कोशिशें करनी चाहिए ताकि उन्हें यह प्रतीत हो कि हम अपात्र नहीं हैं, सुपात्र हैं। अपनी योग्यता साबित कर देनेसे उनका हौसला भी बढ़ेगा और इससे हमें बहुत लाभ होगा। दुनिया-दारीमें व्यस्त आदमी भी यह बात समझ सकता है। फिर जो लोग धर्मके सम्बन्धमें विचार करते हों, उनको तो इस बातका औचित्य तुरन्त दिखाई देगा।
दक्षिण आफ्रिकाके तमाम भाइयोंसे हमारी खास विनती है कि वे ऊपर लिखी बातपर विशेष रूप से विचार करें और अपना फर्ज अदा करनेके लिए तुरन्त तैयार हो जायें। भारतीय नेता हमारी मदद करनेके लिए तैयार हैं तो उनके लिए उसके साधन जुटा देना हमारा साफ फर्ज है। क्योंकि, हमें समझना चाहिए कि यदि हम ऐसा नहीं करते तो उन लोगोंसे इच्छानुकूल मदद नहीं मिल सकती। फिलहाल तीन साधनोंकी आवश्यकता है: (१) हम अपनी कोशिशें जारी रखें; (२) उन्हें अपनी सही हालतसे वाकिफ रखें; (३) हमारी ओरसे काम करने में उन्हें खर्च करना पड़ता हो, तो रुपये-पैसेकी पर्याप्त सहायता दें। ये तीनों साधन बड़े कामके हैं। हम पहले दो साधन कुछ-कुछ जुटा देते हैं अर्थात् हमारी कोशिशें थोड़ी-बहुत चालू हैं और हम यहाँकी सही हालत भी प्रकाशित करते हैं। तीसरे साधनपर, यानी रुपये-पैसेके सम्बन्ध में, हमने कुछ नहीं किया है। इसलिए उस विषयपर अविलम्ब पूरा विचार करना आवश्यक है। पैसेकी मदद करना एक भारी हथियार देनेके बराबर है। दुनिया ऐसी है कि उसमें आजकल पग-पग पर पैसा चाहिए, और पैसेकी कमी पड़ जाये तो चाहे जैसी बड़ी और ऊँची उम्मीद मनमें बाँधी हो, अन्तमें नाउम्मीद हो जाना पड़ता है। जिस प्रकार मनुष्यको आहारकी आवश्यकता होती है उसी प्रकार सार्वजनिक काममें पैसेकी जरूरत रहती है। सहायक अपना बहुमूल्य समय दें, और खुशीसे मिहनत करें; तिसपर भी उन्हें पैसे की आवश्यकता हो और तब हम अपनी थैलीका मुँह बन्द रखें तो हम नीच और अधम गिने जायेंगे।
हमें सोचना चाहिए कि नेता किस प्रकार सहायता कर सकते हैं। इस देशमें हमारा जो अनुभव है उससे यह समझना कठिन नहीं है। ब्रिटिश राज्यमें अपनी अभिलाषा पूरी करानेके लिए कैसे काम करना चाहिए यह हमने प्रत्यक्ष अनुभवसे सीखा है। ट्रान्सवालके लोगोंने चाहा तो युद्ध करवाया और इस समय चाहें तो हमें इतना कष्ट दे सकते हैं। यह कैसे होता है? वे लोग, सर्व-साधारण जनतासे अपने विचारोंका समर्थन प्राप्त करनेकी दृष्टिसे, जगह-जगह सभाएँ करते हैं; सब लोग सभाओं में हमेशा उपस्थित नहीं हो सकते, इसलिए समाचारपत्र निकालते हैं और उनमें यथारुचि लेख लिखते हैं, पत्रक और पत्रिकाएँ छपवाते हैं; अर्जियाँ तैयार करते हैं, छपवाते हैं और उनके ऊपर बहुतसे दस्तखत कराते हैं, और जो कुछ करते हैं उसकी खबर देनेके लिए तार भेजते हैं। अब यह सब करने के लिए पैसेकी बड़ी आवश्यकता रहती है। और इसलिए उनके नेता अपनी जेबें जरा हल्की करनेमें झिझकते नहीं हैं। वे लोग बलवान हैं, अक्लमन्द हैं, संगठित हैं; उनका इस देशमें एवं विलायत में पूरा-पूरा प्रभाव है; फिर भी वे निश्चित काम निर्विघ्न पूरा करनेके लिए बुद्धिमतासे काम लेकर तमाम कोशिशें हमेशा जारी रखते हैं। ऐसे लोगोंसे हमें टक्कर लेनी पड़ती है। हम कमजोर हैं; अक्लमें पिछड़े हुए हैं; ऐक्यका पूरा महत्त्व समझकर सब एक नहीं हो सकते; सरकारपर हमारा कुछ प्रभाव नहीं है; और जिस उमंग और विवेक विचारसे हमें अपनी मनुष्यता दिखानी चाहिए उसका हममें अभाव है। तब उनसे टक्कर कैसे ली जाये? हमारी प्रायः सभी कमियोंके बदले में हमारे पक्षमें इन्साफ है; और इन्साफ विरोधी पक्षको हरा सकता है। किन्तु फिर भी हमें जय प्राप्त करनेके लिए अपनी मनुष्यता और योग्यता अवश्य दिखानी ही चाहिए। क्योंकि ऐसा न करें तो इन्साफ कमजोर पड़ जाता है।