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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/३७८

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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

बाँटा जा सकता है। इस तरह प्रबन्धकोंको हर सप्ताह बहुत बड़ी रकम जुटानेकी जरूरत न होगी। कार्यकर्ताओंको यह भी सहूलियत दी जा सकती है कि अगर वे चाहें तो अपने मकानकी जमीन लागत मूल्यपर खरीद लें।

ऐसी अच्छी अवस्थाओं और सुन्दर स्थितियोंमें, जिनके कारण नेटालका नाम उद्यान-उपनिवेश (गार्डन कालोनी) पड़ा है, रहते हुए कार्यकर्ता अधिक सादा और प्राकृतिक जीवन बिता सकते हैं। साथ ही वहाँ रस्किन और टॉल्स्टायके विचारोंका शुद्ध व्यापारिक सिद्धान्तोंके साथ समन्वय भी किया जा सकता है। या, यह भी हो सकता है कि अगर कार्यकर्ता चाहें तो वे शहरी जिन्दगीकी कृत्रिमता फिरसे पैदा कर लें। फिर भी आशा तो यह की जा सकती है कि हमारी योजनाकी तहमें जो भावना है और कार्यकर्ता जिन परिस्थितियोंमें रहेंगे उनका उनके ऊपर शिक्षाप्रद प्रभाव होगा। वहाँ यूरोपीय और भारतीय कार्यकर्ता ज्यादा नजदीकी और भाई-चारेके साथ मिलजुलकर रहेंगे। यह भी सम्भव है कि रोजाना काम करनेका समय घटाया जा सके। हरएक कार्यकर्ता खुद अपनी खेती कर सकता है। अंग्रेज कार्यकर्ता इस तानेको झूठा साबित कर सकेंगे कि दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले अंग्रेज जमीन जोतना और अपने हाथसे काम करना नहीं चाहते। यहाँ उन्हें ऐसे कामके लिए सब सहूलियतें उपलब्ध होंगी और कमियाँ कोई न होंगी। भारतीय कार्यकर्ता जो अभी थोड़ेसे लाभके लिए निरन्तर गुलामोंकी तरह परिश्रम किया करते हैं, अपने यूरोपीय भाईका अनुकरण करके स्वस्थ मनोरंजनकी शान और उपयोगिता समझ सकेंगे।

सब लोगोंको देनेवाली तीन बातें होंगी—इंडियन ओपिनियनके रूपमें एकप्रेरणा आदर्शके लिए काम करना; निवासके लिए पूरी तरहसे स्वास्थ्यप्रद वातावरण और अत्यन्त अनुकूल शर्तोंपर: तुरन्त जमीन

पानेकी सम्भावना; और योजनामें सीधा ठोस स्वार्थ और हिस्सा। संक्षेपमें, यही हमारे तर्ककी रूपरेखा थी, जो अब कार्यरूपमें परिणत की जा चुकी है। छापाखाना नॉर्थ कोस्ट लाइनके फीनिक्स स्टेशनके पास जमीनके एक बड़े टुकड़ेपर ले आया गया है। वहाँ अंग्रेज और भारतीय कार्यकर्ता योजनाको कार्यान्वित करनेमें लगे हुए हैं। अभी उसके नतीजे का अनुमान लगानेका समय नहीं आया है। क्योंकि, प्रयोग बड़ा साहसपूर्ण है और उसमें बहुत महत्त्वके परिणाम सन्निहित हैं। हमें किसी भी ऐसे धार्मिकेतर संगठनका ज्ञान नहीं है, जो उपर्युक्त सिद्धान्तोंके अनुसार चलाया जाता हो या चलाया गया हो। अगर यह सफल हुआ तो हम जरूर यही खयाल करेंगे कि यह अनुकरण के योग्य होगा। हम अवैयक्तिक रूपसे लिख रहे हैं और इस पत्रके कार्यकर्ता-मण्डलमें से कोई भी सामग्री के लिए विशेष श्रेयका दावा नहीं करता। इसलिए हम मानते हैं कि जनताके सामने सारी बात प्रकट कर देना ही उचित है। जनताका समर्थन हमें बहुत प्रोत्साहन देगा और निस्सन्देह योजनाकी सफलतामें बहुत सहायक होगा। हम दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले दोनों महान समाजोंसे अनुरोध कर सकते हैं, और हमें विश्वास है कि वे इस योजनाको सफल बनाने में व्यवस्थापकोंकी सहायता करेंगे। हमारा विश्वास है कि योजना सफल बनाने योग्य है।
[ अंग्रेजी से ]
इंडियन ओपिनियन, २४-१२-१९०४