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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/४४

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१०. जोहानिसबर्गको पृथक बस्ती

हमें नगर परिषदके नाम जोहानिसबर्गके निवासियों और करदाताओंकी ओरसे दी गई उस अर्जीका समर्थन करने में कोई हिचक नहीं, जिसमें भारतीय बस्तीको यहाँसे हटाकर किसी अधिक उपयुक्त स्थानपर ले जानेकी मांग की गई है। इस अर्जीका एक अंश हम गत ७ तारीखके ट्रान्सवाल लीडरसे यहाँ उद्धृत करते हैं, जिससे प्रकट होता है कि यह अर्जी नागरिकोंमें घुमाई जा रही है। अर्जीमें जोहानिसबर्ग नगर-परिषदकी स्वास्थ्य-समितिके उस प्रस्तावका हवाला दिया गया है जिसमें कहा गया है कि अस्वच्छ क्षेत्र-अधिग्रहण अध्यादेश (इनसैनिटरी एरिया एक्स्प्रोप्रियेशन ऑर्डिनेन्स) के अनुसार जिस भारतीय बस्तीके निवासियोंको बेदखल किया गया है उसे काफिरोंकी बस्तीकी जगह और काफिरोंकी बस्तीको और भी आगे हटा दिया जाये। हम स्वीकार करते हैं कि जिन कारणोंको लेकर करदाता इस सुझावका विरोध कर रहे हैं, हमारे कारण उनसे भिन्न हैं। उस अर्जीपर हस्ताक्षर करनेवाले स्पष्ट रूपसे यह चाहते हैं कि भारतीयोंको हटाकर काफिरोंकी वर्तमान बस्तीसे भी कहीं आगे बसाया जाये। हमारी राय है कि यह काफिर बस्ती ही जब्त किये गये रकबेसे इतनी अधिक दूर है कि उसका भारतीयोंके लिए कोई उपयोग नहीं हो सकेगा। दूसरे, खुद कानून यह कहता है कि जबतक अस्वच्छ क्षेत्रके इन लोगोंको नजदीक ही कहीं बसनेका स्थान नहीं बता दिया जाता, तबतक इन्हें अपने वर्तमान स्थानसे न हटाया जाये। हम जानते हैं कि परिषद द्वारा जब्त की गई जगहसे काफिर बस्ती एक मीलसे भी अधिक दूर है, और हम नहीं समझते कि बेदखल लोगोंको अपनी आजकी जगहसे पूरे एक मीलसे भी दूर ले जाना बेदखली कानूनको मंशाके अनुकूल माना जायेगा। इसलिए या तो उन लोगोंको अपनी जगहसे हटाया ही नहीं जाना चाहिए, या कोई दूसरा कम आपत्तिजनक स्थान बताया जाना चाहिए। अर्जदारोंके प्रस्तावके समर्थनमें केप टाउनका दृष्टान्त दिया गया है और इस तर्कके बलपर ब्रिटिश भारतीयोंको जोहानिसबर्गसे दूर हटानेका औचित्य सिद्ध करनेकी कोशिश की गई है कि काफिरोंको तो ठेठ मेटलैंडसे केप टाउनमें लाया गया था। परन्तु इन दो उदाहरणोंके बीच जरा भी समानता नहीं है। अगर बस्तीमें रहनेवाले सारे भारतवासी निरे मजदूर होते तब शायद केप टाउनका अनुकरण जोहानिसबर्गमें भी करनेके पक्षमें कुछ कहा जा सकता था; परन्तु जब हम देखते हैं कि उनमें से अधिकांश व्यापारमें लगे हुए स्वतन्त्र लोग हैं और कुछकी आजीविका पूर्णतया बस्तीके व्यापारपर ही निर्भर है, तो यह बात तुरन्त ध्यानमें आ सकती है कि नई बस्ती शहरके इतने नजदीक होनी चाहिए कि कमसे-कम वह देशी तथा गोरे ग्राहकोंको समान रूपसे आकर्षित करनेकी उचित अनुकूलताएँ प्रदान कर सके।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १५-१०-१९०३