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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/४०९

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२९५. हुंडामलका मामला

हुंडामलका मामला अब आखिरी मंजिलमें या, यों कहें कि, नये दौरकी पहली मंजिल में पहुँच गया है। अब हुंडासल व्यक्ति दृष्टिसे ओझल हो गया है, परन्तु भारतीय व्यापारी समाज उसके स्थान में आ गया है। हुडामल बनाम सम्राज्ञी सरकारके परीक्षात्मक मुकदमे में सर्वोच्च न्यायालयने आखिरी निर्णय दे दिया है और डर्बन नगर परिषदकी क्षणिक जीत हो गई है।

हमने “क्षणिक" शब्दका प्रयोग जानबूझकर किया है। हम सोच ही नहीं सकते कि पक्षपात और अन्यायकी विजय भी कभी स्थायी हो सकती है। ऐसा निष्कर्ष इतिहास और दर्शनकी तमाम शिक्षाओंके विपरीत होगा ।

क्या कोई भी व्यक्ति ऐसा है जो यह कहने का साहस करे कि डर्बन नगर परिषदने इस अभागे मनुष्यको न्याय प्रदान करनेकी जरा भी इच्छा या प्रवृत्ति दिखाई है ? उसने उसका सर्वनाश करनेके प्रत्येक साधनका प्रयोग किया है; क्योंकि, परवाना अधिकारीके शब्दोंमें, "वेस्ट स्ट्रीटमें एशियाइयोंको और परवाने नहीं देने चाहिए।” सरकारी तौरपर तो उसके इन शब्दोंपर नापसन्दगी जाहिर की गई है, परन्तु हमारे पास यह विश्वास करनेका जरूरत से ज्यादा कारण मौजूद है कि खानगी तौरपर नगर परिषद के सदस्योंने इनका समर्थन किया है।

कभी-कभी ऐसे मौके आते हैं जब, जो बात हृदयके निकटतम होती है, वह ओठोंके भी निकटतम होती है । और हमें भय है कि यद्यपि नगर परिषदने सरकारी तौरपर खण्डन किया है, फिर भी परवाना अधिकारीका मत ही उसके मालिकोंका जोरदार मत है । और शायद अनजाने ही यह रहस्य प्रकट कर दिया गया है । तब, सर्वोच्च न्यायालयके निर्णयका असर यह है कि वेस्ट स्ट्रीटको गोरे व्यापारियोंके लिए बिलकुल सुरक्षित कर दिया जाये, और उस चुनिन्दा सार्वजनिक बाजारमें व्यापार करनेके लिए परवानेकी " अर्जी कोई भारतीय न दे । "

परन्तु हम पूछते हैं। -- क्या इस मामलेको जहाँका तहाँ पड़ा रहने दिया जा सकता है ? क्या ऐसी हालत जारी रहने देनेकी हिम्मत की जा सकती है ? हम समझते हैं--हरगिज नहीं । इस समय हम मामलेके कानूनी गुण-दोषोंकी चर्चा नहीं करते । परन्तु सर्वोच्च न्यायालयका यह निर्णय विचित्र ही नहीं, उससे भी कुछ अधिक मालूम होता है कि व्यापारका परवाना रखनेवाले किसी आदमीका परवाना केवल उसी शहरकी सीमामें एक स्थानसे दूसरेमें चले जाने से ही रद किया जा सकता है। कुछ भी हो, हमें लगता है कि मामला और ऊँचे न्यायालय में ले जानेके लिए काफी महत्त्वपूर्ण है । सम्भवतः दूसरी दलीलें भी पेश की जा सकती हैं जिनके फलस्वरूप वर्तमान परिस्थितियोंमें कुछ परिवर्तन होगा ।

जिस समय सर्वोच्च न्यायालय के सामने यह नाटक रचा जा रहा था, उसी समय नगर- परिषदके भवनमें एक अवान्तर प्रश्नपर विचार किया जा रहा था।डर्बन निगमने वेस्ट स्ट्रीटमें हुंडामल-दुर्गपर चौतरफा आक्रमण किया है और ऐसा दिखलाई पड़ता है कि जड़ खोदनेकी चालें उसकी नीवें खोखली करनेमें सफल हो गई हैं। इन आड़े टेढ़े तरीकोंसे दुर्ग प्रत्यक्ष रूपमें तो गिर गया है; परन्तु अभी प्रतिरक्षक परास्त नहीं हुआ है; क्योंकि दुर्गके ध्वंसावशेषोंसे और भी ज्यादा शक्तिशाली योद्धा उत्पन्न होगा, जो अनिच्छुक हाथोंसे न्याय करा लेगा और परिस्थितियोंको अपनी आवश्यकताओंके अनुकूल बदलनेके लिए बाध्य करेगा ।