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२९९. काफिरोंपर आक्रमण

काफिर गोरोंकी तरह बाइसिकलपर बैठते हैं, यह जोहानिसबर्गकी नगर परिषदसे देखा नहीं गया, और इसलिए उसने अपनी पिछली बैठकमें प्रस्ताव किया है कि जिस काफिरको बाइसिकल रखनेका अनुमति पत्र मिला है या मिले वह बाइसिकलपर शहरमें घूमते समय साफ दिखाई दे, इस तरह बायें हाथपर एक नम्बर युक्त बिल्ला लगाये ।

आजकल ट्रान्सवालका राजकाज ऐसा चल रहा है कि इस प्रस्तावसे हमें आश्चर्य नहीं होता । आज हम इस विषयपर इसलिए लिखते हैं कि अपने भारतीय भाइयोंको यह याद दिला दें (यद्यपि याद दिलाना नितान्त आवश्यक नहीं जान पड़ता) कि आजकलका जोहानिसबर्ग लड़ाईके पहलेके जोहानिसबर्गसे बहुत भिन्न है । जिनके हाथमें इस समय सत्ता है उनमें से अधिक- तर लोग लड़ाईका आरम्भ होनेसे पहले डचेतर गोरे (एटलांडर) कहलाते थे और इनसाफकी माँग सम्बंध में बहुत प्रयत्नशील रहा करते थे। वे दूसरे देशोंके निवासी ब्रिटिश प्रजा बनकर ब्रिटिशोंके योग्य अधिकार प्राप्त करनेकी भरसक कोशिश करते थे; और अंग्रेज, रूसी, जर्मन आदि सबके सब एक हो गये थे। उस समय बोअर राज्य था और ये लोग यह चिल्ला-चिल्ला कर कान फाड़े डालते थे कि इन्साफ नहीं किया जाता। भारतीयोंके विरुद्ध बोअर-सरकारको उत्तेजित करनेवाले ये ही ब्रिटिश प्रजाजन थे। और फिर किस प्रकार बोअर सरकार भारतीयोंके विरुद्ध कानून बना सकती है, यह बतानेवाले भी ये ही ब्रिटिश प्रजाजन थे । अन्तमें लॉर्ड मिलनर और श्री चेम्बरलेनके द्वारा लड़ाई करानेवाले भी ये ब्रिटिश प्रजाजन ही थे । लड़ाईके बाद खरा इन्साफ होगा, और रंग-भेद या जातिभेद कानूनसे हटा दिये जायेंगे. - लड़ाईके समय इस प्रकार ढोल पीटनेवाले भी ये ही ब्रिटिश प्रजाजन थे । यह था नाटकका एक अंक । दूसरे अंकमें सब कुछ भुला दिया गया और ये ही ब्रिटिश प्रजाजन स्वार्थसाधनमें लीन हो गये । फिर आया तीसरा अंक । उसमें भारतीयोंके प्रति सरेआम दुश्मनी बताई जाने लगी, और इस समय चालू चौथे अंकमें अत्याचारपूर्ण कानून बनाये जाने लगे हैं एवं अमलमें, वह भी पूरी सख्ती के साथ, आने लगे हैं ।

यह सारा प्रताप इसी ब्रिटिश प्रजाका समझिए। यह आक्रमण जिस प्रकार भारतीयोंपर हुआ है उसी प्रकार काफिरों और रंगदार लोगोंपर नियमित रूपसे होगा और इसलिए यदि एकपर आक्रमण हो तो दूसरेको सचेत हो जाना चाहिए कि देर-सवेर वह भी इस फन्देमें अवश्य ही फँसेगा । अर्थात् आज काफिरोंके लिए इस किस्मका कानून बनाया गया है यदि कल वह भारतीयोंपर लागू हो जाये तो यह अधिक अचम्भेकी बात न होगी ।

खूबी यह है कि ऐसे निर्दयतापूर्ण कानूनकी बात प्रस्तुत करनेवाली अन्य देशीय प्रजा, अभी- अभी कुछ ही समय पहले कथित ब्रिटिश प्रजा बनी है। श्री लैंगरमान[१] इस प्रस्तावपर बहुत बोले, और जोशमें काफिरोंका रंगतक भूल गये, जिसपर सभामें खूब हँसी हुई। उन्होंने कहा, बिल्ला सामने लगाना चाहिए ताकि काफिर गोरा न समझ लिया जाये। ऐसी विचारपूर्ण बात श्री लैंगरमान ही कह सकते हैं, और हमारी ओरसे उन्हें बधाई है कि उन्होंने यह सूचना दी कि बिल्ला आगे न होगा तो कभी काफिर भूलमें गोरा समझ लिया जायेगा । किन्तु श्री

  1. नगर-परिषदके एक सदस्य।