पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/४२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३९०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आत्मरक्षा के लिए हमें यह सब करना पड़ा है; क्योंकि यह संकेत करना स्पष्टतः अन्यायपूर्ण है कि कुछ भारतीयों का ऐसा व्यवहार, जिसकी निन्दा हमसे ज्यादा और कोई नहीं करता, "यूरो-पीयोंकी दृष्टि में भारतीय समाजके प्रति बहुत बुरी धारणा पैदा करता है।" तथापि, ये छिपावके मामले क्यों होते हैं, इसका एक महत्त्वपूर्ण कारण है। हमें बताया गया है कि प्लेगके अस्पताल में भारतीयों और काफिरोंके बीच कोई फर्क नहीं किया जाता। सबको अंधाधुन्ध एक साथ डाल दिया जाता है। भारतीयोंकी आदतों और भावनाओंका थोड़ा भी ज्ञान रखनेवाला कोई भी व्यक्ति एकदम ताड़ सकता है कि यह बात अधिकारियोंके जारी किये हुए अच्छे काममें कितनी बाधक है। हम केवल यह कह सकते हैं कि जबतक भारतीयोंको अलग स्थान नहीं दिया जाता और जबतक स्वयं भारतीयोंके बीच, उनकी धार्मिक प्रथाओं और परम्परागत विश्वासोंका उचित खयाल रखते हुए, जाति और धर्मका फर्क नहीं किया जाता, तबतक अधिकारियोंको व्यर्थ ही उन कठिनाइयों को झेलते रहना होगा, जो जरा-सी दूरदर्शितासे सरलतापूर्वक दूर की जा सकती हैं।


हम अंशतः यह बता चुके हैं कि गरीब वर्गके भारतीयोंके लिए कैसे और क्यों गन्दगीकी हालतें पैदा की जाती हैं। डर्बनमें प्लेग फिरसे फूट पड़ा है। उसके सबसे पहले शिकार कौन हैं? भारतीय। परन्तु हम इस विषयको लेकर प्रश्न करते हैं—कौनसे भारतीय? वे भारतीय कौन हैं? उनके अलावा और कोई नहीं, जो दक्षिण आफ्रिकाका आदर्श नगर होनेका अभिमान करनेवाले नगरके निगमकी नौकरियों में हैं, उसके मकानोंमें रहते हैं और जिनकी वह "हिफाजत करता है। निगमने इन भारतीयोंको गन्देसे गन्दे काम करनेके लिए नौकर रखा है। उनसे नालियाँ और गटरें साफ करायी जाती हैं और उन्हें ईस्टर्न फ्ले और वेस्टर्न फ्ले (पूर्वी और पश्चिमी दलदल) जैसे "स्वच्छ" मुहल्लोंमें "बसाया" जाता है । तब फिर अगर ये अभागे इस प्लेगकी बीमारीको और दूसरी हरएक गन्दगीकी बीमारीको पकड़ लेते हैं तो ताज्जुब क्या? सफाई-आयोग (सैनिटरी कमिशन) की रिपोर्टमें, जिसकी विस्तृत चर्चा अन्यत्र की गई है, उन भयानक परिस्थितियोंका काफी यथार्थ वर्णन किया गया है, जिनमें इन अभागे लोगोंको स्थायी रूपसे निकृष्ट जीवन बितानेके लिए बाध्य किया जाता है। और जब ऐसी परिस्थितियोंमें प्लेग स्वभावतः फैल जाता है—यद्यपि इसके बारेमें भारतीय समाजने अधिकारियोंसे बार-बार शिकायतें कीं और उन्हीं अधिकारियों द्वारा नियुक्त विशेषज्ञोंने भी बार-बार चेतावनियाँ दीं. • तब बिना किसी भेदभाव के सारे भारतीयोंपर गन्दी आदतोंका दोष मढ़ दिया जाता है और “कुली "को फौरन "रोग-संवर्धक" की उपाधि दे डाली जाती है। जिस आदमीको सूअरोंके बाड़ेमें रखा जाता हो उसका उस बाड़ेके असली निवासी पशुओंके समान ही गन्दी आदतोंवाला बन जाना असम्भव नहीं है। ट्रान्सवालके स्वास्थ्य अधिकारी डॉ० टर्नरने विधान परिषद में ट्रान्सवालकी भारतीय बस्तियोंके बारेमें बोलते हुए कहा है:

जोहानिसबर्गकी कुली बस्ती शर्मनाक हालतमें है, और क्यों? इसलिए कि ये गरीब लोग दरवेमें मुर्गी के बच्चोंकी तरह वहाँ रहनेके लिए मजबूर हैं और अधिकारियोंने उसे बहुत ही गन्दी हालतमें रख छोड़ा है। अगर श्री रेट (विधान परिषदके सदस्य) उसमें रहनेको विवश होते तो वे भी उतने ही गन्दे होते।

हमें खेदके साथ कहना पड़ता है कि सफाईके मामले में गुनहगार स्वयं निगम है। इसलिए अपने मकानोंकी भयानक हालत तथा प्लेगसे होनेवाली मौतोंके लिए मुजरिमाना जिम्मेदारी उसके ही सिर है। इन तथ्योंके प्रकाशमें भारतीय समाज या अभागे "कुलियों" पर भी गन्दी