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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह है उस महान बाजार, या बस्ती, या अहातेकी, या आप उसे जो भी कह कर पुकारें, हालतका वर्णन; और वह भी स्वयं निगम जैसी अधिकारी संस्थाके सीधे नियन्त्रणमें। हम पूछते हैं अगर गंदगीके ठीक बीचों-बीच इस प्रकारके मकानोंमें बसाये गये भारतीयोंकी आदतें गंदी हैं तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है? क्या भारतीय? हर्गिज नहीं। और फिर भी, यद्यपि इस रिपोर्टको पेश हुए लगभग साढ़े पाँच वर्ष बीत गये हैं, वह दुर्गन्धयुक्त क्षेत्र आज भी करीब-करीब उसी हालत में है, जिसमें उस समय था।

ऐसी घिनौनी हालतोंको सुधारनेके लिए निगम (कारपोरेशन) क्या कर रहा है? वह परवानोंके सम्बन्धमें मुकदमे चलानेके लिए शक्ति और समय निकाल सकता है, फिर बीमारी और मौतके इस केन्द्र और दूसरे केन्द्रोंको मिटाने में अपनी उसी शक्तिका थोड़ा-सा अंश क्यों नहीं लगा सकता?

नेटाल मर्क्युरी कहता है:

कुली सफाई-पसन्द व्यक्ति नहीं हैं और अगर उन्हें अपनी मर्जीपर छोड़ दिया जाये तो वे बस्ती से बाहर बने बढ़िया सदन को भी शीघ्र ही सूअरबाड़े जैसा गन्दा बना देंगे।

और वह आगे कहता है:

परन्तु यह उनके मालिकोंका, और खास तौरसे प्रवासियोंके संरक्षकका काम है। कि न सिर्फ उनके अपने हितके लिए, बल्कि सारे समाजके हितके लिए, सफाईके मामले में उन्हें उनकी मर्जीपर न छोड़ा जाये। यह मामला उपनिवेशके स्वास्थ्य अधिकारीके ध्यान देनेका है। और अगर मालिक लोग अपने कुलियोंको नाकाफी और गंदे मकान देते हों तो उन्हें अपने तरीके सुधारनेके लिए बाध्य करना चाहिए।

इनमेंसे दूसरे मन्तव्यसे हम पूरी तरह सहमत हैं। इससे सचमुच उनको बहुत कुछ जवाब मिल जाता है, जो सारेके-सारे भारतीयोंकी कथित गन्दी आदतोंपर जोर देते हैं। पहले मन्तव्यको मंजूर करनेके पहले जाँचना होगा। उसका निबटारा ऊपर बताई हुई रिपोर्टके निम्नलिखित अंशसे हो जाता है:

यहाँ (क्वीन स्ट्रीट अहाते में) खास तौरसे देखा गया कि जितने भी स्थानोंका हमने निरीक्षण किया उन सबकी तुलनामें यह बहुत साफ है। इसका कारण यह है कि यह भूमिगत नाली-प्रणाली से सम्बद्ध है और इससे यहाँ नहाने-धोने और पाखानोंकी व्यवस्था काफी अच्छी है।

इस प्रकार हमारे पास लिखित प्रमाण है कि यह बुराई निगमको बताई जा चुकी है; और यह भी कि इस तरहकी बुराइयाँ अगर जारी रहती हैं तो वे उस संस्थापर कलंक रूप हैं, जो इन्हें बरदाश्त करती है; और आखिरी बात यह है, यद्यपि वह उतनी ही महत्त्वपूर्ण है, कि निगमने ईस्टर्न फ्ले और वेस्टर्न फ्ले में इन्हें मिटानेका कोई अमली प्रयत्न नहीं किया। फिर किसको अधिकार है कि वह भारतीयोंकी अस्वच्छताको कारण बताकर उनका नाम निशान मिटा देनेपर जोर दे और इस प्रकार जलेपर नमक छिड़के? निगमकी अहस्तक्षेपकी नीतिका परिणाम स्पष्ट दिखलाई पड़ रहा है। मूल कारण कितने दिनोंतक वे-निपटा पड़ा रहेगा?

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २५-२-१९०५