इस वक्तव्यसे हमें उस व्यापारीकी कहानी याद आती है, जिसने एक दिन अपने गश्ती - गुमाश्तेसे कहा था: “काम लाओ, हो सके तो ईमानदारीसे लाओ; मगर काम लाओ। मालूम होता है कि पॉचेफस्ट्रमकी सभाके वक्ताओंके मनमें ऐसी ही कल्पना प्रबल थी। मानो, उन्होंने एक-दूसरे से कहा था: "जोरदार भारतीय-विरोधी भावना पैदा करो, हो सके तो ईमानदारीसे पैदा करो; मगर पैदा करो।"
इंडियन ओपिनियन, ७-१-१९०५
२७९. श्री क्लाइनेनबर्ग और श्री अब्दुल गनी
हमने अपने प्रतिष्ठित सहयोगी जोहानिसबर्ग स्टारके स्तम्भोंको सावधानीके साथ देखा है; परन्तु उसमें हमें अभीतक यह दिखाई नहीं दिया कि श्री टी० क्लाइनेनबर्गने भारतीय संघ के अध्यक्षकी चुनौती स्वीकार की हो। श्री गनीने अपन विरोधीको मौका दिया है कि वे भारतीयोंकी आम सभा में कही गई बातोंका खण्डन करें। अगर श्री क्लाइनेनबर्ग इस मौकेका लाभ उठाना चाहते हैं, तो हमें इसकी जानकारी प्राप्त करके खुशी होगी। हमें यह प्रतीत होता है कि श्री क्लाइनेन-बर्ग इस मामलेको जहाँका तहाँ छोड़ देनेसे सिर्फ श्री अब्दुल गनी और साधारण जनताके प्रति ही नहीं, बल्कि स्वयं अपने प्रति भी अन्याय करेंगे। हम यह जानते हैं कि श्री क्लाइनेनबर्ग कितने इज्जतदार व्यक्ति हैं; अतः हमें यह विश्वास है कि उनका श्री गनीकी चुनौतीकी उपेक्षा करनेका कोई इरादा नहीं है। हमें कोई सन्देह नहीं है कि अगर श्री क्लाइनेनबर्ग यह देखते हैं कि श्री गती तथ्योंका प्रतिवाद करने के प्रयत्नमें वे एक गम्भीर गलती कर गये हैं, तो उनमें श्री गनी के दिये हुए आंकड़ोंको सही मानने और अपने वक्तव्यको वापस लेनेका नैतिक साहस अवश्य होगा। स्वतः श्री गनीने खुले तौरसे जाहिर कर दिया है कि अगर उनका दोष पाया जायेगा तो वे खुली और पूरी माफी माँगने को तैयार हैं। ऐसी स्थिति में हमें कोई कारण दिखलाई नहीं पड़ता कि जो बात एक-दूसरे पक्ष द्वारा उपस्थित तथ्योंसे मण्डन और खण्डनके बाद इतनी सरलताके साथ तय की जा सकती है, उसका यथासम्भव शीघ्र से शीघ्र कोई अन्तिम फैसला क्यों न हो जाये।
इंडियन ओपिनियन, ७-१-१९०५
२८०. पॉचेफस्ट्रमका ओछापन
पाँचेफस्ट्रम के व्यापारी, जिनका उस स्थानसे केवल एक दूरका और अस्थायी सम्बन्ध है, या तो उसके तर्कहीन भारतीय-विरोधी पूर्वग्रहसे प्रभावित हैं, या आतंकित किये जा रहे हैं। फलतः वे ऐसे काम करते हैं जिनके लिए वे अपने अपेक्षाकृत मुक्त क्षणोंमें पूरी तरह शर्मिन्दा हुए होते। एक सम्मान्य संवाददाताने हमें सूचना दी है कि बीमा एजेंटोंने एकाएक, किसी पूर्वसूचनाके बिना, भारतीय व्यापारियोंकी आग-बीमेकी पालिसियाँ वापस ले ली हैं। इस तरहका उदाहरण हमने कभी, और कहीं भी, नहीं सुना है। हमें बताया गया है कि ये छोटे-छोटे एजेंट, जो हमारे उपर्युक्त कथनके अनुसार, स्थानिक पूर्वग्रह या आतंकके सामने झुक गये हैं, संसार-प्रसिद्ध बीमा कम्पनियोंके प्रतिनिधि हैं। अगर इन कम्पनियोंके प्रधान अधिकारी इन एजेंटोंकी मूर्खतापूर्ण और अव्यापारिक कार्रवाईपर अपनी मंजूरीकी मुहर लगा दें तो हमें बहुत आश्चर्य होगा।