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केप के सामान्य व्यापारी

हमारे सौभाग्यसे यहाँके कई प्रतिष्ठित महानुभाव इन दिनों भारतमें हैं। उनके द्वारा यहाँके नेताओंको सहायता मिलनी चाहिए। दक्षिण आफ्रिकाके हर हिस्सेसे-खास करके नेटाल और ट्रान्सवालसे पैसेकी जितनी बन पड़े सहायता भेजकर भारतके नेताओंको बल देना चाहिए, ताकि वे ब्रिटिश राज्यकी रीतिके अनुसार जनताकी भावनाओंको प्रकाशमें लाकर सरकारसे इन्साफकी माँग करें। यहाँकी जैसी महँगाई भारतमें नहीं है। वह देश गरीब है, इसलिए वहाँ थोड़े पैसोंसे काम हो सकता है; फिर वह बहुत विशाल है। इन सारी बातोंको ध्यानमें रखकर यहाँके नेताओंको अपना प्रत्यक्ष कर्तव्य अविलम्ब पूरा करना चाहिए-अर्थात् वहाँ अच्छी-खासी रकमें तत्काल भेज देनी चाहिए, जिससे उनका उत्साह मन्द न हो जाये। और अखबारोंमें निकलवा कर तथा सभाएँ करके समूचे देशमें आवाज गुंजा देनी चाहिए, जिससे कहा जा सके कि भारतकी सरकारको जनताका पूरा समर्थन मिला है, और विलायतकी सरकारको भी उसपर ध्यान देना लाजिमी हो जाये।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २५-२-१९०५

३०९. केपके सामान्य व्यापारी

पके गवर्नमेंट गज़टमें सामान्य व्यापारियोंके व्यापारका नियमन करने के लिए एक विधे-यकका मसविदा प्रकाशित हुआ है। व्यापारियोंके परवानोंके नियमनकी बात तो हम समझ सकते हैं, मगर कानून व्यापारियोंका भी नियमन करे, यह एक बिलकुल अनूठी कल्पना है। हम विधेयककी असली उपधाराओंको दूसरे स्तम्भमें उद्धृत कर रहे हैं। इसमें कुल ३५ खण्ड हैं, जिनमें से अधिकांशको न्यूनाधिक रूपमें टाला जा सकता था। परन्तु इसके साथ ही हमें यह भी मंजूर करना होगा कि यद्यपि विधेयक काफी सख्त है, फिर भी उससे मालूम होता है कि उसके निर्माताओंने सामान्य व्यापारियोंके हितोंका बहुत खयाल रखा है। इस दृष्टिसे वह निस्सन्देह नेटाल अधिनियमकी अपेक्षा कम आपत्तिजनक है। विधेयकके अनुसार, सब वर्तमान परवानेदार व्यापारियोंको तबतक संरक्षण प्रदान किया गया है जबतक कि उन्होंने इतवारको व्यापार, शराब-बिक्री और सफाईसे सम्बन्धित कानूनका भंग न किया हो, या उनके ग्राहकों, साथियों अथवा उनकी खुदकी आदतोंके कारण उनके अहाते पास-पड़ोसके लोगोंके लिए कष्टदायक न बन गये हों। जहाँतक नये परवानोंका सम्बन्ध है, कोई आवासी मजिस्ट्रेट आवेदकको परवाना प्राप्त करनेके लिए प्रमाणपत्र दे सकेगा अथवा इस प्रश्नका फैसला परवाना देनेवाली अदालत कर देगी। मजिस्ट्रेट और परवाना-अदालत दोनोंको अधिकार होगा कि वे दूसरी बातोंके साथ-साथ आवेदकके चाल-चलन, किसी यूरोपीय भाषामें लिखनेके सामर्थ्य अथवा कारोवारका समझमें आने लायक लेखा रखनेकी अयोग्यताके आधारपर उसे परवाना देनेसे इनकार कर दें। परवानेदारको भी अधि-कार होगा कि अगर उसका परवाना रद कर दिया जाये तो वह सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सके। अपील केवल उस हालत में नहीं हो सकेगी, जब कि परवाना शराब-कानूनके अन्तर्गत सजाके कारण रद किया गया हो। सारे विधेयकमें सबसे अधिक आपत्तिजनक उपधारा यूरोपीय भाषाओंके सम्बन्धमें है। इस तरहकी व्यवस्थाका अर्थ है—लाखों ब्रिटिश भारतीयों और उनकी सुसंस्कृत भाषाओंका स्वभावतः अपमान। उसके कारण ही केप-निवासी भारतीयोंके लिए विधेयकका विरोध करना आवश्यक हो गया है; अन्यथा वे सहर्ष उससे सहमत हो जाते। इस तरहकी