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पाँचफस्टमकी कुछ और गलतबयानियाँ

अब कुछ भारतीयोंके मताधिकारके विषयमें। यह बात सत्य है कि उन्हें एक बहुत निश्चित मताधिकार प्राप्त है। भारतके प्रायः प्रत्येक महत्त्वके कस्बेमें नगरपालिका या स्थानीय निकाय मौजूद हैं। उसका चुनाव अंशतः या पूर्णतः करदाता करते हैं, जिनमें बहुमत भारतीयोंका है। इसलिए, वहाँ आरम्भ ही नगरपालिका-मताधिकारसे होता है। फिर विभिन्न प्रदेशोंकी धारा-सभाओंके कुछ सदस्योंका चुनाव निगमोंके सदस्य करते हैं और ये निगम-सदस्य स्वयं करदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष रीतिसे चुने जाते हैं। इस तरह वहाँ एक अप्रत्यक्ष राजनीतिक मताधिकार भी है। अतः "भारतीय मताधिकार" शब्दोंके प्रयोगमें हम अपने अधिकारोंकी मर्यादाके भीतर ही हैं। इसलिए सदाके समान श्री लवडेका यह कहना भी गलत ही है कि भारतमें "किसी तरहकी प्राति-निधिक संस्थाएँ हैं ही नहीं, और सब उपस्थित लोगोंको मालूम है कि भारतीय सैनिक सत्ता द्वारा शासित हैं, एवं इसमें भारतीयोंके धर्म और जातिप्रथा सहायक हैं।" वहाँ भारतीयों और गोरोंके बीच कोई सामाजिक व्यवहार नहीं है, यह कहते हुए श्री लवडे उन विशाल स्वागत समारोहोंको भूल जाते हैं जो वाइसराय और सरकारकी ओरसे किये जाते हैं और जिनमें समाजके दोनों पक्ष आपस में मिलते-जुलते हैं। और कूच बिहारके[१] राजा द्वारा आयोजित सहनृत्यों (बॉल डान्स) जैसे समारोहोंकी स्मृति भी उन्हें नहीं रहती जिनमें गोरे और भारतीय दोनों बराबरीको हैसियत से शामिल होते हैं। परन्तु ये सब बातें यहाँ अप्रासंगिक हैं; क्योंकि दक्षिण आफ्रिकाका भारतीय समाज गोरोंके साथ सामाजिक व्यवहार कतई नहीं चाहता, और न उसने कभी इसकी माँग ही की है। वह मानता है कि अनेक कारणोंसे यह अनावश्यक और अनुचित है।

अफसरोंके भोजनालयोंमें तो भारतीयोंका सत्कार होता ही है। सम्राटके निजी मित्र और अंग-रक्षक कर्नल सर प्रतापसिंहका उदाहरण इसका प्रमाण है। और, निस्सन्देह, गोरे सैनिक ऊँची श्रेणीके भारतीय अफसरोंको सलाम भी करते हैं। भारतीयों और गोरोंके सम्बन्धसे वर्णसंकर जातिके उत्पन्न होनेका प्रश्न भी, स्पष्ट कारणोंसे, सभामें पेश किया गया था। यह कहने की जरूरत नहीं कि जिसे भारतीय जीवन और भारतीय रीति-रिवाजोंकी जानकारी न्यूनतम भी है वह व्यक्ति भी इस प्रकारका तर्क पेश करनेका कभी स्वप्न तक न देखता। अतएव हम इस विषयको तूल न देंगे। तथापि श्री लवडेने सर मंचरजी मेरवानजी भावनगरीका जिस तिरस्कारपूर्ण ढंगसे जिक्र किया है, उसके बारेमें हमें एक बात कहनी है। श्री लवडेने कहा:

इंग्लैंडके लोग अपने-आपको इतना भूल गये हैं कि उन्होंने एक काले आदमीको ब्रिटिश संसदका सदस्य चुन दिया है। इस देशके निवासी ऐसा कदापि न करेंगे। वे अपने रंगको इस हदतक नहीं भूलेंगे।


परन्तु ऐसे अभद्र कथनका कोई क्या उत्तर दे सकता है ? हम समझते हैं कि जिन निर्वाचकोंने स्वर्गीय लॉर्ड सैलिसबरी द्वारा मखौल उड़ानेपर भी, दादाभाई नौरोजीको संसदका सदस्य चुना था, उन्होंने लगभग ४ करोड़ ब्रिटिश जनताके संचित राजनीति-ज्ञानका उचित परिचय दिया था। हमें केवल एक और गलतीका खण्डन करना है। श्री सैम्सनने कहा था कि जोहानिसबर्ग में भारतीय घरोंमें मेज-कुर्सियाँ बनाते और उन्हें गोरे कारीगरोंकी स्पर्धामें खुले बाजारमें बेचते हैं। मुँहफट भाषा में कहें तो यह असत्य है। जोहानिसबर्ग में इस पैमानेपर काम करनेवाले कोई भारतीय कारीगर नहीं हैं। निश्चय ही ऐसे वक्तव्यकी बेहूदगी स्वतः ही काफी स्पष्ट है।

  1. असमकी एक भूतकालीन छोटी रियासत।