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२९०. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और रूसी जैम्स्त्वो

एक तुलना - २

प्रत्येक चतुर राज्यकर्त्ता अपनी प्रजाकी सही परिस्थिति एवं उसके सुख-दुःख जाननेके लिए उत्सुक होता है; और ऐसे ही, थोड़े-बहुत अंशमें, हमारे माननीय सम्राट एडवर्ड एवं रूसके जार भी हैं। दोनों सम्राटोंकी ख्वाहिश एक-सी ही है, परन्तु उसकी पूर्तिके लिए अलग-अलग किस्मकी कोशिशें करनी पड़ती हैं । हम लोगों के सौभाग्यसे भारतीय अधिकारियोंमें रूसी अधिकारियोंके समान घमंड नहीं है और उनकी सत्ता भी एक-सी नहीं है । मतलब यह है कि भारतीय अधिकारीको मजबूरन कुछ नियम पालने पड़ते हैं, और रूसी अधिकारी जिस हदतक अपने पदका घमंड और स्वेच्छाचार दिखा सकता है उस हदतक भारतमें सम्भव नहीं । सार यह है कि भारतका अधिकारी इरादा करे तो भी, प्रजाका उत्पीड़न उस सीमातक नहीं कर सकता जिसतक रूसी अधिकारी कर सकता है। फिर भी रूसी और भारतीय प्रजाके कई कष्ट एक समान ही हैं । यद्यपि रूसके कष्ट भारी हैं और उससे तुलना करनेपर भारतके कष्ट उतने कठिन नहीं हैं, फिर भी भारतीय प्रजाको अपने दुःख साधारण प्रतीत होते हैं, ऐसी बात नहीं है । और यह आसानीसे समझने योग्य बात है । रूस देशमें अधिकारी और प्रजाके बीच चमड़ीके रंगका, बोलीका, धर्मका, अथवा जात-पाँतका अन्तर नहीं है । भारतमें अधिकारी इनमें से प्रत्येक बातमें जनतासे भिन्न हैं । इसलिए परायापन ( नहीं होना चाहिए फिर भी ) प्रतीत होता है, और इस वजहसे कष्टोंसे, जितना उचित है उससे अधिक, खेद स्वभावतः होता है । फिर भी दोनों देशों में प्रजा और अधिकारियोंके वीच अलगाव रहता है और वह प्रजाको बहुत अखरता है। जनता यह मानती है कि राजा और प्रजाका आपसी सम्बन्ध बड़ा घनिष्ठ होना चाहिए, परस्पर विश्वास होना चाहिए, और एक- दूसरेके सुख-दुःख में प्रत्येकको भाग लेना चाहिए तथा प्रेम और ममताका व्यवहार रखना चाहिए -संक्षेपमें राजा और प्रजाका हित एक ही होना चाहिए और प्रजाके सुखी होनेपर ही राजा सुखी माना जाना चाहिए। राजा सत्ता धारण करता है, किन्तु सत्ताका दुरुपयोग किया जाये तो राजा एवं प्रजा दोनोंकी हानि होती है; इसी कारण चतुर शासक अपनी प्रजाकी स्थिति और उसके सुख-दुःखको जाननेके लिए उत्सुक रहता है ।

पुराने राज्य आम तौरसे आजके मुकाबिले बहुत ही छोटे होते थे, इसलिए राजा आसानीसे अपनी रियायाकी देख-भाल कर सकता था । परन्तु ज्यों-ज्यों राज्य विशाल बनते गये त्यों-त्यों अधिका- रियोंकी नियुक्ति की आवश्यकता बढ़ती गई । फलस्वरूप आज सभ्य संसारमें हर जगह राजा केवल नामके रह गये हैं और अधिकारी लोग अनिवार्य एवं महत्त्वपूर्ण हो गये हैं। बिना अधिकारीके राजा नहीं हो सकता, अधिकारी यह समझते हैं । इसलिए स्वभावतः ही वे अपने महत्त्वमें और रोबदाब अथवा सत्तामें खलल न हो ऐसे उपाय करते रहते हैं। नतीजा यह होता है कि वे अपने कर्त्तव्यके मुकाबले स्वार्थका महत्त्व अधिक समझने लगते हैं और प्रजाके सुख-दुःखकी ओर आवश्यक ध्यान नहीं देते। इससे प्रजामें बेचैनी पैदा होती है, और प्रजाकी शिकायत सुनने या आलोचना सहनेका धैर्य अधिकारियोंमें न होने की वजहसे अलगाव पैदा हो जाता है । ऐसा होनेपर अधि- कारियों का घमंड तोड़नेके लिए और अपने स्वत्वोंको सुरक्षित रखनेके लिए प्रजा यथाशक्ति परिश्रम करती है और योजनाएँ बनाती है । जहाँपर राज्य शासन अच्छा होता है वहाँपर ऐसे उदाहरण कम दीखते हैं और जहाँपर ढीला होता है वहाँपर अधिक। रूस और भारतकी