३०५. भारतीयोंके परवाने: सजग होनेकी जरूरत—१
सेठ हुंडामलके परवानेके सम्बन्धमें आज कई महीनोंसे चर्चा चल रही है। हमारे पाठक जानते हैं कि सेठ हुंडामल डर्बनमें करीब १० वर्षसे व्यापार करते आ रहे हैं। शुरूमें उन्होंने डर्बनकी मुख्य बीथी वेस्ट स्ट्रीटमें दूकान खोली। इस दूकानके मालिकको उसकी मरम्मत करानी थी; इसलिए उसने सेठ हुंडामलसे वह दूकान खाली करा ली। वेस्ट स्ट्रीटमें पसन्दकी जगह न मिलने से उन्होंने पास ही ग्रे स्ट्रीटमें एक अच्छी दूकान ले ली और वहाँ व्यापार शुरू कर दिया। कुछ महीने बीतनेपर उस दूकानको भी खाली करनेकी आवश्यकता पड़ गई। इसलिए उन्होंने, एक भारतीय मकान मालिकसे पासमें ही, वेस्ट स्ट्रीटमें, कुछ समय पहले एक भारतीय व्यापारी द्वारा खाली की गई एक अच्छी और बड़ी दूकान किरायेपर ले ली और वहाँ व्यापार शुरू किया; तथा परवाना अधिकारीको दरखास्त दी कि दूकान बदल जानेके कारण उनके परवानेपर नया पता लिख दिया जाये। इस दरखास्तको उक्त अधिकारीने स्वीकार नहीं किया, यही नहीं, बल्कि उनपर परवानेके बिना व्यापार करनेका इल्जाम लगाया। मजिस्ट्रेटकी अदालत में बाकायदा मुकदमा चला और सेठ हुंडामलपर जुर्माना हुआ। सेठ हुंडामलने मजिस्ट्रेट के फैसलेपर अपील की। इस अपीलकी सुनवाईसे पहले नगर परिषदने सेठ हुंडामलको मजिस्ट्रेटकी अदालत में दो-तीन बार घसीटा, और मजिस्ट्रेटने हर बार उनपर जुर्माना किया। और एक बार तो मजिस्ट्रेट श्री स्टुअर्टने अपनी पद-मर्यादा भूलकर गैर-कानूनी हुक्म दिया कि सेठ हुंडामल अपनी दूकान बन्द कर दें। अलबत्ता, गैर-कानूनी होनेसे सेठ हुंडामलने इस हुक्मकी परवाह नहीं की, और उनके वकील श्री वाइलीने उनकी ओरसे मजिस्ट्रेट और पुलिसको लिखित रूपमें कड़ी चेतावनी दी कि अगर उक्त गैर-कानूनी हुक्मकी तामील की जायेगी तो उसकी तामील करानेवाले अफसरको उसकी जोखिम उठानी पड़ेगी। मजिस्ट्रेटको बेहद गुस्सा आया; लेकिन हुक्म सरासर गैर-कानूनी ही था, इसलिए उसे अपना सा मुँह लेकर बैठ जाना पड़ा। डर्बनमें जब मण्डल-अदालत (सर्किट कोर्ट) बैठी तब अपीलकी सुनवाई हुई और सेठ हुंडामल निरपराध साबित हुए। तब पुलिसने उनपर दूसरा जुर्म लगाया और उसमें मजिस्ट्रेटने दुबारा उन्हें अपराधी ठहराया। इस महीने में सर्वोच्च न्यायालयमें उसकी अपील हुई और भारतीय व्यापारियोंके दुर्भाग्यसे उस बड़ी अदालतमें न्यायाधीशोंने हुंडामलके विरुद्ध फैसला दिया।
उक्त अपीलकी सुनवाई तो इस मास न हुई। पिछले मासमें चालू वर्षके परवानेके लिए सेठ हुंडामलने अर्जी दी थी और परवाना अधिकारीने वह स्वीकार नहीं की। इसपर से नगर-परिषदमें बाकायदा अपील की गई। परवाना न देनेके सम्बन्धमें परवाना अधिकारीने यह बताया कि वेस्ट स्ट्रीटमें एशियाइयोंको अधिक परवाने नहीं मिलने चाहिए, इसलिए सेठ हुंडामलको परवाना न मिलेगा। जब नगर परिषदके समक्ष सेठ हुंडामलके वकीलने यह कारण उपस्थित किया तब स्वभावतः नगर परिषद के सदस्य शर्मिन्दा हो गये, क्योंकि परवाना अधिकारीने यह भी कहा कि नगर परिषद के सदस्योंकी इच्छा भी यही है। परिषद में श्री बर्न सदस्य हैं और वे भी एक प्रख्यात वकील हैं। उन्होंने यह बात सुनते ही विरोध किया कि परवाना अधिकारी यह कह नहीं सकता कि नगर परिषद के सदस्योंकी इच्छा भी यही है। इसपर उस अधिकारीने उठकर जवाब दिया कि इससे पहले भी उसने यही कारण बताकर दरखास्तें नामंजूर की थीं और उसका दिया हुआ वह फैसला नगर परिषदने मान्य किया था; इसलिए इस बार भी उसका
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