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सालाना लेखा-जोखा

सहूलियतोंको न तो न्यायोचित माना जाता था और न पूर्ण। यह तथ्य इंग्लैंडके सामने सशस्त्र हस्तक्षेपकी जरूरतके एक अतिरिक्त कारणके रूपमें जोरोंके साथ पेश किया गया था। उन को पेश करनेवाले लोग उन्हें भूल जानेके लिए भले ही उत्सुक दिखलाई पड़ते हों, मगर इंग्लैंड इन्हें इतनी जल्दी नहीं भूल सकता। और यूरोपीयोंके अलावा "किसीको कोई अधिकार नहीं" दिये जायें इस विचारहीन चिल्लाहटके बीचमें डचेतर गोरोंकी वह आवाज अब भी अनेक शोकाकुल ब्रिटिश परिवारोंमें साफ-साफ गूंज उठती है। रेंड (ट्रान्सवाल) का सौभाग्य है कि यहाँ बहुतसे योग्य और सम्पन्न व्यक्ति मौजूद हैं, जो पूर्वग्रहोंको न्यायकी खरी भावनापर हावी न होने देंगे।

हम अपने सहयोगीको उसकी निर्भीक विचार स्वतंत्रता के लिए और न्याय-परायणताके साहसके लिए बधाई देते हैं। हमारी कामना है कि उसे पूरी सफलता प्राप्त हो।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २४-१२-१९०४

२७६. सालाना लेखा-जोखा

जो व्यापारी अपनी साल-ब-साल हालतका लेखा-जोखा नहीं करता, वह मूर्ख माना जाता है। मिशनरियोंकी एक भजन पुस्तकमें उपदेश किया गया है कि "अपने वरदानोंको एक-एक करके गिनो" और देखो कि भगवानने हमारे लिए कितना किया है। इसलिए अगर हम दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले अपने देशभाइयों की स्थितिका, जिसके कारण हमारा अस्तित्व आवश्यक हुआ है, संक्षेपमें सिंहावलोकन करें तो यह एक अच्छे उदाहरणका अनुसरण होगा, और हमारा यह कार्य परिपाटीके बिलकुल अनुकूल होगा। तथापि हमें खेद है कि हम इस महाखण्डमें अपने देशवासियोंके लिए “बहुतसे वरदानोंकी गिनती" नहीं कर सकते। हमें अपने आसपास छाई काली घटाओंके घोर रूपको, जहाँ-तहाँ दीखनेवाले शुभ चिह्नोंकी ओर ध्यान खींचकर, मृदु मात्र बनाकर ही सन्तोष मान लेना होगा।

हम नेटालसे ही आरम्भ करें। जहाँतक नये कानूनका सम्बन्ध है, यहाँ स्थिति पहले जैसी ही है। परन्तु एशियाई-विरोधी कानूनोंके अमलकी प्रवृत्ति निश्चित रूपसे ऐसी पाबन्दीकी ओर रही है जो अक्सर कठोरताकी हदतक पहुँचती है। नया प्रवासी-अधिनियम लोगोंको अब भी बहुत अधिक कष्ट पहुँचा रहा है। भारतीय यात्रियोंको लेकर आनेवाले जहाजोंका निरीक्षण पहलेसे बहुत सख्त हो गया है। "अधिवासी" शब्दका अर्थ बहुत संकुचित कर दिया गया है और बहुतसे सुपात्र भारतीयोंको, यद्यपि वे पहले इस बस्ती में रह चुके हैं, बाहर रखा जा रहा है। विक्रेता-परवाना अधिनियमसे लोगोंको बहुत कष्ट हुआ है, और अब भी हो रहा है। हुंडामलके मुकदमेकी याद अभी ताजी ही है। एक पुराने व्यापारीको, जो अपने वस्तुभण्डारको साथ-सुथरा रख कर प्रथम कोटिके यूरोपीय ग्राहक मण्डलको माल बेचा करता था, इसलिए सताया गया कि उसने अपने वस्तु-भण्डारको कुछ ही दूकानोंके फासलेपर एक स्थानसे दूसरे स्थानमें हटा देनेका साहस किया। कारण यह है कि दूकान हटाकर वेस्ट स्ट्रीटमें ले जाई गई है, जिसे नगर-परिषद यूरोपीयोंके साथ व्यापारके लिए नहीं, बल्कि सिर्फ यूरोपीय दुकानदारोंके लिए सुरक्षित रखना चाहती है। नगर परिषद और भारतीय समाजके बीचके इस प्रश्नका निबटारा