२६९. कोयलेकी खानोंके गिरमिटिया मजदूर
नेटालकी कोयले की खानोंके गिरमिटिया मजदूरों की स्थितिपर हम अन्यत्र विटनेसके प्रतिनिधिकी रिपोर्ट छाप रहे हैं। यदि ये आरोप सच हैं तो उनसे पता चलता है कि स्थिति भयंकर है। हमारे सहयोगीने जाँचकी माँग की है। हम उसके इस अनुरोधमें उसके साथ हैं । खान मालिकों को इसका स्वागत करना चाहिए। लेकिन अगर जांच की जाती है तो, हमें विश्वास है कि, वह खुली, सार्वजनिक और पूर्णतः निष्पक्ष होगी । विश्वास जमाने के उद्देश्यसे आयोग में प्रमुखता गैर-सरकारी सदस्योंकी होनी चाहिए; और, यदि हम यह कह सकें तो, उनमें एक प्रतिष्ठित भारतीय भी हो। इस उपनिवेश में गिरमिटिया मजदूरोंकी सामान्य स्थिति सन्तोषजनक है और यदि सन्देहके भी कारण दूर कर दिये जायें तो इससे उसकी नेकनामीमें वृद्धि ही होगी ।
[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १७-१२-१९०४
२७०. पॉचेफस्ट्रमकी सभा
अब हम पाँचेफस्ट्रमकी आम सभामें पास किये गये प्रस्तावोंको लेना चाहते हैं और बताना चाहते हैं कि वे गलतबयानियोंसे कितने भरे हुए हैं ।
हम एक-एक प्रस्ताव क्रमानुसार लेंगे ।
पहला इस वक्तव्य से प्रारम्भ होता है :
जब कि इस देशकी सरकार और इंग्लैंडकी सरकारने निर्णय कर लिया है कि एशियाइयोंको गिरमिटपर ही प्रवेश करनेकी अनुमति होनी चाहिए और एशियाइयोंके प्रवासका नियमन करनेके लिए एक श्रमिक आयातक अध्यादेश (लेबर इम्पोटेंशन ऑडिनेन्स ) पास हो गया है।
अब, न ब्रिटिश सरकारने और न ट्रान्सवाल सरकारने निर्णय किया है कि एशियाई प्रवास केवल गिरमिटपर ही हो सकता है । “एशियाइयोंके प्रवासका नियमन करनेके लिए" भी कोई श्रमिक- आयातक अध्यादेश पास नहीं हुआ । जो वास्तवमें हुआ है सो यह है । इस वर्ष, ११ फरवरीको “ ट्रान्सवालमें अकुशल अयूरोपीय श्रमिकोंके प्रवेशके नियमनके लिए" एक अध्यादेश, सन् १९०४ का सं० १७ स्वीकृत किया गया । वास्तवमें यह बिलकुल ही अलग प्रस्ताव है और ऐसा है जिससे मामलेका समूचा रूप बदल जाता है। इसके अतिरिक्त इसी अध्यादेशके खण्ड ३४ में हम पढ़ते हैं :
गवर्नर द्वारा स्वीकृत रेलमार्गोंके बनाने या अन्य सार्वजनिक कामोंके लिए नियुक्त उन ब्रिटिश भारतीय मजदूरोंपर इस अध्यादेशमें कही गई कोई भी बात लागू नहीं होगी जिन्हें इस कालोनीमें लेफ्टिनेंट गवर्नर द्वारा प्रवेश दिया गया है; सिवा इसके