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जोहानिसबर्गका वह अस्वच्छ क्षेत्र

निर्णायकोंने उनकी कीमतें उससे कम आँकी हैं। यह कहना कोई मानी नहीं रखता कि मालिकोंने अत्यधिक मुआवजेकी माँगें की है। सम्भव है यह सही हो, या गलत भी हो, किन्तु गलत प्रकारकी इस मक्खीचूसपनेकी नीतिका अवलम्बन करके परिषद अपने करदाताओंकी कुसेवा ही कर रही है। शायद परिषदके सदस्योंने ऐसा करते हुए अपने कर्तव्यको बहुत बढ़ाकर समझ लिया है। सर्वसाधारण रूपसे वे अपने करदाताओंका पैसा बचानेकी धुनमें अपने ही उन गरीब करदाताओंके साथ बहुत भारी अन्याय कर रहे हैं, जिन्हें यदि उदारता नहीं तो न्यायकी बहुत जरूरत है। जब इस क्षेत्रमें आवश्यक सुधार हो जायेंगे तब यहाँका किराया बढ़ जायेगा। परन्तु कानूनने मालिकोंसे यह लाभ छीन लिया है। इस बातकी कोई शिकायत नहीं कि यह सारी विशेष आय करदाताओंकी ही मानी जायेगी। परन्तु इतनेपर भी नगर-परिषदसे यह तो अपेक्षा अवश्य की गई थी कि वह इन अस्वच्छ क्षेत्रोंकी जमीनोंके मालिकोंके साथ शोभनीय और न्यायपूर्ण व्यवहार करेगी। जहाँतक जमीनोंके मालिकोंसे किराया लेनेवाले नगर-परिषदके प्रस्तावसे सम्बन्धहै, हम समझते हैं कि जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं उनके प्रति सहानुभूति प्रकट करनेसे अपने आपको रोकना बड़ा कठिन है। सभाके वक्ताओंका यह कथन अक्षरश: सही है कि बहुतसे लोगोंकी आजीविकाका एकमात्र साधन जायदादें ही हैं। शायद नगर-परिषदकी 'सेरभर मांस' वाली अपनी जिद कानूनकी दृष्टिसे उचित भी हो। परन्तु ऐसे मामलोंमें कानूनी अधिकार, अगर उसमें दया-धर्मका खयाल नहीं रखा गया है तो, क्रूरता बन जाता है। बेदखल लोगोंके रहने के लिए जमीनें ढूंढ़नेका प्रश्न अनिश्चित कालके लिए आगे ढकेल दिया गया है। इसलिए जबतक उनके रहनेकी पूरी-पूरी व्यवस्था नहीं हो जाती और अगर मालिकोंको अपनी जायदादोंका अस्थायी रूपसे उपयोग नहीं करने दिया जाता या किराया वगैरह नहीं लेने दिया जाता तो वे गुजर कैसे करेंगे—खासकर ऐसे कठिन और चिन्ताके समयमें? बारिश बहुत ही पिछड़ गई है। परमात्मा जाने, दक्षिण आफ्रिकापर उसकी कृपा कब होती है। उद्योग-धन्धे ठप्प है, पैसे-टकेका बाजार भी मन्दा है, और हम अखबारोंमें पढ़ते हैं कि जोहानिसबर्गमें हजारों आदमी एकदम बेकार है। ऐसी परिस्थितियोंमें इन निर्दोष लोगोंसे उनकी जीविकाका एकमात्र साधन छीन लेना एक ऐसा काम है जिसका किसी प्रकार भी समर्थन नहीं किया जा सकता। परिषद अभीतक नामजद ही है। अत: शायद वह लोक-भावनाका निरादर कर सकती है। परन्तु हमारी मान्यता है कि परिषद जनताके प्रति सीधी जिम्मेदार नहीं है, इस कारण उसका यह कर्तव्य दूना हो जाता है कि अस्वच्छ क्षेत्रके निवासियोंके प्रति अपने व्यवहारमें न्याय और औचित्यका पूरा-पूरा ध्यान रखे। और अगर वह यह नहीं कर सकती या करना नहीं चाहती तो जबतक निर्वाचित परिषद नहीं बन जाती—जैसी कि वह बहुत जल्दी ही बन जायेगी—तबतक यह कार्रवाई रोक रखी जाये।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १५-१०-१९०३