यही सिद्ध हुआ कि पहले जो झूठ बोला गया था उसका कारण भय था, या गलत- फहमी । मुझे इससे उलटा अनुभव शायद ही कभी हुआ हो । मेरा यह आशय हरगिज नहीं है कि हमारी भारतीय प्रजा दूसरे राष्ट्रोंकी अपेक्षा, जो समाजमें लगभग ऐसा ही स्थान रखते हैं, इस दुर्गुणसे अधिक मुक्त है; परन्तु यह तो मैं निश्चयपूर्वक कह सकता हूँ कि उसमें असत्यकी लत दूसरोंसे ज्यादा नहीं है।
सर चार्ल्स ई० ईलियट, के० सी० एस० आई० लेफ्टिनेंट गवर्नर, बंगालने अपनी पुस्तक दि पीपल ऑफ इंडियामें लिखा है :
अक्सर कहा जाता है कि भारतवासी सत्यसे बिलकुल परिचित नहीं । मैंने उन्हें ऐसा नहीं पाया । निस्सन्देह, अपने निजी गाँवों के लोकमतसे दूर - अदालतोंमें-- रिश्वत देनेपर या मामलेमें कोई दूसरी दिलचस्पी पैदा होनेपर गवाह झूठी गवाहीको आश्चर्य- जनक उड़ानें भरते हैं और इस तरह अपराधी बनते हैं; परन्तु अपने ही गाँवोंमें, अपने ही लोगों के बीच, जब सत्यसे उनको ही हानि पहुँचती हो तब भी, मैंने शायद ही किसीको झूठ बोलते देखा है ।
प्रोफेसर मैक्समूलरने कहा है कि अंग्रेज व्यापारियोंने उनसे बार-बार कहा है कि :
व्यापारिक प्रतिष्ठा भारतमें दूसरे सभी देशोंसे ऊँची है और वहाँ शायद ही कभी कोई पावनेकी हुंडी नकारी जाती है।
दूसरी जगह वे कहते हैं :
(कर्नल) स्लीमन बताते हैं कि लोग अपनी पंचायतोंमें स्वभाववश और धार्मिक श्रद्धासे सत्यपर दृढ़ रहते हैं । और, वे कहते हैं, 'मेरे सामने सैकड़ों मामले ऐसे आये जिनमें आदमीकी सम्पत्ति, स्वतन्त्रता और जान झूठ बोलनेपर निर्भर थी, और उसने झूठ बोलनेसे इनकार कर दिया। क्या कोई इंग्लैंडका न्यायाधीश भी यही बात कह सकता है ?
कर्नल स्लीमनके साथ-साथ प्रोफेसर मैक्समूलर बताते हैं कि, जो भी व्यक्ति भारतीय ग्राम- सभाओंके जीवनसे अनभिज्ञ है, जैसा कि लगभग प्रत्येक अंग्रेज होता है, वह भारतीयोंके सामाजिक और आचार-सम्बन्धी सद्गुणोंपर कोई भी मत देनेके बिलकुल अयोग्य है; क्योंकि "हिन्दुओंके सब स्वाभाविक सद्गुण उनके ग्राम-जीवनके साथ सम्बद्ध हैं।"
हम समझते हैं कि हम ऐसे लोगोंके काफी उद्धरण दे चुके जो अपने अनुभव के आधारपर सही राय देने और इस आरोपकी पूरी झुठाई सिद्ध करनेमें समर्थ हैं कि सभी भारतीयोंमें आम तौरसे सत्यका अभाव है । जहाँ कहीं भी सत्यपर दृढ़ रहनेमें कोई चूक हुई है, उसका अक्सर यही कारण रहा है कि भारतीयोंको नैतिक नियन्त्रणके सब सूत्रोंसे दूर कर दिया गया। सर जॉर्ज कैम्बैलका कथन तो यहाँतक बताया गया है कि "हमारे अधिकारमें कोई प्रान्त जितने लम्बे समयतक रहता है, झूठी गवाही उतनी ही आम और गम्भीर बन जाती है ।"
हम पाँचेफस्ट्रमकी हालकी सार्वजनिक सभाका थोड़ा-सा उल्लेख करके इसे समाप्त करेंगे । श्री लवडेने पूर्वीय छल-कपट, असत्य और चालबाजीके बारेमें बहुत-कुछ कहा है। उन्होंने यह भी कहा है कि लॉर्ड मेकॉलेने क्लाइवके सम्बन्धमें कहा था : "इसमें कोई सन्देह नहीं कि भारतके छल-कपटकी कालोंच क्लाइवके चरित्रपर लग गई । "