आदतों" और बुराईको मिटाने में अधिकारियोंके साथ सहयोगके प्रयत्न जान-बूझकर न करनेका दोष मढ़ना, केवल मुख्य विषयसे लोगोंका ध्यान बँटा देना है।
सरकार और निगम द्वारा नियुक्त किये हुए प्लेग-विशेषज्ञोंके प्रति हम अपना आभार प्रकट करते हैं। उन्होंने बुराईका इलाज करनेकी शक्ति-भर कोशिश की है और सरकारसे सिफारिशें भी की हैं, परन्तु सब व्यर्थ। परिणामको पकड़कर उसे कारण मानना बिलकुल व्यर्थ है। परिणाम आखिर परिणाम ही रहता है, और कारण, जो कुछ बताया गया है उससे बिलकुल भिन्न होने के कारण, अभी खोजना शेष ही है।
इस सबके बावजूद हम देखते हैं कि कुछ जिम्मेदार लोग ऐसे हैं जो लॉर्ड मिलनरकी विज्ञप्ति में सुझाये गये तरीकोंके अनुसार नये कानून बनानेके पक्षमें हैं। वे चाहते हैं कि इन कानूनों के द्वारा भारतीयोंको बाजारोंमें ढकेल दिया जाये और उन विभीषिकाओंको स्थायी बना दिया जाये जो निगमकी भूमिपर बसी बस्तियोंमें फैली हैं। भारत सरकारके अंक-विभागके भूतपूर्व महानिदेशक श्री जे० ई० ओ कोनरने इस नीतिकी निन्दा करते हुए ठीक ही कहा है कि भारतीयोंको बाजार में ढकेलने का मतलब है कि "वे अपनी फिक्र खुद ही करें।" यह माना जाता है कि अच्छी सरकारकी सच्ची कसौटी यह है कि वह अकिंचन में भी कर्तव्यकी ऊँची भावना भरती है, वह उसे निम्नतर कोटिकी दासतामें कभी भी नहीं गिरातीं, किन्तु निश्चय ही कोई "मूर्खतापूर्ण लकीरकी फकीरी,” राजनीतिज्ञताकी उदार भावना, डर्बन नगरपालिकाकी सफाई तथा राजनीति- सम्बन्धी नीतियोंकी निर्मात्री नहीं है।
इंडियन ओपिनियन, २५-२-१९०५
३०८. दक्षिण आफ्रिकाके तमाम भारतीयोंसे अपील
अपने पाठकोंसे हमारी सिफारिश है कि इन दिनों भारतसे जो समाचारपत्र आते हैं वे गौर-से पढ़ें। क्योंकि उन्हें उनको पढ़नेसे यह यकीन हो जायेगा कि हमारे भारतके भाई हमारे सहा-यतार्थं दौड़कर आनेके लिए तैयार हैं। बम्बईमें कांग्रेसका जो अधिवेशन हुआ उसमें हम लोगों के कष्टोंके सम्बन्ध में अच्छी चर्चा की गई थी, और यहाँके निवासियों द्वारा दिये गये भाषणोंका उस महान संस्था कांग्रेसपर ऐसा अच्छा प्रभाव पड़ा कि नेताओंने हमारे प्रश्नका महत्व समझकर हमारी परिस्थितिमें सुधारका प्रयत्न भी आरम्भ कर दिया है। समाचारपत्रोंने भी हमारी समस्याको भली-भाँति हाथमें ले लिया है। ये सारी बातें बहुत सन्तोषप्रद हैं। और हमें ईश्वरका अनुग्रह मानना चाहिए कि भारतके लोक-प्रतिनिधियोंने खुद हमारी शिकायतपर ध्यान दिया है। हमें भी अधिक उत्साहसे अपना कर्त्तव्य पूरा करनेमें तत्पर हो जाना चाहिए। कहावत है कि "हिम्मते मद मददे खुदा" और "अपने मरे बिना स्वर्ग नहीं मिलता।" इसलिए हमें अपना कर्त्तव्य पूरा करना ही चाहिए। यदि नहीं करते तो हमारी आकांक्षा फलीभूत नहीं होगी। भारतसे ज्यों-ज्यों मदद मिलती जाये त्यों-त्यों हमारे जोशमें बढ़ती होनी चाहिए, क्योंकि मदद मिलनेपर जिम्मे-वारी बढ़ती है। अपने दुःखोंको मिटानेके लिए हमारा कोशिश करना तो स्वाभाविक ही है। यदि हम ऐसा नहीं करते तो हम लोगोंको पशुओंसे भी गया-गुजरा माना जायेगा। जब हम लोगोंकी सहायताके लिए सहायक लोग निकल पड़े हैं तब हमें उनके प्रति अपने कर्त्तव्योंका भी विचार करना चाहिए। और उनको संतोष तथा प्रोत्साहन देनेके लिए अधिक उमंग और उत्साहसे