कि यह प्रवेश सदा उन नियमोंके अनुसार होगा जिन्हें विधान परिषद स्वीकार करे; और भी, सिवा इसके कि श्रमिकोंकी अपने मूल-देशमें वापसी आवश्यक परिवर्तनोंके साथ ऐसे ब्रिटिश भारतीयोंपर लागू होगी।
इस तरह इस अध्यादेशके मार्गदर्शक नियमोंका न केवल सिर्फ "अकुशल" अयूरोपीय श्रमिकोंसे ताल्लुक है; और ब्रिटिश भारतीय श्रमिक अध्यादेशकी कार्य-परिधिसे साफ तौरपर न केवल बाहर बताये गये हैं; बल्कि उनकी विशेष परिस्थितिसे निपटनेके लिए विधान परिषद् में विशेष नियम बनाना आवश्यक होगा । और, "ब्रिटिश भारतीयोंका निर्बाध प्रवेश " -- इस वाक्यांशमें यह गृहीत है कि देशमें भारतीय बड़े पैमाने पर प्रवेश करते रहे हैं। तथ्य यह है कि वास्तविक शरणार्थियों को छोड़कर ब्रिटिश भारतीयोंका प्रवेश एकदम बन्द कर दिया गया है ।
हमारे पाठकोंको यह भलीभाँति याद होगा कि कुछ ही महीने पहले प्रमुख अनुमतिपत्र- सचिवने उच्चायुक्तको सूचित किया था कि किसी नये भारतीयको उपनिवेशमें प्रवेश नहीं करने दिया जाता और अनुमतिपत्र वास्तविक शरणार्थियों को इक्के-दुक्के दिये जाते हैं ।
दूसरे प्रस्तावमें कहा गया है :
जबकि एशियाइयोंको खुले हाथों व्यापार-परवाने दिए जानेसे पोटर्सबर्ग में गोरोंकी अपेक्षा एशियाइयोंकी संख्या तिगुनी है ।
पीटर्सबर्ग में युद्ध के पहले २३ भारतीय भण्डार थे, तथ्य यह है। इस समय यह संख्या २८ है । हम कहनेकी स्वतन्त्रता लेते हैं कि पीटर्सबर्ग में गोरोंके भण्डार १४ से अधिक हैं ।
प्रस्ताव सं० ३ एशियाइयों द्वारा किरायेपर लिये गये भण्डारों और जमीनोंसे लगी हुई जायदादोंकी कीमतें गिरनेका उल्लेख करता है। तथ्य फिर यही है कि वास्तवमें भारतीयों द्वारा किराये पर लिये गये भण्डारों और जमीनोंसे लगी हुई जायदादोंकी कीमतें बढ़ गई हैं, कारण सीधा है कि उनका अच्छा किराया मिलता है ।
और अधिक तफसीलमें जानेकी जरूरत नहीं है । यदि प्रस्तावोंमें, जैसी हमने ऊपर बतायी हैं, ऐसी अतिशयोक्तियाँ हैं तो नतीजा साफ निकलता है कि उनपर बोलनेवाले वक्तव्योंकी असावधानी में पीछे नहीं रहे हैं।
[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १७-१२-१९०४