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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लैंगरमान कौन हैं इस सम्बन्ध में थोड़ी जानकारी हो तो उनके कथनका यथोचित वजन हो सकता है। श्री लैंगरमानको अपने रूसी भाइयोंके लिए बड़ी हमदर्दी है, इसलिए वे रूसी राज्यपर बहुत टीका करते हैं। प्राकृतिक नियम है कि जो व्यक्ति अन्याय और अत्याचारके बीच पला हो वह जब मुक्त होता है तब अपने दुःखके दिन भूलकर पाई हुई मुक्तिका अनुचित लाभ लेता है और निर्दय बन जाता है; इसलिए पोलैंडसे आये हुए और इन दिनों ब्रिटिश प्रजा बने हुए साहबोंकी उछल-कूद बढ़ जाये तो यह आश्चर्यकी बात नहीं है ।

इस प्रस्तावपर जो चर्चाएँ की गईं उनमें सन्तोषप्रद बात यह प्रतीत होती है कि सर्वश्री मेकी निवेन, क्विन, रॉकी और पिम यह नहीं भूले कि काफिर भी मनुष्य हैं और उनका व्यर्थमें अपमान न किया जाये, यह विरोध उन्होंने किया। परन्तु नक्कारखानेमें तूतीकी आवाज कोई सुनता नहीं । ऐसे ही वे भी कामयाब नहीं हो सके। फिर भी उन्होंने जनसाधारणकी विचार- धाराकी परवा न करके अपने सही और उचित विचार प्रकट किये, इसलिए उनको श्रेय मिलना चाहिए।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-२-१९०५

३००. केप कालोनी में कसाईखानोंकी हालत

केप कालोनी के इन्स्पेक्टर कैनने वहाँके कसाईखानों की स्थितिपर रिपोर्ट प्रकाशित की है। वह पढ़ने योग्य है। उसने लिखा है कि उसने जिन कसाईखानोंका निरीक्षण किया उनमें से दो-एक बहुत गन्दे पाये गये । मेडलैंडमें मुख्य सड़कपर उसने दीवारके ऊपर खुंटीपर टंगी आंतें और चर्बी देखीं। लोहू, खाद और सड़न फर्शसे चार फुट ऊँचाईतक दीवारोंपर जमे हुए थे । इन जगहों पर यह रिवाज देखा गया कि सड़न आदिकी तहोंपर ही सफेदी पोत दी जाती है । इसलिए अब दीवारोंपर सफेदी और सड़नकी तहें जमी हुई हैं । इन्स्पेक्टरने काम करते हुए आदमियोंका निरीक्षण किया। वे गन्दे थे । उनके कपड़े बहुत मैले थे; उनपर चर्बी जमी हुई थी। ये कपड़े मांससे लगते रहते थे ।

हमें यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि यह सब गोरों द्वारा चलाये जानेवाले कसाई- खानों में देखा गया है। प्रश्न यह है कि इतने दिनोंतक ऐसे अपराध क्योंकर छिपे रहे। ऐसी गन्दगी में तैयार किये गये मांसके कारण कितने आदमी बीमार पड़े होंगे। अगर इस प्रकारकी खराब स्थिति भारतीयोंकी होती तो उनकी क्या दुर्दशा की जाती ? गोरे एकदम हुल्लड़ मचा देते कि अपराधियोंको ही नहीं किन्तु सारी भारतीय कौमको निकालकर बाहर करना चाहिए, अथवा उसके ऊपर बहुत सख्ती की जानी चाहिए। लेकिन हमारे सौभाग्यसे यह गन्दगी गोरोंकी दूकानों में है। अब देखना यह है कि उसका उपाय किस प्रकार किया जाता है ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-२-१९०५