२७३. जाँचके योग्य मामला
भारतीय गिरमिटिया मजदूरों को मारने-पीटने के सम्बन्धमें हाल ही लेडीस्मिथमें जो मुकदमे चले हैं उनकी कार्रवाइयाँ सहयोगी नेटाल विटनेस प्रमुखताके साथ प्रकाशित करता जा रहा है। रैमजे कोयला खानके एक यूरोपीय भूगर्भ-प्रबन्धकके विरुद्ध खानके एक भारतीय गिरमिटिया मजदूरको मारने-पीटने के आरोपमें जो मुकदमा चला, उसकी कार्रवाईके लिए नेटाल विटनेसने अपने इसी १६ तारीखके अंकमें डेढ़ कालम स्थान दिया है। इसके लिए वह बधाईका पात्र है। प्रबन्धक-को अपराधी करार दिया गया है। राजकी ओरसे सार्जेन्ट लेम्प्रियरने निर्भीकताके साथ जो बयान दिया उसके मुताबिक मारपीट संगीन थी। साथ-साथ एक स्त्रीके बेचे जानेकी भी बात उठी थी। अगर वह सच है तो भारी कलंककी बात है। सन्तोष इस बातका है कि इस उपनिवेशमें इस सार्जेन्टके समान सरकारी वकील मौजूद हैं, जो अपने कर्त्तव्यसे विचलित नहीं होते। तथापि सरकार द्वारा इस सारे मामले की सावधानीके साथ जाँच की जानेकी जरूरत है। मुकदमेकी कार्र-वाई पढ़नेसे मनपर एक बुरा प्रभाव रह जाता है। निष्पक्ष जाँचसे सचाई प्रकट हो जायेगी और, जैसा कि हम पहले कह चुके हैं, कोयला खान कम्पनीको इस जाँचका स्वागत करना चाहिए।
इंडियन ओपिनियन, २४-१२-१९०४
२७४. पॉचेफस्ट्रम के पहरेदार और ब्रिटिश भारतीय
पॉचेफस्ट्रूमके “पहरेदार" (पॉचेफ्स्ट्रम विजिलैंट्स) फिर पागल हो रहे हैं। वे अपने शहर से सब भारतीयोंको बिलकुल निकाल देना चाहते हैं। अपने पहले जोश-खरोशके बाद, हमें याद होगा, वे बहुत कुछ ठंडे पड़ गये थे, और अपने वॉक्सबर्गके मित्रोंके विरोध करनेपर भी उन्होंने फैसला किया था कि जिन भारतीयोंको बाजारोंमें खदेड़ा गया है, उन्हें मुआवजा दिया जाये। परन्तु अब साफ मालूम होता है कि उन्हें अपनी उस नमपर पछतावा हुआ है। अब वे कानूनको अपने हाथ में लेना और पॉचेफस्ट्रममें आतंकका राज्य जमाना चाहते हैं। भारतीय किसीको हानि नहीं पहुँचाते और कानूनका पालन करनेवाले लोग हैं। फिर भी "पहरेदार" उनकी धार्मिक भावनाओंकी अवहेलना करेंगे। वे अपने शहर में भारतीयोंको मसजिद नहीं बनाने देना चाहते। जो लोग भारतीयोंके साथ किसी भी प्रकारका कारोबार करेंगे वे उनका जीवन दूभर कर देंगे। गृहस्थोंको सामाजिक बहिष्कारके द्वारा भारतीयोंसे सौदा न खरीदने के लिए बाध्य किया जायेगा। इसी प्रकार व्यापारी उनके साथ व्यापार न करेंगे। और भू-स्वामियोंको अपने भारतीय किराये-दारोंको बेदखल कर देना होगा। स्वार्थकी दृष्टिसे तो भारतीयोंको इस प्रकारके उन्माद-पूर्ण विरोधका स्वागत ही करना चाहिए, क्योंकि वह अपनी ही हिंसासे मर जायेगा। परन्तु साम्राज्य-सम्बन्धी दृष्टिसे पाँचेफस्ट्रूमके “पहरेदारों" की कार्रवाइयोंकी जितनी भी निन्दा की जाये, थोड़ी होगी। ब्रिटिश शासनको इतिहास सांविधानिक विकासका इतिहास है। ब्रिटिश झंडेके नीचे कानूनकी इज्जत करना लोगोंके स्वभावका हिस्सा बन गया है । हमारे “पहरेदार" दोस्त उस शानदार संविधानको ही कुचल रहे हैं और इस तरह वे ब्रिटिश शासनके प्रति अपनी