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कारपोरेशनकी गंदगी

भारतीयों और भारतीयोंमें अन्तर है। कुछ भारतीय सफाईके वैज्ञानिक यूरोपीय मापदण्डके पूरी तरह कायल हैं और कुछ ऐसे हैं जो अबतक सफाईके वे ही तरीके काममें लाते जा रहे हैं, जिनका अवलम्बन वे भारतके सुदूरस्थ जिलों में स्मरणातीत कालसे करते चले आते हैं। उनसे जरा भी भिन्न तरीके उन्होंने अख्तियार नहीं किये। ऐसे ही भेद सारी दुनियाके सभ्य राष्ट्रोंके लोगोंके बीच किये जा सकते हैं। शिक्षितों और अल्प-शिक्षितोंके बीच यह भेद सदासे है और आगामी बहुत वर्षों तक रहेगा।


इसलिए, जब हम बार-बार भारतीयोंके खिलाफ यह आरोप सुनते हैं कि वे अस्वच्छ हैं तो हम यह पूछने के लिए बाध्य हो जाते हैं कि "आपका मतलब किन भारतीयोंसे है? और आप व्यक्तिगत सफाईकी बात कहते हैं या घरेलू सफाईकी?" क्योंकि, इससे अधिक महत्त्वकी बात और क्या है कि जो लोग इस तरहका अस्पष्ट आरोप लगाते हैं उन्हें किसी ज्यादा निश्चित और कम खतरनाक रूपमें अस्पष्ट बातपर स्थिर किया जाये? अक्सर देखा जाता है कि विचार-हीन व्यक्तिका ध्यान बातोंको सर्व-सामान्य रूपमें पेश करनेसे सफलतापूर्वक खिंच जाता है, जब कि तथ्यको निश्चित रूपमें पेश करनेसे तो वह दब हो जायेगा।

हमारा अनुभव यह है कि प्रायः भारतीय अस्वच्छ नहीं होते। परन्तु हम यह नहीं कहते कि कोई भारतीय अस्वच्छ है ही नहीं। इसे भली-भाँति याद रखना चाहिए। हम यह तर्क विभिन्न भारतीय समाजोंकी परम्पराओं और राष्ट्रीय प्रथाओंके आधारपर पेश करते हैं। हम निश्चयके साथ कह सकते हैं कि भारतीयोंका धर्म उनके लिए एक जीती-जागती चीज है, फिर भले ही वे हिन्दू हों, या मुसलमान; और वह धर्म उन्हें व्यक्तिगत सफाई और परिणामतः घरेलू सफाईके निरपेक्ष सिद्धान्तोंकी शिक्षा देता है। यह बात नीचीसे-नीची श्रेणियोंके लोगोंके बारेमें भी सही है, और भारतीय जीवनकी साधारण हालतोंसे परिचित कोई भी व्यक्ति इसकी पुष्टि कर सकता है।

परन्तु हमारे यहाँ क्या है? हमारे यहाँ तो ईस्टर्न फ्ले और वेस्टर्न फ्ले हैं। हमने बाजारों और बस्तियोंके बारेमें, छूत-निवारण और पृथक्करण के बारेमें बहुत ही सख्त बातें सुनी हैं। परन्तु प्रस्तावकी शेष बातोंको, मालूम होता है, बहुत सोच-समझकर—या यों कहें कि लापर- वाहीके साथ—विचारसे अलग रखा गया है।

सफाई और आरोग्यके प्रश्नोंमें दिलचस्पी रखनेवाले लोगोंके लिए हम नगरपालिकाकी सफाई-समितिको सन् १८९९में नेटाल मर्क्युरीमें प्रकाशित रिपोर्टके कुछ उद्धरण देना चाहते हैं। इस समिति के अध्यक्ष माननीय आर० जेमिसन थे।

(२) बादमें हमने वेस्टर्न फ्ले (पश्चिमी दलदली बस्ती) कहलानेवाले स्थानमें बने अहातेका निरीक्षण किया। वहाँ दो नालीदार चद्दरके मकान हैं, जिनमें २२ मर्द और ३३ औरतें तथा बच्चे रहते हैं। ये इमारतें बहुत-कुछ अच्छी हालतमें पाई गईं। परन्तु इनको सफाईके उपनियमोंके अनुकूल बनानेके लिए इनमें छप्पर, नालियों, बरसाती नलों (डाउन पाइप्स), अधिक, प्रकाश अधिक हवा तथा एक और पाखानेकी जरूरत है। वर्तमान पाखाना शिष्टताकी दृष्टिसे काफी नहीं है। चहारदीवारीकी मरम्मतकी जरूरत है। मकानोंके अन्दर सफेदी करनी चाहिए। पानीका प्रबंध पास ही है, इसलिए नहाने- धोनेके लिए लोहेकी चद्दरोंका एक छोटा-सा खोखा बना देना चाहिए। पासकी खुली नालियोंको बरसात शुरू होनेके पहले भली-भाँति साफ करके खोल देना जरूरी है, क्योंकि यह जगह दलदली है।