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हिन्दू धर्म

समझते हैं। हमें याद रखना चाहिए कि कुछ इसी प्रकारकी बात हमने १८९८ में की थी; उसके फलस्वरूप १८९९ में उपनिवेश-सचिवने श्री चेम्बरलेन द्वारा लिखित सख्त सूचनाओंके आधार-पर नेटालकी प्रत्येक नगरपालिकाको एक गुप्त पत्र लिखा था कि यदि भारतीय व्यापारियोंपर जुल्म किया गया तो कानून बदलना पड़ेगा और भारतीयोंकी माँगोंके अनुसार सर्वोच्च न्याया-लयमें अपीलकी छूट देनी पड़ेगी। इसके बाद कुछ ही समय में युद्ध शुरू होनेसे वह सब बन्द हो गया। किन्तु अब फिर वे बातें उठ रही हैं। अतः हम लोगोंको सावधान रहनेकी पूरी आवश्यकता है। हमें उक्त उदाहरणसे साहस बटोरकर काम करना चाहिए। यदि हम अपने कर्त्तव्योंको ठीक-ठीक पूरा करेंगे तो अन्तमें हमारा मन्तव्य पूरा हुए बिना नहीं रहेगा।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ४-३-१९०५

३११. हिन्दू धर्म

[ जोहानिसबर्ग
मार्च ४, १९०५]

श्री मो० क० गांधीने पिछले शनिवारकी शामको मेसॉनिक टेम्पल, प्लीन स्ट्रीटमें उपर्युक्त विषयपर जोहानिसबर्ग लॉज ऑफ दि थियोसॉफिकल सोसाइटीके तत्त्वावधानमें चार व्याख्यानोंकी मालामें से पहला व्याख्यान दिया। उपाध्यक्ष मेजर पीकॉक सभापति थे।

विषयका प्रारम्भ करते हुए गांधीजीने कहा कि विभिन्न धार्मिक पद्धतियोंके अध्ययनके प्रति उत्कण्ठा जगानेका जोहानिसबर्ग लॉजका प्रयत्न बहुत ही प्रशंसनीय है, क्योंकि इससे लोगोंकी सहा-नुभूतिका विस्तार होता है और अपनेसे भिन्न मत और वर्णवालोंके व्यवहारके मूलमें रहनेवाले उद्देश्यों और विश्वासोंको समझनेकी शक्ति बढ़ती है। वे स्वयं अपने ग्यारह बरसके आफ्रिका-निवासमें अपने देशवासियोंके प्रति फैले हुए द्वेष और अज्ञानको दूर करनेकी कोशिश करते रहे हैं। आगे बोलते हुए भाषणकर्त्ताने "हिन्दू" शब्दका अर्थ आर्योंकी उस शाखाके सन्दर्भ में समझाया जो सिन्धु नदीके पारके भारतीय अंचलोंमें आकर उसके विशाल भूभागमें बस गई थी। भारतके करोड़ों लोग जो धर्म मानते हैं उसकी व्याख्याके विचारसे वास्तवमें "हिन्दू धर्म" की अपेक्षा "आर्यधर्म" शब्द अधिक अर्थसूचक होता।

हिन्दू जिस धर्मको मानते हैं, आत्मत्याग उसकी अत्यन्त उल्लेखनीय विशेषताओंमें से एक है और यह बात स्वयं उस धर्मके नामसे ही जाहिर है। संसारमें फैले हुए अन्य बड़े धर्मोकी तरह उसका नामकरण किसी गुरु या पैगम्बरके नामपर नहीं हुआ—यद्यपि उसके अन्तर्गत अनेक महान विभूतियाँ हुईं। भाषणकर्ताने आगे चलकर अपनी मान्यताके प्रमाणमें अरकाटके ऐतिहासिक घेरेका उदाहरण दिया कि जब सारी ब्रिटिश फौजके सामने भूख से मर जानेका खतरा था तब भारतीय सिपाहियोंने अपने हिस्सेके चावलोंकी रसद अंग्रेज सिपाहियोंको दे दी और स्वयं उस माँड़से सन्तोष किया जो अमूमन पसाकर फेंक दिया जाता था। उन्होंने गिरमिटिया मजदूर प्रभुसिंहकी[१] बात भी कही जिसे घेरेके समय जानकी जोखिम उठाकर पेड़के ऊपर छिपे-छिपे घंटी बजाकर बोअरोंकी हर अग्निवर्षासे लेडीस्मिथ के निवासियोंको सावधान करनेका सम्मानपूर्ण काम सौंपा गया था। सर जॉर्ज व्हाइटने कई बार इस व्यक्तिका खरीतोंमें उल्लेख किया है।

  1. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ १७९ और दक्षिण आफ्रिकाना सत्याग्रह्नो इतिहास, प्रथम खण्ड, अध्याय ९।