथ भारतीयोंका वर्गके रूपमें उतना ही सम्बन्ध है, जितना यूरोपीयोंका; और यदि यह हकीकत ध्यानमें रखी जाये और जिन दूसरे जातीय प्रश्नोंका इस मामले पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता उनसे दूर रहा जाये तो इससे समाज तन्त्रके निर्विघ्न संचालनमें सुविधा होगी ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १७-१२-१९०४

  1. इस सम्पादकीय टिप्पणीके बाद दिया गया सभाका विवरण यहाँ छोड़ दिया गया है ।