रहा है। हमें अच्छे से अच्छे प्रमाणोंके आधारपर बताया गया है कि यह भला आदमी यदि 'एशियाई विरोधी पहरेदार संघ में प्रत्यक्ष रूपसे शामिल नहीं हो गया है तो, कमसे-कम आतंकवादियोंकी उस संस्था द्वारा प्रतिकूल दिशामें प्रभावित तो किया ही गया है । इस तरह संघर्षका आह्वान हो चुका है और दुनिया अब जान गई है कि पॉचेफस्ट्रमके गोरोंने बहिष्कारकी एक योजना बना ली है, जिसके प्रत्यक्ष प्रभावसे निर्दोष नागरिकोंके मकान खतरे में पड़ गये हैं । और इससे भारतीय व्यापारियोंके सामने अपने अनेक वर्षोंके कठोर और कष्टमय परिश्रमके समस्त फलको अपनी आँखोंके सामने स्वाहा होता हुआ देखनेकी जोखिम आ खड़ी हुई है । द्रोह सीमातक पहुँच गया है। अग्निशामक दल पास न होनेपर ये अभागे लोग अब असहाय हैं और हवासे उड़कर आनेवाली किसी भी चिनगारीकी या किसी भी ऐसे उपद्रवीकी दयापर निर्भर हैं, जिसका रंग-भेदका पागलपन उसे जिस आकर्षक भंडारपर भी पहले नजर पड़ जाये उसीके मालिकको आगसे तबाह कर देनेके लिए प्रेरित कर सकता है।
हम उन्माद-भरी अनर्गल बातें नहीं करते हैं; क्योंकि खतरा बहुत सच्चा है । पाँचेफस्ट्रमम भारतीयोंके विरोधका प्रचंड संक्रामक रोग जब पराकाष्ठापर पहुँचा उसके थोड़े ही दिन बाद आगजनीका जो कायरतापूर्ण प्रयत्न किया गया था उसकी याद हमारे पाठकोंको अब भी ताजा होगी । यहाँ हम " आगजनी " शब्दका प्रयोग स्वयं मुख्य पुलिस अधिकारीके कथनके बलपर कर रहे हैं। और यह सोचकर हमें खेद होता है कि जिन भंडारोंपर इस तरहका कायरतापूर्ण आक्रमण हो सकता है उनमेंसे प्रत्येककी रक्षा करनेकी स्थितिमें यह शिष्ट अधिकारी नहीं है ।
स्वयं आग-बीमा कम्पनीके दृष्टिकोणसे, पॉचेफस्ट्रूमके भारतीय वस्तु-भंडारोंकी जोखिम कमसे- कम उतनी ही अनुकूल होनी चाहिए, जितनी कि यूरोपीय व्यापारियोंके भंडारोंकी है; क्योंकि, हमें जो ज्ञान है उसके अनुसार अगर दोनों समाजोंके वस्तु-भंडारोंकी तुलनाकी जाये तो भारतीय वस्तु-भंडार घटिया दर्जेके न निकलेंगे । फलतः कम्पनीने पालिसियोंको रद करनेकी जो कार्रवाई की है उसका कोई कारण हम देख नहीं पाते । निश्चय ही इसमें व्यापारिक ईमानदारीका प्रश्न नहीं हो सकता, नहीं तो उन व्यापारियोंको पालिसी दी ही न जाती । इसके अलावा, वे सब चरित्रवान सुविख्यात व्यापारी हैं और बिलकुल सरसरी तौरपर पूछताछ करनेसे भी स्पष्ट हो जाता कि उनकी इज्जत और विश्वस्ततापर शंका करनेका कोई आधार नहीं हो सकता ।
सारा मामला पॉचेफस्ट्रमके लिए बहुत प्रशंसनीय नहीं है । और जो निन्दनीय कार्य इस प्रकार किया गया है, उससे सम्बन्धित बीमा कम्पनीके माथेपर कलंक लगता है ।
"हमारा इरादा कम्पनीके प्रधान कार्यालयके अधिकारियोंका ध्यान तुरन्त इस मामलेकी ओर खींचनेका है । हमें विश्वास है कि कम्पनीकी न्याय और निष्पक्षताकी ब्रिटिश भावना, उसे अत्यन्त कठोर जाँच करनेकी प्रेरणा देगी और हमें कोई सन्देह नहीं है कि यह असह्य स्थिति प्रस्तुत परिस्थितियोंमें जितनी जल्दी हो सके, मिटा दी जायेगी ।
[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २१-१-१९०५