है, अब तो केवल एक काम रह जाता है कि इन शर्तोंके साथ मजदूरोंको लानेकी इस योजनाको विधानसभा अपनी मंजूरी प्रदान कर दे, तो ट्रान्सवालकी मजदूर-समस्या हल हो जायेगी। श्री स्किनरके मन्तव्यके विपरीत हम आशा करते हैं कि यदि इस आशयका कानून मंजूर भी हो जाये—जिसके बारेमें हमें बहुत सन्देह है—तो भी जिनको प्रत्यक्ष शर्तनामे लिखने हैं वे लोग आरकाटियों (लेवर-एजेंटों) द्वारा प्रस्तुत सारे प्रलोभनोंको ठुकरा देंगे और ऐसी अमानुष शर्तोंपर कान नहीं देंगे। तब खानोंके उद्योगका प्रश्न अपने आप और आहिस्तासे गोरे उपनिवेशियों तथा देशी निवासियों दोनोंके लिए लाभदायक रूपमें हल हो जायेगा; और चीनी या अन्य किसी एशियाई देशके सहायक मजदूरोंकी परेशानी-भरी समस्या भी सामने नहीं आयेगी। सच तो यह है कि खुद श्री स्किनरको डर है कि मजदूर कहीं मालिकोंके हितोंके विरुद्ध अपना संगठन आदि न बना लें। उनके प्रतिवेदनका वह हिस्सा उन्हींके शब्दोंमें हम नीचे दे रहे हैं:
चीनियोंमें फ्रीमेसनरियोंके समान पारस्परिक सहयोगकी एक समर्थ प्रणाली होती है। एकताके सामर्थ्य और लाभोंको वे भली-भाँति जानते है। सैनफ्रांसिस्कोमें ऐसे छः संगठन हैं। अधिकांश प्रवासी चीनी उनमें से किसी-न-किसीके सदस्य हैं और उसे चन्दा देते रहते हैं। यह प्रणाली बहुत व्यापक है, परन्तु कुल मिलाकर इसका प्रभाव लाभप्रद ही होता है। ये संगठन अपने सदस्योंकी तरफसे और उनके नामपर अनेक प्रकारके व्यवसाय करते हैं, मजदूरोंकी देख-भाल करते हैं, पैसेका लेनदेन करते हैं, या उसे चीन भेजना हो तो उसका प्रबन्ध भी कर देते हैं। ये चीनियोंको हर प्रवृत्तिमें दिलचस्पी रखते हैं और उनके हितोंकी रक्षा करते हैं। ये एक और काम भी करते हैं कि यदि कोई चीनी मर जाये तो कहनेपर मृतककी अस्थियाँ उसके रिश्तेदारोंके पास चीन भेज देते हैं। जिनका कार्य-क्षेत्र इतना व्यापक है ऐसी संस्थाएँ अगर रैंडमें भी स्थापित हो जाये तो यहाँके प्रवासी चीनियोंपर उनका गहरा प्रभाव पड़ेगा। कई बातोंमें, जैसा कि ऊपर बताया गया है, उनका प्रभाव हितकारी हो सकता है। परन्तु अगर कहीं उन्हें यह खयाल हो गया कि साधारण मजदूरीके विषयमें खाने पूर्णतः उन्हींपर अवलम्बित हैं, तो इसमें खतरा भी है। इस कठिनाईको टालनेके लिए स्पष्ट ही यह आवश्यक है कि अभी हम काफिर मजदूरोंकी संख्या बढ़ानेके लिए जो यत्न कर रहे हैं, वह बराबर और जोरोंके साथ जारी रखा जाये, ताकि खानोंमें चीनी, काफिर और अन्य साधारण मजदूरोंकी संख्यामें एक प्रकारका सन्तुलन बना रहे। चीनके भिन्न-भिन्न भागोंसे लाये हुए मजदूरोंपर भी यह सिद्धान्त लागू किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, अनुभव यह हुआ है कि उत्तरी भागोंके चीनी दक्षिणी भागोंके चीनियोंके साथ शायद ही सहयोग करते हैं।
इस तरह श्री स्किनर "फूट फैलाकर राज करो" वाली चालसे काम लेना चाहते है। परन्तु हमारा खयाल है कि संगठनोंको तोड़नेमें विधानसभाके बनाये कानून मददगार होंगे, ऐसा अगर श्री स्किनरको विश्वास हो, तो वे बहुत बड़ी भूल कर रहे हैं। उत्तर और दक्षिणी चीनके निवासी अपने देशमें भले ही लड़ रहे हों, किन्तु यहाँ आनेपर समान विपत्ति उनमें एकता पैदा कर देगी और उन्हें अहातोंकी कैद तथा व्यक्तिगत स्वतन्त्रताके अपहरणके विरुद्ध लड़नेकी शक्ति प्रदान कर देगी। श्री स्किनरकी योजनाकी तफसीलोंको देखें तो वे दिलचस्प होते हुए भी हमारी रायमें एकदम अव्यावहारिक हैं। ज्यों ही वे चीनी डॉक्टरों तथा जमादारोंको लायेंगे त्यों ही श्री स्किनर